UP BJP Adhyaksh: केंद्रीय वित्त राज्यमंत्री और महाराजगंज से सातवीं बार लोकसभा के सदस्य पंकज चौधरी भारतीय जनता पार्टी उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष निर्वाचित हुए हैं। भारतीय जनता पार्टी उत्तर प्रदेश के निर्विरोध निर्वाचित अध्यक्ष पंकज चौधरी के नाम की घोषणा केंद्रीय चुनाव अधिकारी पीयूष गोयल ने रविवार को की। हालांकि, उनका राजनीतिक अनुभव लंबा रहा है, लेकिन संगठन की कमान संभालते ही उनके सामने कई बड़ी चुनौतियां खड़ी होंगी। आइए जानते हैं उत्तर प्रदेश बीजेपी के नए अध्यक्ष के सामने आने वाली पांच चुनौतियां कौन-कौन सी हैं।
चौधरी के सामने पहला अहम काम बीजेपी संगठन और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली राज्य सरकार के बीच प्रभावी कोऑर्डिनेशन और कम्युनिकेशन सुनिश्चित करना होगा। 2024 के लोकसभा चुनावों में मिली हार के बाद, जब बीजेपी की सीटों की संख्या 2019 के मुकाबले लगभग आधी हो गई, तो पार्टी के आंतरिक आकलन में पाया गया कि इसके पीछे प्रमुख कारकों में से एक पार्टी कार्यकर्ताओं के उत्साह की कमी थी।
2024 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने राज्य की 80 सीटों में से 33 सीटें जीतीं, जबकि सपा को 37 सीटें मिलीं। 2019 में, बीजेपी ने सपा की पांच सीटों की तुलना में 62 सीटें जीती थीं। सूत्रों के अनुसार, विभिन्न निगमों और बोर्डों में कई राजनीतिक पद हैं जिन पर लंबे समय से नियुक्तियां लंबित हैं। बीजेपी के एक वर्ग ने यह शिकायत भी की है कि जिलों में प्रशासन स्थानीय पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं की शिकायतों का समाधान नहीं कर रहा है। बीजेपी और आरएसएस के वरिष्ठ नेताओं ने मुख्यमंत्री और राज्य पार्टी नेतृत्व के साथ कुछ संयुक्त बैठकों में सरकार और संगठन के बीच समन्वय में सुधार पर जोर दिया है।
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क्षेत्रीय संतुलन बनाने में क्या चुनौती?
पंकज चौधरी उत्तर प्रदेश BJP के निवर्तमान अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी की जगह लेने जा रहे हैं। वह पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जिले के एक जाट ओबीसी नेता हैं। अगस्त 2022 में भूपेंद्र चौधरी की नियुक्ति को राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में संतुलन बनाने के प्रयास के रूप में देखा गया था, क्योंकि आदित्यनाथ पूर्वी उत्तर प्रदेश के गोरखपुर से आते हैं। पंकज चौधरी गोरखपुर के रहने वाले हैं, जिससे पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मामलों में संचार और संतुलन बनाए रखना उनके लिए चुनौतीपूर्ण होगा, खासकर राष्ट्रीय लोक दल के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए, जो एनडीए का सहयोगी दल है और क्षेत्र के जाट बेल्ट में प्रभावशाली है।
2027 का यूपी विधानसभा चुनाव
जहां 2027 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव चौधरी के नेतृत्व की परीक्षा लेंगे, वहीं उन्हें 2026 के पंचायत चुनावों में पार्टी की जीत सुनिश्चित करने के लिए बीजेपी कार्यकर्ताओं को एकजुट रखना भी जरूरी होगा। स्थानीय निकाय चुनावों में टिकट के इच्छुक उम्मीदवारों की संख्या अधिक होने के कारण, चौधरी को उन लोगों को मनाना होगा जिन्हें टिकट नहीं मिला है कि वे विद्रोह न करें और इसके बजाय पार्टी के आधिकारिक उम्मीदवारों का समर्थन करें।
विधानसभा चुनावों के लिए, चौधरी पर आदित्यनाथ सरकार को किसी भी संभावित सत्ता-विरोधी लहर का मुकाबला करने में सहयोग देने की जिम्मेदारी होगी ताकि पार्टी को लगातार तीसरी बार सत्ता में आने का मौका मिल सके।
संगठनात्मक अनुभव की चुनौती?
चौधरी को संसद का 35 सालों का अनुभव है, वे 1991 से महाराजगंज से सात बार सांसद चुने गए हैं। संसद में एंट्री करने से पहले, वे गोरखपुर में नगर निगम पार्षद और उप महापौर चुने गए थे। 1991 में चौधरी को बीजेपी की कार्यकारी समिति का सदस्य बनाया गया था। लेकिन अपने लंबे राजनीतिक करियर में उन्होंने केवल यही एक संगठनात्मक पद संभाला था।
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सूत्रों के अनुसार, महाराजगंज क्षेत्र से बाहर बीजेपी कार्यकर्ताओं से उनका संपर्क बहुत कम रहा है। महाराजगंज के एक बीजेपी नेता ने कहा, “उन्होंने राज्य में कभी कोई संगठनात्मक पद नहीं संभाला। वे आरएसएस के कार्यक्रमों में सक्रिय रूप से भाग लेते रहे हैं, लेकिन वहां कभी कोई पद नहीं संभाला। यह अन्य पूर्व राज्य अध्यक्षों से अलग है, जिन्होंने एबीवीपी और विश्व हिंदू परिषद जैसे आरएसएस से संबद्ध संगठनों के लिए काम किया है। इसलिए, राज्य भर के लोगों से जुड़ना उनके लिए एक नई चुनौती होगी।”
सपा की पीडीए पिच का कैसे करेंगे मुकाबला?
चौधरी कुर्मी समुदाय से संबंध रखते हैं, जो राज्य की ओबीसी आबादी का लगभग 8% हिस्सा है और पूर्वी और मध्य उत्तर प्रदेश में इनकी अच्छी खासी उपस्थिति है। बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष के रूप में उनका चयन, सपा के पीडीए अभियान का मुकाबला करने के लिए पार्टी की एक रणनीतिक चाल के रूप में देखा जा रहा है, जिसका उद्देश्य ओबीसी, दलित और अल्पसंख्यक समुदायों का समर्थन हासिल करना है।
लेकिन चौधरी के लिए अपने कुर्मी समूह को एकजुट करना एक चुनौती होगी क्योंकि इस समुदाय ने राज्य में कभी भी किसी भी पार्टी के लिए सामूहिक रूप से मतदान नहीं किया है। 2024 के लोकसभा चुनावों में, कुर्मी समुदाय के एक बड़े हिस्से ने सपा-कांग्रेस गठबंधन को वोट दिया। 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में, सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने ओबीसी पार्टियों का एक गठबंधन बनाया था, जिसके परिणामस्वरूप बीजेपी की सीटों की संख्या 2017 के 312 से घटकर 255 रह गई। वहीं, सपा की सीटों की संख्या 2017 के 47 से बढ़कर 2022 में 111 हो गई।
