उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ ने जहां अपने मंत्रिमंडल का विस्तार और फेरबदल दोनों आसानी से कर दिखाए वहीं कर्नाटक में येदियुरप्पा मंत्रिमंडल के विस्तार ने पार्टी में असंतोष सुलगाया है। न अनुभव को पैमाना बना पाए और न क्षेत्रीय संतुलन ही बिठा सके। एक तो मंत्रिमंडल का गठन करने में पच्चीस दिन लगाए ऊपर से सबका साथ भी नहीं ले पाए। चहेतों को मंत्री पद बांटने से असंतोष सतह पर आया है। कांग्रेस और जनता दल (सेकु) के जिन बागी विधायकों ने अपनी सदस्यता गंवा कर येदियुरप्पा की ताजपोशी की राह आसान बनाई, मंत्री पद नहीं मिलने से उनकी मायूसी भी काबिले गौर है। पर योगी इस मामले में सुलझे हुए निकले। क्षेत्रीय संतुलन तो वे भी ज्यादा नहीं बिठा सके पर चार मंत्रियों से इस्तीफे लेकर अच्छा संदेश जरूर दिया।

धर्मपाल सिंह, राजेश अग्रवाल, अनुपमा जायसवाल और अर्चना पांडेय की कार्यप्रणाली पर उंगली उठी थी। बेसिक शिक्षा मंत्री अनुपमा जायसवाल और स्टांप व निबंधन मंत्री नंदगोपाल नंदी दोनों के थोक में किए गए बेतुके तबादलों को खुद मुख्यमंत्री को रद्द करना पड़ा था। पर, अपनी जुगाड़बाजी के कौशल से नंदी बच गए। इस बार दो जातियों की नुमाइंदगी नहीं होने की शिकायत भी योगी ने दूर कर दी। अशोक कटारिया को मंत्री बना गुर्जर समुदाय को संतुष्ट किया तो आगरा के जीएस धर्मेश को मंत्री बना कर दलितों में सबसे बड़ी जाटव जाति को भी हिस्सेदारी दे दी।

मायावती इसी बिरादरी की ठहरीं। सूबे में भाजपा के दलित विधायकों में 15 जाटव हैं। लेकिन क्षेत्रीय असंतुलन फिर भी बरकरार है। जहां तक गुर्जर समुदाय का सवाल है, 2017 में इस बिरादरी के पांच विधायक जीते थे। पांचों ही भाजपाई। पर मेरठ दक्षिण के सोमेंद्र तोमर, लोनी के नंदकिशोर, दादरी के तेजपाल नागर, मीरापुर के अवतार सिंह भडाना और गंगोह के प्रदीप चौधरी में से सरकार गठन के वक्त मंत्री पद किसी को नसीब नहीं हुआ था। किस्मत से प्रदीप चौधरी कैराना से लोकसभा के लिए चुन लिए गए। बचे भडाना। वे सारी मान्यताओं और नैतिकताओं से ऊपर हैं। भाजपा का विधायक रहते हुए कांग्रेस के उम्मीदवार की हैसियत से लोकसभा चुनाव लड़ लिया।

हार गए तो भी भाजपा की विधानसभा सदस्यता नहीं छोड़ी है। पार्टी में वापसी की जुगत भिड़ा रहे हैं। औरों से भिन्न होने का दम भरने वाली भाजपा ने भी उनके खिलाफ अब तक दल बदल की कार्रवाई नहीं की। इसके अलावा गुर्जर बिरादरी के तीन एमएलसी वीरेंद्र सिंह, राम सकल गुर्जर और नरेंद्र भाटी भी सपा से इस्तीफा दे उपचुनाव के बाद भाजपाई बन गए। तो भी योगी ने मंत्री पद अपने संगठन के तपे-तपाए बिजनौर के खांटी गुर्जर एमएलसी अशोक कटारिया को दिया है। राजेश अग्रवाल को 75 साल की उम्र सीमा के कारण हटना पड़ा। पर 73 साल के उदयभान सिंह को मंत्री बनवाया गया तो उम्र आड़े नहीं आई। हां, 74 साल के एक बुजुर्ग खटीक विधायक का नाम आखिरी वक्त पर उम्र के बहाने काट दिया गया।

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मेरठ, बागपत और बरेली जैसे कई जिले अब भी उपेक्षित हैं। मुजफ्फरनगर को ज्यादा भाव मिला है। मोदी सरकार में संजीव बालियान मंत्री थे ही। अब कपिल देव अग्रवाल और विजय कश्यप योगी सरकार में मंत्री बन गए। अपना दल के आशीष पटेल के हाथ निराशा ही लगी। वे अनुप्रिया पटेल के पति हैं। पिछली केंद्र सरकार में अनुप्रिया मंत्री थीं। इस बार उन्हें मोदी ने मौका नहीं दिया। उम्मीद थी कि यूपी में उनके एमएलसी पति को मंत्री बना दिया जाएगा। कुल मिलाकर मंत्रिमंडल में अब भी वर्चस्व ब्राह्मणों का ही है। 56 में सबसे ज्यादा नौ ब्राह्मण हैं और आठ राजपूत। जाटों की भी पौ बारह हो गई। लक्ष्मी नारायण चौधरी और भूपेंद्र सिंह कैबिनेट में हैं तो उदयभान सिंह राज्यमंत्री।