मान न मान, मैं तेरा मेहमान, यह बड़ा पुराना मुहावरा है। इन दिनों गुजरात की सियासत में भी फिट बैठ रहा है। जहां चुनाव में मुख्य मुकाबला भले भाजपा और कांग्रेस के बीच हो पर उत्तर प्रदेश की क्षेत्रीय पार्टियां सपा और बसपा भी बिन बुलाए मेहमान की तरह जा पहुंची हैं। सपा ने 182 में से महज चार सीटों पर खड़े किए हैं अपने उम्मीदवार। लेकिन अखिलेश यादव के पास तो अब फुर्सत ही फुर्सत है। तीन दिन लगा दिए प्रचार में। परिणाम का आभास न हो, कैसे संभव है। पर मोदी ने उनके साथ छल कर दिया था। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में विकास का गुजरात मॉडल ऐसा बेचा कि बेचारे अखिलेश का पांच साल का कामकाज धरा रह गया। गुजरातियों से अपना दुखड़ा रोना भूले नहीं। सवाल दाग दिया कि भाजपा बाइस साल तक राज करने के बाद भी गुजरात में ऐसा एक भी एक्सप्रेस-वे क्यों नहीं बना पाई जैसा उन्होंने पांच साल के भीतर आगरा से लखनऊ तक बना कर दिखा दिया। जिस पर सुखोई जैसे लड़ाकू विमानों की लैंडिंग तक कर चुकी है वायुसेना। भाजपा को अखिलेश यह बताना भी नहीं भूले कि गुजरात से उनका पांच हजार साल पुराना नाता है। पाठकों को बता दें कि मथुरा से तब कृष्ण द्वारिका गए थे। यूपी के यादव खुद को कृष्ण वंशी ही मानते हैं। रही बसपा की बात तो मायावती के जज्बे की दाद देनी चाहिए। गुजरात में वे चुनाव बेशक बार-बार लड़ती हैं और हारती हैं। पर हौसला फिर भी नहीं खोतीं। 2012 में 163 उम्मीदवार उतारे थे। सबकी जमानत जब्त हुई थी। तो भी इस बार फिर 144 खड़े किए हैं। ओखी तूफान के कारण कांग्रेस और भाजपा ने जिस दिन अपनी चुनावी सभाएं रद्द कर दी थीं मायावती ने उस दिन भी राजकोट की सभा को टाला नहीं। कांग्रेस उन पर भाजपा के हाथों में खेलने का आरोप लगा रही है। दरअसल दलितों के नेता जिग्नेश मेवाणी जिस वड़गाम सीट पर कांग्रेस की मदद से चुनाव लड़ रहे हैं, वहां भी खड़ा किया है मायावती ने अपना उम्मीदवार। वे अगर दलितों के वोट काटेंगी तो फायदा भाजपा को ही तो होगा।

ठेठ बिहारी
लालू अपना अंदाज दिखाए बिना चूकते नहीं। सुशील मोदी के बेटे की शादी में पहुंच कर तमाम अटकलों पर विराम लगा दिया। अन्यथा भाईलोग तो यही धारणा बना बैठे थे कि लालू नहीं आएंगे। सुशील मोदी उनकी बेटियों की शादियों में शामिल होते रहे तो भला लालू उलाहना क्यों सहते? भले उनके बेटे ने सुशील मोदी को खरी-खोटी सुनाई थी। तब लालू ने बेटे को डांटने के बजाए बचाव ही किया था उसका। रही अंदाज दिखाने की बात तो सुशील मोदी की आचार संहिता की परवाह नहीं की लालू ने। मोदी ने साफ मना किया था मेहमानों को उपहार लाने से। पर लालू गए और दुलहन को तोहफा देकर ही माने। बिहारियों में रिवाज है कि दुलहन को मुंह दिखाई में कुछ देते जरूर हैं। सो, लालू ने अपना रिवाज निभाया। जाते-जाते हंसी-ठिठोली करना भी नहीं भूले। सुशील मोदी से कह गए कि उनके बेटे के लिए भी कोई लड़की तलाशें। मोदी तब तो चुप रहे लेकिन बाद में मीडिया से मुखातिब हुए तो लगे अपनी शर्तें बताने। यही कि लड़की तो वे तलाश देंगे पर तीन शर्तें लालू को माननी पड़ेंगी। जाति-बंधन तोड़ना, दहेज का निषेध और अंग दान का वचन। लालू ने इस पर प्रतिक्रिया देना जरूरी नहीं माना है। उन्हें जो कहना था, सही वक्त पर कह आए।