नीकु वाकई जिद्दी ठहरे। नीकु यानि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर जिद्दी होने का आरोप नया नहीं है। विरोधी उन पर यह आरोप लगातार लगाते रहे हैं। विरोधी ही क्यों यह शिकायत तो उनके करीबी भी अक्सर ही करते मिलते हैं। बेशक दबी जुबान से ही सही। नीकु को जिद है कि अपने सूबे में शराब बंदी को किसी भी सूरत में लागू करके ही दम लेंगे। तभी तो ऐलान कर दिया कि या तो वे रहेंगे या फिर शराब खोर। जहां भी जा रहें हैं, केवल शराब बंदी की बात कर रहे हैं। सूबे में हजारों जीविका समूह भी हैं जिन्हें नीकु की सरकार ने ही खड़ा किया है, सरकारी अनुदान देकर। इन दिनों नीकु जगह-जगह जाकर विकास कार्यों की समीक्षा कर रहे हैं।
हर जगह जीविका समूह की महिलाओं को भी संबोधित करते हैं। जनप्रतिनिधियों से तो खैर मिलते ही हैं। जीविका समूह की महिलाएं उनकी जम कर वाहवाही कर रही हैं। करेंगी भी। उन्हीं की आड़ लेकर नीकु डंके की चोट पर कह रहें हैं कि शराब बंदी के उनके फैसले से सभी महिलाएं खुश हैं। अपने मुंह मियां मिट्ठू बनते हुए इसे ऐतिहासिक कदम भी बता रहें हैं। शराब बंदी का सरकार प्रचार भी खूब कर रही है। ऊपर से यह तुर्रा अलग दिया जा रहा है कि इस फैसले से लोगों के अच्छे दिन दिखने लगे हैं। सूबे में अपराधों का ग्राफ भी गिरा है। शराब और शराबी की सूचना मिलते ही पुलिस वाले फर्राटे भरते हैं। जबकि अपहरण और बलात्कार जैसी घटनाओं पर वे उतनी मुस्तैदी नहीं दिखाते। यहां तक कि एफआइआर न दर्ज करने की शिकायतों की हर दिन भरमार रहती है। फिलहाल तो चर्चा केवल शराब बंदी की है। भले इसकी चर्चा केवल नीकु करते हों। उनकी पार्टी और लालू की पार्टी के नेता तो चुप चाप तमाशा देख रहे हैं। रही विरोधियों की बात तो वे कुछ तो कहेंगे ही। कुछ और नहीं सूझ रहा तो नीकु पर इस बहाने राजनीति करने का ही मुलम्मा चढ़ाने लगे हैं। बात किसी हद तक तो ठीक भी है उनकी। सूबे में शराब को बढ़ावा देने वाले भी तो नीकु ही थे।
गिरगिटी रंग
लालू का वाकई जवाब नहीं। कुछ दिन पहले तक अपने सजातीय योग गुरु रामदेव की खिल्ली उड़ा रहे थे। लेकिन अचानक उन्हें अपने घर पर बुला लिया। खबरों में बने रहना लालू की फितरत ठहरी। रामदेव ने उनके गाल पर क्रीम लगाई तो बाबा का हाथ झटकने के बजाए लालू मंद-मंद मुस्काते दिखे। पत्रकारों ने चिढ़ाने के मकसद से अतीत की याद दिलाई तो लालू तपाक से बोले कि पिछले विवाद से क्या लेना-देना। वह तो यों ही था। कुछ दिन बाबा भटक गए थे। राजनीति के झमेले में उलझ गए थे। जो भी है, अपने हैं और हमेशा रहेंगे। उनके उत्पादों का मैं प्रचार करूंगा। बाबा ने मौका ताड़ा और लालू के चेहरे पर चमक लाने वाली स्वर्ण क्रीम मसल दी। जाहिर है कि जिन्हें चेहरे पर चमक की चाहत होगी, वे सब बाबा की शरण में जाएंगे। जो उन तक नहीं पहुंच पाएंगे, वे बाबा के चेलों से ही काम निकाल लेंगे। मीडिया को अच्छा मौका मिल गया। आलोचना के बहाने ही सही, शोहरत तो हुई ही दोनों की।
आदिवासी कवच
नीकु ने पड़ोसी राज्य झारखंड के मुख्यमंत्री को नसीहत दी थी। पर रघुवर दास भी उन्नीस साबित नहीं हुए। ताल ठोंक कर मैदान में आ गए। नीकु को खरी-खोटी सुना रहे हैं। आदिवासी राज्य के मुख्यमंत्री हैं तो इसका मतलब यह तो नहीं कि नीकु उन्हें नीचा दिखा दें। नीकु ने ऐलान किया है कि वे शराब बंदी के मुद्दे पर झारखंड में जागरण करेंगे। रघुवर दास को दुविधा में डालेंगे। पर चालाक रघुवर दास ने पहले ही राग अलापना शुरू कर दिया कि नीतीश कुमार को सत्ता का नशा हो गया है। जो शराब के नशे से भी घातक है। झारखंड में आए तो मुंह की खाएंगे। सबक दे देंगे उन्हें सूबे के आदिवासी।
मुंगेरी बने धूमल
नेताओं को तो धूल में लठ मारने की बीमारी हो गई है। हिमाचल के पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ही भला अपवाद कैसे हो सकते हैं। पिछले तीन साल से भविष्यवाणी करते चले आ रहे हैं कि सूबे में कभी भी मध्यावधि चुनाव हो सकते हैं। पर भाजपा के ही बाकी नेताओं को हकीकत का आभास है। पार्टी के सूबेदार रह चुके जयराम ठाकुर ने फरमाया है कि अब भाजपा को आम चुनाव की तैयारी शुरू कर देनी चाहिए। तो क्या इसका मतलब सूबे में किसी भी तरह के संवैधानिक संकट की संभावना को नकारना नहीं है। कानून की चाल भी शनि जैसी ही हो गई है। वक्री और सुस्त। ऐसे में मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह पर कोई शिकंजा फिलहाल तो कसता लग नहीं रहा। फिर क्यों भाजपा मध्यावधि चुनाव की चर्चा कर अपनी ऊर्जा जाया कर रही है। हिमाचल के कांगे्रसी विधायकों में उत्तराखंड के विधायकों जैसा दम कहां। वीरभद्र से बगावत कर वे अपनी ढपली बजाने से रहे। फिर उत्तराखंड में भी बागियों के हाथ क्या लगा।
अलबत्ता कानूनी दाव-पेंच के बाद हरीश रावत को ही मिल गया है बहुमत दिखाने का मौका। इससे वीरभद्र खेमा बम-बम है। केंद्र कैसे कर पाएगा अब वीरभद्र सरकार को गिराने की हिम्मत। अभी से भाजपा अपनी पटरी पर आ जाए तो उसके हित में होगा। यों भी हिमाचल में ज्यादा अच्छी तो नहीं है भाजपा की हालत। मोदी लहर का असर भी अब नजर नहीं आता। पंचायत चुनाव में यह बात साफ हो गई। सरकारी कर्मचारियों पर अच्छा असर है कांगे्रस का। बेशक खजाना खाली हो, पर उनके लिए तो वीरभद्र ने रियायतों की रेवड़ियां खूब बांटी हैं। जयराम ठाकुर ने अपनी पार्टी को चुनावी तैयारी की सलाह दी तो वीरभद्र ने उन पर ही कटाक्ष कर दिया- जयराम ठाकुर को जयराम की। कम से कम किसी ने तो हकीकत को जाना। रही धूमल की बात, वे बंगलुुर से 15 दिन बाद लौटे हैं अपनी सेहत सुधार कर। वे जयराम ठाकुर की राय पर क्या प्रतिक्रिया देंगे, पता नहीं। पर सूबे में भाजपा की हालत अच्छी नहीं है, इसमें तो कोई दो राय है ही नहीं।
बौखलाहट की बानगी
चुनाव आयोग ने अभी आंखें तरेरी ही थी कि दीदी को पसीना आ गया। पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में विपक्षी दलों की शिकायतों की आखिर आयोग कब तक करता अनदेखी। लेकिन पुलिस-प्रशासन का तटस्थ रुख भला ममता बनर्जी को रास क्यों आता। वे तो थानेदारी पर उतर गईं। पुलिस की भूमिका के लिए अपनी चुनावी रैलियों तक में पुलिस पर तंज कसने लगी। इसमें संदेह नहीं कि कोलकता में पुलिस कमिश्नर बनते ही सोमेन मित्र ने आयोग की मंशा के मुताबिक तेवर दिखाए। चुनाव आयोग ने ममता के चहेते राजीव कुमार को हटा कर तैनात किया था सोमेन को। ममता ने उन्हीं को नसीहत दे डाली। फरमाया कि एक पखवाड़े पहले ही कुर्सी पर बैठे लोग भी सिर पर मुकुट पहनने लगे।
पुलिस बल को डरपोक तक बता दिया। इससे पुलिस के आला अफसरों में बेशक नाराजगी बढ़ी होगी। एक पुलिस अफसर ने अपनी पीड़ा जता भी दी कि जब तक व सत्तारूढ़ पार्टी के इशारों पर नाचते थे, तब तक सब कुछ ठीक था। लेकिन जैसे ही निष्पक्ष और तटस्थ भाव से कर्तव्य पालन शुरू कर दिया, उन्हें डरपोक बताया जाने लगा। अफसर भी अंजाम जानते हैं। ममता अगर फिर सत्ता में आ गई तो पुलिस ने भारी फेरबदल कर देंगी। गिन-गिन कर बदले लेंगी। कहा भी है कि कुछ दिन की ही बात है। सत्ता में दुबारा आते ही हिसाब चुकाएंगी। पर पुलिस में भी रीढ़ वाले अफसरों का टोटा नहीं है। वे जानते हैं कि सरकारें तो आती-जाती रहती हैं। पर वर्दी वाले ठहरे पक्की नौकरी वाले। कब तक डर कर जिएंगे। ममता की दबंगई अब विपक्ष की आलोचना का भी मुद्दा बन रहीं हैं। लेकिन सत्ता के दंभ में चूर ममता ऐसी कड़वी बातों की परवाह करने को कतई तैयार नहीं।
नहीं लिया सबक
राहुल बाबा का हिमाचल दौरा तय हो गया है। कांगे्रस के उपाध्यक्ष 16 मई को पहुंचेंगे दो दिन के दौरे पर हिमाचल। शुरुआत धूमल के इलाके हमीरपुर से करेंगे। धूमल तो यही चाहेंगे कि उनके गढ़ में राहुल की सभा में ज्यादा भीड़ जुट ही न पाए। भीड़ जुटी तो संदेश यही जाएगा कि भाजपा के धुरंधर का जनाधार खिसक रहा है। उनके इलाके में अपनी जड़ें जमाने की कोशिश में कब से लगी है कांगे्रस। पर सफलता मिल नहीं पाई। अब राहुल के बहाने कोशिश होगी उनके गढ़ में सेंध लगाने की। इसके लिए वीरभद्र को पूरी ताकत झोंकनी पड़ेगी।
वीरभद्र तो अकसर उलाहना देते रहे हैं कि हमीरपुर ने मुख्यमंत्री भले दो बार धूमल को बनाया हो पर वहां विकास के सारे काम कांगे्रस ने कराए। इस नाते वीरभद्र को भरोसा है कि कांग्रेस यहां देर-सवेर मजबूत होगी ही। शायद इसी गरज से कराया जा रहा है राहुल गांधी का दौरा। हमीरपुर ही क्यों राहुल तो शांताकुमार के गढ़ पालमपुर में भी जाएंगे। तो क्या कांगे्रस ने भाजपा के गढ़ में पैठ की रणनीति बनाई है। शायद कांगे्रस ही भूल गए हैं कि लोकसभा चुनाव में हिमाचल के जिन इलाकों में भी राहुल गए थे, कांग्रेस को हार का मुंह ही देखना पड़ा था। पुरानी लोकोक्ति भी है कि जहां-जहां पैर पड़े संतन के, तहां-तहां बंटाधार। कहीं भाजपा राहुल के दौरे का यही कहकर मखौल न उड़ाने लगे।
आंधी पर भारी आस्था
सिंहस्थ में पहले ऐसा कभी हुआ हो, किसी को याद नहीं। भारी आंधी के बीच असमय बारिश भी याद नहीं बुजुर्गों को। पर पिछले हफ्ते हुई प्रकृति की बेरुखी ने जनहानि और अव्यवस्था ऐसी फैलाई कि सरकारी अमला हिल गया। और तो और खुद मुख्यमंत्री शिवराज चैहान भी शायद ही चैन से सो पाए होंगे उस रात। प्रभारी मंत्री की रात तो जागते हुए कटी ही। लेकिन शासन के काम आया आस्था और सहयोग का जनतंत्र। उज्जैन ही क्यों देवास और आस-पास के दूसरे गांवों से भी उमड़ पड़ी मदद। एक तरफ सेवा और सहयोग का जज्बा दिखाने वाले लोग थे तो दूसरी तरफ सुबह से ही पंचकोशी यात्रा कर मेला क्षेत्र में प्रवेश करने वाले लाखों श्रद्धालु थे। श्रद्धा का ऐसा अनूठा भाव कि किसी सुविधा की दरकार ही नहीं।
सिर पर पोटली रख यात्रा पर निकलने वाले श्रद्धालु। ऊपर से तूफान के बाद सीवेज लाईन टूट गई तो उसका पानी क्षिप्रा में मिलने की घटना ने नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण के अफसरों के होश उड़ा दिए। प्राधिकरण की तीन बटालियन रात भर सफाई में लगी रही। सुबह चार बजे जाकर खत्म हो पाया नदी का डायलिसिस। तूफान से गिरे पंडाल साधु-संतों ने खुद बनाए थे। राज्य सरकार ने दरियादिली दिखाई और मरने वाले सभी सातों लोगों के परिवार वालों को पांच-पांच लाख रुपए की मदद देने की घोषणा तत्काल कर डाली। गुरुवार की तबाही देख हर कोई यही आशंका जता रहा था कि शुक्रवार सवेरे का स्नान फीका जाएगा। लेकिन हुआ एक दम उल्टा। शुरुआती अमृत स्नान से भी कहीं ज्यादा श्रद्धालु जुटे दूसरे पर्व स्नान पर। अनुमान है कि करीब पच्चीस लाख ने लगाई आस्था की डुबकी। ऊपर से मुख्यमंत्री का एक फोटो सोशल मीडिया पर छाया था। वे तड़के ही पहुंच गए थे उज्जैन। श्रद्धालुओें की कतार देखी तो लगे केतली से उन्हें खुद ही चाय परोसने। हर किसी ने स्वत: स्फूर्त होकर निभाई अपनी जिम्मेवारी। तभी तो नहीं लग पाया सिंहस्थ की छवि पर कोई दाग। श्रृद्धा और सेवा के इसी अदभुत रूप को ही तो माना जाएगा असली धर्म।
भाजपा की किरकिरी
उत्तराखंड में हरीश रावत सरकार को गिराने के चक्कर में भाजपा ने अपनी अच्छी खासी किरकिरी करा ली। पहले उसे नैनीताल हाई कोर्ट ने झटका दिया और अब सुप्रीम कोर्ट ने उसकी ऐसी की तैसी कर दी। 10 मई को विधानसभा में बहुमत साबित करने का मौका देकर सुप्रीम कोर्ट ने हरीश रावत को नई संजीवनी दे दी है। उत्तराखंड की राजनीति में अब फिर से हरीश रावत केंद्र बिंदु बन गए हैं। पहले रावत का स्टिंग ऑपरेशन कराकर, फिर रावत की सरकार बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन लगा कर और बाद में रावत के पीछे सीबीआइ लगा कर भाजपा के रणनीतिकारों ने रावत को उत्तराखंड का ही नहीं, बल्कि देश का एक बड़ा नेता बना दिया है। जैसे इंदिरा गांधी ने 1981 में हेमवती नंदन बहुगुणा को गढ़वाल संसदीय सीट से उपचुनाव हरवाने के लिए सारे हथकंडे अपनाए थे। पर वे बहुगुणा को चुनाव नहीं हरवा पाई थी। अलबत्ता बहुगुणा एक बड़े राष्ट्रीय नेता के रूप में उभरकर सामने आए थे। वही गलती हरीश रावत के मामले में केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार और भाजपा के रणनीतिकारों ने की है। जिससे रावत के प्रति सूबे की जनता में सहानुभुति बढ़ी है।
इस सारे मामले में सबसे ज्यादा दुर्गति भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री कैलाश विजयवर्गीय, भगत सिंह कोश्यारी, अजय भट्ट व सतपाल महाराज की हुई है। भाजपा के इन नेताओं ने ही हरीश रावत की सरकार का तख्ता पलटने का ठेका लिया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह को पूरी तरह आश्वस्त किया था कि वे कांग्रेस के 18 विधायक तोड़ कर नई पार्टी बनवा देंगे। परंतु भाजपा के ये नेता कांग्रेस के नौ ही विधायक तोड़ने में सफल हो पाए। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अब विजयवर्गीय और श्याम जाजू ने देहरादून में फिर से डेरा डाल लिया है। कांग्रेस, बसपा, निर्दलीय और यूकेडी के विधायकों को तोड़ने के लिए विजयवर्गीय हर तरह के हथकंडे अपना रहे हैं। हरीश रावत ने भी उन्हें विधायक खाऊ और विधायक तोड़ने वाले गिद्ध की संज्ञा इसीलिए तो दी है।
नायाब फार्मूला
राजस्थान में भाजपा के विधायक और नेता अपने अच्छे दिन आने का इंतजार करते हुए परेशानी भी महसूस कर रहे हैं। मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे बड़ी होशियारी से विधायकों को टाइम पास की मीठी गोली देकर चुप रहने को मजबूर कर रही है। प्रदेश में ढाई साल से शासन कर रही भाजपा के विधायकों को पिछले एक साल से लाल बत्ती का भरोसा दिया जाता रहा है। मुख्यमंत्री की मुसीबत है कि विधायकों की बंपर संख्या है और पद गिनती के हैं।
उधर, विधायकों का आलम ये है कि एक अनार सौ बीमार वाली बात सोलह आने सटीक बैठ रही है। विधायक भी मंत्री और सरकार में मंत्री वाले दर्जे के पद के लिए कुछ भी जोखिम उठाने को तैयार बैठे है। कुर्सी से दूर बैठे कुछ विधायकों ने अजीब सा फार्मूला सरकाया है। उनका तर्क है कि ढाई साल से मंत्री पद का सुख भोगने वालों को अब सिर्फ विधायक के तौर पर काम करना चाहिए। इसी तरह से जो सिर्फ विधायक ही है उन्हें आने वाले ढाई साल के लिए सरकार में मलाईदार पद मिलने चाहिए। आखिर सभी ने कुछ खर्च कर ही चुनाव लड़ा और जीता है तो बराबर का हक मिलना चाहिए।
मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे भी विधायकों की पीड़ा समझती हैं तभी तो हर दूसरे महीने मंत्रिमंडल में फेरबदल की अटकलें उड़ जाती है। इससे विधायकों की बोलती बंद हो जाती है और वसुंधरा राजे के दरबारियों के मजे आ जाते हैं। अफवाह में निगम बोर्ड में राजनीतिक नियुक्तियों का भी पासा होता है। इससे विधायकों के साथ ही पार्टी के कई नेताओं के चेहरे चमक उठते है। ऐसा प्रदेश में पिछले एक साल से हो रहा है, पर कुछ दिनों बाद ही यह अफवाह साबित होती है और फिर नए सिरे से किसी नए बहाने से फिर उसी तरह की अफवाह उड़ जाती है।
नई अफवाह में कहा जाता है कि इस बार वसुंधरा राजे गंभीर है और उन्होंने राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह से मिल कर सूची पर विचार भी कर लिया है। गाहे बगाहे वसुंधरा राजे जब राज्यपाल कल्याण सिंह से औपचारिकता के नाते मिलती है तो फिर से अफवाह उड़ जाती है। जबकि राज्यपाल से मुख्यमंत्री का मिलना नियमित होता है पर भाई लोग इसका भी राजनीतिक लाभ लेने से नहीं चूकते है आखिर विधायकों और नेताओं का असंतोष दबाने का यह सटीक तरीका बन गया है।
इस सबके बीच भाजपा के करीब आधा दर्जन वरिष्ठ विधायक तो साफ तौर पर सरकार की कार्यशैली से खफा हो गए हैं और संघ व केंद्रीय नेतृत्व को हालत सुधारने की गुजारिश ही करते रहते हैं। इन दमदार वरिष्ठ विधायकों का तो साफ मानना है कि पूरे प्रदेश में लूट मची है और अब इसमें संगठन के लोग भी शामिल हो गए हैं। आरएसएस के प्रदेश पदाधिकारियों की भी ऐसी ही रिपोर्ट है कि प्रदेश सरकार की जनता में छवि बिगड़ी है। साथ ही लोगों में धारणा बनती जा रही है कि नौकरशाह पूरी तरह से सरकार के नाम पर लूट मचा रहे है। इसे रोकने के लिए ही संघ के साथ ही भाजपा के कई धुरंधर अंदरखाने केंद्रीय नेतृत्व को आगाह करने में लगे हैं।