आजकल हर कोई राग विकास का ही अलाप रहा है। विकास का मतलब होता है निवेश। बिहार तो वैसे भी आबादी में बड़ा और विकास में पिछड़ा सूबा ठहरा। तभी तो बीमारू की हैसियत बनी। नीतीश कुमार भी विकास की चिंता में पड़ गए हैं। भले दूसरे मुख्यमंत्रियों की तरह वे निवेशक सम्मेलन न कर पा रहे हों। करीबियों से कहा है कि उन्हें पूंजी निवेश का ढिंढोरा पीटने की जरूरत नहीं। हाल ही में जापान गए थे।

रवानगी से पहले न इस यात्रा के बारे में किसी को कुछ बताया और न यात्रा का मकसद। चार दिन में वापस आ गए। जापान में थे तो पटना और दिल्ली में उनका प्रचार तंत्र उनकी गतिविधियों का ब्योरा दे रहा था। बोधगया से नालंदा तक रेल चलाने और बौद्ध स्थलों के विकास में पूंजी निवेश पर बात चलाई है। जापान पहले भी जा चुके हैं। पर मुख्यमंत्री की हैसियत से पहली बार गए। केंद्रीय मंत्री के नाते जापान का दौरा लालू यादव ने भी किया था।

उनकी जापान यात्रा के चर्चे भी खूब हुए थे। नीतीश ने कटाक्ष किया था कि लालू को जापानी गुड़िया भा गई है। लालू अब जेल में हैं। सो नीतीश की जापान यात्रा की खिल्ली उड़ाने का धर्म बेटे तेजस्वी ने अदा किया। अपने मुंह बोले चाचा के बारे में फरमाया कि चुनाव सामने हैं, लिहाजा उसे ध्यान में रखते हुए कर दिया जापान यात्रा से निवेश लाने का उपक्रम। भतीजे की बात अखरी तो जरूर होगी पर पलटकर कोई जवाब अभी तक तो दिया नहीं मुख्यमंत्री चाचा ने।