राजस्थान में तो हवा ज्यादा ही उखड़ने लगी है भाजपा की। लोकसभा की दोनों और विधानसभा की अपनी इकलौती सीट को बचाने में भाजपा उपचुनाव में नाकाम क्या हुई, खुद भाजपाईयों के ही हौसले पस्त हो गए। कांग्रेसी तो पहले से ही मान कर चल रहे हैं कि सूबे में हर बार सत्ता परिवर्तन जैसे सनातन परंपरा सी हो चुकी है। इस नाते इस बार बारी उन्हीं की है। ऊपर से उपचुनाव के नतीजों ने आग में घी का काम कर दिखाया। निराशा का आलम यह है कि वसुंधरा सरकार के मंत्री और भाजपा पदाधिकारी अब अपने कार्यकर्ताओं से माफी मांगते नजर आ रहे हैं। चार साल तक सत्ता की मलाई खाने वाले नेताओं ने अच्छे दौर में तो कार्यकर्ताओं की सुध ली नहीं। अब चुनाव सिर पर दिख रहा है तो लगे चिरौरी करने। पर कार्यकर्ता भी तो गुस्से से भरे बैठे हैं। सबक सिखाने के मूड में। ऐसे माहौल में अमित शाह और उनके प्रबंधक भी कुछ कर नहीं पा रहे। हालांकि आला कमान के निर्देश पर बड़े नेताओं ने जिला स्तर पर प्रवास शुरू कर दिए हैं। कार्यकर्ताओं की सुध लेना तो बहाना ठहरा।

हकीकत तो जमीनी तस्वीर को करीब से आंकने की है। फरमान तो आलाकमान ने इसी तरह का मुख्यमंत्री और उनके मंत्रियों को भी सुनाया है। लेकिन लोग भ्रष्टाचार से त्रस्त तो हैं ही अपनों की बेरुखी से भी खार खाए बैठे हैं। अपने श्रीगंगानगर दौरे में तो मुख्यमंत्री को लोगों से फरियाद करनी पड़ गई कि वे माफ कर दें, धरना-प्रदर्शन न करें। जो मांगेंगे, सरकार उससे ज्यादा ही देगी। कोटा में गृहमंत्री गुलाब चंद्र कटारिया को माफी मांगनी पड़ी।

मंच से ही फरमाया कि मंत्री, विधायक और मेयर की गलती की सजा पार्टी को मत दे देना। उधर कोटा में भाजपा विधायक भवानी सिंह राजावत और दूसरे कई नेता कटारिया पर भड़क गए। उन्हें शिकायत सूबे की पुलिस की कार्यप्रणाली से थी। अमित शाह ने बूथ स्तर तक समितियां तो बना दी पर सरकार के कारनामे तो लोगों का मन नहीं मोह पा रहे। भ्रष्टाचार की शिकायतें अंदरखाने आलाकमान तक भी पहुंची हैं। खासकर चहेते अफसरों की कमाऊ इलाकों में तैनाती के जरिए किए गए भ्रष्टाचार की।
(प्रस्तुति : अनिल बंसल)