राजस्थान में चुनावी माहौल गरमा रहा है। सूबे की सभी दो सौ विधानसभा सीटों के लिए एक साथ सात दिसंबर को होगा मतदान। नामजदगी के पर्चे दाखिल करने की आखिरी तारीख 19 नवंबर है। लिहाजा कांग्रेस और भाजपा दोनों के भीतर ही यह बगावत का दौर भी है। जिनको टिकट नहीं मिल रहा, वे अपने दल को बाय-बाय कर रहे हैं। छिटपुट बगावत से बसपा जैसी सीमित प्रभाव वाली पार्टियां भी मुक्त नहीं। बहरहाल हवा का रुख कहें या सूबे की सियासी रीति, ज्यादा खलबली भाजपाई खेमे में है। आलाकमान और उनके सिपहसालारों ने कोशिश तो खूब की थी कि मध्यप्रदेश की तर्ज पर राजस्थान में भी मौजूदा विधायकों में से एक तिहाई के टिकट काट दें। पर मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने इस बार भी अपनी ही चलाई। राजस्थान में वसुंधरा से टकराव मोल लेने की हिम्मत ही नहीं जुटा पाया पार्टी का आलाकमान। अब वसुंधरा के करीबी भी मान रहे हैं कि 2013 अब अतीत हो चुका है। बंपर बहुमत तो दूर इस बार बहुमत के भी लाले पड़ जाएंगे।

इसके उलट कांग्रेसी खेमे में रौनक दिखती है। मुख्यमंत्री पद को लेकर अलबत्ता खींचतान हो सकती थी। भाजपा इसी फिराक में थी कि राहुल गांधी अतिउत्साह में सचिन पायलट को पार्टी का चेहरा घोषित कर देंगे। राहुल ने ऐसा नहीं किया। अब मुख्यमंत्री का फैसला चुनाव बाद ही होगा। बगावत न हो इसके लिए सचिन पायलट और अशोक गहलोत दोनों ही लड़ेंगे विधानसभा चुनाव। भाजपा खुशफहमी पाल बैठी थी कि प्रभुदयाल सैनी को सूबेदार बनाने से सैनी मतदाता कांग्रेस को छोड़ उसके साथ आ जाएंगे क्योंकि कांग्रेस अपने सबसे कद्दावर सैनी नेता अशोक गहलोत की उपेक्षा करेगी। पायलट गुर्जर हैं। उन्हें तरजीह देने से मीणा भी कांग्रेस से बिदक जाते। लेकिन संभल कर मोहरे चलना काम आ रहा है।

भाजपा के हरीश मीणा ही इस्तीफा देकर कांग्रेस में शामिल हो गए। जहां उनके भाई नमो नारायण मीणा पहले से थे। पिछले चुनाव में हरीश मीणा ने नमो नारायण मीणा और किरोड़ी लाल मीणा दोनों को शिकस्त दी थी। टिकटों के बंटवारे में जिस तरह वसुंधरा ने अपने जेबी पार्टी सूबेदार के कंधे पर बंदूक रख कर अपनी पैतरेबाजी दिखाई, उससे आलाकमान बेबस साबित हुआ। पाठकों को याद दिला दें कि वसुंधरा राजे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह के वक्त 2014 में विदेश चली गई थीं। आलाकमान ने वसुंधरा के वर्चस्व को तोड़ने के लिए दिल्ली से प्रकाश जावड़ेकर को जयपुर भेजा था। पर जावड़ेकर भी पार्टी कार्यकताओं से बेबसी में कहते नजर आए कि हार तो बेशक हो पर सम्मानजनक हो। इस बीच वसुंधरा खेमे ने नई थ्योरी चला दी है कि विधानसभा त्रिशंकु होगी और भैरोंसिंह शेखावत की तरह जोड़-तोड़ कर सरकार वसुंधरा ही बनाएंगी।