गम-ए-गफलत
रीता बहुगुणा जोशी भाजपा में रहते हुए भी पार्टी की रीति-नीति और चाल, चरित्र व चेहरे से अनजान हैं, यह जानकर किसी को भी हैरानी हो सकती है। सूबे की योगी सरकार में पहले मंत्री रह चुकीं जोशी अब लोकसभा की सदस्य हैं। वे भाजपा से पहले कांग्रेस और समाजवादी पार्टी में भी रही हैं। इसी बुधवार को भाजपा के सूबेदार स्वतंत्र देव ने दूसरी पार्टियों को छोड़कर आने वाले कई नेताओं को पार्टी दफ्तर में भगवा चोला ओढ़ाकर अपना बना लिया। इन्हीं में शामिल थे अयोध्या की बीकापुर सीट से 2007 में बसपा के टिकट पर विधायक चुने गए जितेंद्र कुमार सिंह उर्फ बबलू। सूबे में किसे याद नहीं कि रीता बहुगुणा जब 2009 में उत्तर प्रदेश कांग्रेस की मुखिया थीं तो बसपाइयों ने लखनऊ के उनके घर को आग के हवाले कर दिया था। अगुआई का आरोप बबलू पर ही है।
बसपाई जोशी की मुख्यमंत्री मायावती पर की गई टिप्पणी से खफा थे। गुस्से में मायावती भी कम नहीं थीं। उन्होंने तो रीता बहुगुणा को गिरफ्तार ही करा दिया था। बबलू इस मामले में जेल भी गए थे और अभी भी आरोपी हैं। भाजपा में गाजे-बाजे सहित बबलू का दाखिला होने पर रीता बहुगुणा जोशी अपमान का घूंट पीकर रह गईं। पत्रकारों ने कुरेदा तो सफाई दी कि बबलू ने पार्टी को गफलत में रखा। वे प्रदेश अध्यक्ष और राष्ट्रीय अध्यक्ष से बात कर उन्हें पार्टी से बाहर कराएंगी। जैसे वे दोनों अज्ञानी हों। काश रीता बहुगुणा जोशी समझ पातीं कि दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी भाजपा ‘दूसरों से भिन्न पार्टी’ के नाते तो हुई नहीं है। दूसरे दलों से कितने नेता अब तक शामिल हुए हैं, पार्टी में। वे तो खुद भी इसी श्रेणी की नेता ठहरीं।
इस पार्टी में भी बाहुबलियों की कमी नहीं है। जब योग्यता का मापदंड ही नेता की चुनाव जीतने की हैसियत हो जाए तो फिर बृज भूषण शरण सिंह हों या जितेंद्र सिंह बबलू, उनके अतीत की पड़ताल करने में वक्त क्यों गंवाएगी पार्टी। भाजपा ने तो 1997 में ही उत्तर प्रदेश में जब बसपा और कांग्रेस के दागी बागियों की मदद से अपनी सरकार बचाई थी और बदले में सभी को मंत्रिपद दिए थे तो साफ हो गया था कि सियासी दलों का मूल एजंडा तो सत्ता हासिल करना ही होता है। पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव से पहले तृणमूल कांग्रेस छोड़कर पार्टी में आने वाले नेताओं की जन्मकुंडली ही कहां खंगाली गई थी। बबलू तो आ गए, रीता को अपने बारे में जो निर्णय करना हो वे करें। पर उनके प्रदेश अध्यक्ष और राष्ट्रीय अध्यक्ष को कोई गफलत में रख सकता है, वे खुद इस गफलत में न रहें तो अच्छा।
चूक गए जयराम!
वरिष्ठ आइएएस अधिकारी राम सुभग सिंह हिमाचल प्रदेश के नए मुख्य सचिव बन गए हैं। जयराम सरकार ने 1986 बैच के आइएएस अधिकारी अनिल कुमार खाची से इस्तीफा ले लिया और उन्हें राज्य चुनाव आयुक्त नियुक्त कर दिया है। खाची को सेवानिवृत्त होने में करीब दो साल बचे थे। खाची मूल रूप से जिला शिमला से हैं। कहा जा रहा है कि जयराम सरकार में सबसे ताकतवर मंत्री महेंद्र सिंह से उनकी मंत्रिमंडल की बैठक में झड़प हो गई थी। अहम यह नहीं है कि उन्हें हटा दिया है। अहम यह है कि कांग्रेस पार्टी ने सदन में ही जयराम सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया कि हिमाचली ईमानदार अफसर को बाहर कर दिया। संभवत: जयराम व उनके मंत्री महेंद्र सिंह ने सपने में भी नहीं सोचा था कि कांग्रेस इस मामले को ऐसा रंग दे देगी।
कांग्रेस सरकारों में हिमाचली अधिकारियों को तरजीह मिलती रही थी। वीरभद्र सिंह इस मामले में सतर्क रहते थे। उनकी सरकार में जिला किन्नौर और ऊपरी शिमला के अधिकारियों का दबदबा रहता था। हिमाचल के बाकी अधिकारियों को भी तरजीह दी जाती थी। वीरभद्र सिंह वरिष्ठता को भी दरकिनार कर हिमाचल व अपने वफादरों को तरजीह देते रहे थे। वे ईमानदार अधिकारियों को तरजीह देते थे। उनका मानना था कि इससे जनता में सरकार का सकारात्मक संदेश जाता है। लगता है, जयराम इस मामले में राजनीतिक तौर पर चूक कर गए हैं।
खोज खेवनहार की
उत्तराखंड कांग्रेस 2022 के विधान सभा चुनाव के लिए पूरी तरह जुट गई है। पार्टी एक निजी प्रचार कंपनी को 2022 के विधानसभा चुनाव अभियान में झोंकने के लिए गंभीरता से विचार कर रही है। पिछले दिनों सोनिया गांधी ने उत्तराखंड में कांग्रेस को सक्रिय करने के लिए विभिन्न नौ कमेटियां बनाई थी जिनका तीन दिन का प्रशिक्षण शिविर ऋषिकेश में हुआ। जिसमें उत्तराखंड कांग्रेस के केंद्रीय प्रभारी देवेंद्र यादव और हरीश रावत मौजूद रहे। इस प्रशिक्षण शिविर में नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह, विभिन्न कमेटियों के प्रभारी और सदस्य मौजूद थे।
2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने प्रशांत किशोर और उनकी कंपनी को चुनाव प्रचार का ठेका दिया था तब उत्तराखंड में प्रशांत किशोर के सभी आंकड़े और चुनावी रणनीति नाकाम हुई और 70 विधानसभा सीटों में से भाजपा 57 सीटें लेकर भारी बहुमत से सत्ता में आई और कांग्रेस 11 सीटों पर सिमट गई। इस बार अभी से कांग्रेस ने सोशल मीडिया पर काम करना शुरू कर दिया है और कांग्रेस को एक ऐसी पीआर कंपनी की तलाश है जो कांग्रेस का बेड़ा पार कर दे और उसकी नैया को 2022 में सत्ता तक पहुंचा दे।
(संकलन : मृणाल वल्लरी)