अग्निपरीक्षा
बहिनजी उत्तर प्रदेश के सियासी रंगमंच पर अभी तक सक्रिय नजर नहीं आई हैं। जबकि विधानसभा चुनाव सिर पर है। कोरोना की तीसरी लहर के सिर पर मंडराते खतरे के बावजूद सूबे की राजधानी में पहुंचे चुनाव आयुक्तों से सभी दलों ने चुनाव न टालने और तय समय पर कराने की मांग की। संभावना यही है कि अगले हफ्ते चुनाव की तारीखों का एलान होगा। बहिनजी की व्यस्तता के बारे में उनके सहयोगी महासचिव सतीश चंद्र मिश्र ने तो यही सफाई दी है कि वे उम्मीदवारों के चयन में व्यस्त हैं और लगातार 18 घंटे काम कर रही हैं।
13 नवंबर को उनकी मां रामरती जी का 92 वर्ष की उम्र में निधन हो गया था। निधन के अगले ही दिन कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने दिल्ली में मायावती के घर पहुंचकर शोक जताया था। जबकि पिछले कई वर्ष से मायावती भाजपा के बजाए कांग्रेस पर ही ज्यादा हमलावर रही हैं। कांग्रेस के नेताओं के दलित प्रेम को वे ढकोसला बताती हैं। पर यूपी के चुनावी रण में पूरी ताकत से जुटी प्रियंका अब बहिनजी से ही सवाल कर रही हैं कि दलितों पर हो रहे अत्याचारों पर वे मौन क्यों हैं।
हाथरस में दलित लड़की की बलात्कार के बाद हुई हत्या के मामले में भी प्रियंका गांधी सबसे मुखर दिखी थीं। मायावती ने इस घटना पर निष्क्रियता दिखाई थी। तमाम सियासी समीक्षक और चुनाव पूर्व सर्वेक्षण इस बार मुख्य मुकाबला भाजपा और सपा में ही देख रहे हैं। पिछले चुनाव में भी बसपा को महज 19 सीटों पर सब्र करना पड़ा था। इनमें 15 अब तक उनका साथ छोड़ चुके हैं। एक भी कद्दावर मुसलमान नेता बसपा में नहीं बचा है। अति पिछड़े और पिछड़े नेता भी एक-एक कर दूसरी पार्टियों में जा चुके हैं। सतीश शर्मा की कोशिशों के बावजूद ब्राह्मणों का बसपा के प्रति कोई मोह नहीं दिख रहा है।
बसपा के टिकट के लिए हर चुनाव में सबसे ज्यादा दावेदार नजर आते थे। बहिनजी पर टिकट बेचने तक के आरोप आम रहे हैं। जिनके जवाब में वे लगातार कहती आई हैं कि उनकी पार्टी को पूंजीपति पैसा नहीं देते, वह तो कार्यकर्ताओं के चंदे से ही चलती है। हकीकत यह है कि इस बार उनके टिकट के खरीदार भी नदारद हैं। जबकि अपने पुख्ता दलित वोट बैंक को लेकर बहिनजी का आत्मविश्वास कभी डिगा नहीं। इस बार उनके इस वोट बैंक में भी भाजपा और कांग्रेस ही नहीं सपा भी सेंध लगाने के फेर में है। भीम आर्मी के चंद्रशेखर आजाद तो खैर मौके की तलाश में पहले से ही जुटे हैं। इस नाते अपने सियासी जीवन की सबसे बड़ी चुनौती का सामना करेंगी इस बार मायावतीं।
रावतों पर अविश्वास
उत्तराखंड की राजनीति में अभी भी हरीश रावत और हरक सिंह रावत को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है। कांग्रेस और भाजपा अपनी-अपनी पार्टी के रावतों पर विश्वास नहीं कर रही है क्योंकि पिछले दिनों दोनों ने चुनाव के ऐन मौके पर जो नौटंकी की उससे दोनों की विश्वसनीयता खत्म हो चुकी है। राय बन गई है कि दोनों रावत अपने निजी राजनीतिक स्वार्थ के लिए कुछ भी कर सकते हैं, इससे चाहे उनकी पार्टी को राजनीतिक नुकसान झेलना पड़े। 16 दिसंबर को देहरादून में राहुल गांधी की रैली में जिस तरह से भारी भीड़ उमड़ी थी उससे राज्य में कांग्रेस का माहौल बना था। हरीश रावत ने कई ट्वीट करके कांग्रेस के खिलाफ राजनीतिक माहौल बना दिया।
वहीं भाजपा में कैबिनेट मंत्री-पद से इस्तीफे की घोषणा करके हरक सिंह रावत ने राजनीतिक माहौल बिगाड़ा। भले ही हरक सिंह रावत को मनाने के लिए भाजपा संगठन और सरकार उनके आगे झुक गई और उनकी सारी मांगे मान ली। लेकिन हरक सिंह रावत पर उनकी पार्टी को भी भरोसा नहीं है कि चुनाव होने के बाद कब पाला बदलकर कांग्रेस में चले जाएं। इसी तरह हरीश रावत पर भी कांग्रेस पार्टी को पूरी तरह विश्वास नहीं है। माना जा रहा है कि हरीश रावत कांग्रेस में अपने विरोधी उम्मीदवारों को विधानसभा चुनाव में शिकस्त देने के लिए अपने समर्थक डमी उम्मीदवार खड़े कर सकते हैं।
जयराम का त्रिशूल
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जयराम सरकार के चार साल पूरे होने पर छोटी काशी के नाम से मशहूर मंडी में आयोजित जश्न समारोह में पहुंचे तो वहां एकत्रित भीड़ को देखकर गदगद हो गए। जयराम हाल ही में हुए उपचुनावों में चार में से एक भी सीट भाजपा की झोली में नहीं डलवा पाए थे। उन्हें डर था कि चार साला समारोह में प्रधानमंत्री कहीं कोई ऐसी-वैसी बात न कर जाएं जिससे उन्हें परेशानी हो। इसलिए भीड़ जुटाने के लिए उन्होंने पूरा जोर लगा दिया। जयराम ने प्रधानमंत्री को भेंट करने के लिए एक त्रिशूल का इंतजाम भी किया।
अमूमन इस तरह प्रतीक के तौर पर चीजें नेताओं को भेंट की ही जाती हैं। लेकिन जयराम ने जो त्रिशूल प्रधानमंत्री को भेंट किया वह खास था। इसका वजन ही 35 किलो बताया जा रहा है। बताया जा रहा है कि इसे जिला सोलन में बनवाया गया व यहां एक बाबा के पास भी रखा गया। उसके बाद इसे सरकारी सुरक्षा में मंडी पहुंचाया गया व मंच तक पहुंचाने की इजाजत ली गई।
यह भेंट पाकर प्रधानमंत्री भी खुश हो गए। होते भी क्यों न। त्रिशूल को बाद मेंं प्रधानमंत्री कार्यालय तक पहुंचाया गया। धारणा है कि इस तरह से त्रिशूल आदि भेंट करने से आध्यात्मिक, भौतिक और दैविक कष्टों का निवारण हो जाता है।
(संकलन : मृणाल वल्लरी)