नीतीश कुमार बड़े सयाने हैं। ताक में हैं कि लाठी भी न टूटे और सांप भी मर जाए। लोकसभा चुनाव को लेकर उधेड़बुन जारी है। फिलहाल दिखता तो यही है कि भाजपा से बेहतर रिश्ते रहें और विरोधियों को उनकी औकात भी दिखा दें। जब राजग में थे तो भाजपा के क्षत्रपों के बजाय किसी भी मुद्दे पर बात आलाकमान से ही करते थे। वहीं से ही हल भी निकलता। राजग में वापसी के बाद भी रुतबा वही है। भाजपा के क्षत्रप तो बस साथ रहते हैं। अभी तो एक ही बड़ा मुद्दा है कि लोकसभा चुनाव में सीटों का तालमेल कैसे हो। अगले महीने आलाकमान पटना आ रहे हैं।

उनका घोषित एजंडा तो लोकसभा चुनाव के मद्देनजर अपने नेताओं-कार्यकर्ताओं का मार्गदर्शन ही रहेगा। पर वे मुलाकात नीतीश कुमार से भी करेंगे, इसमें संदेह नहीं। विरोधी दलों, खासकर राजद की तरफ से लगातार कहा जा रहा है कि भाजपा के साथ जाकर नीतीश ने अपनी सियासी हैसियत घटाई है। इस मुकाम पर भाजपा से छिटकना भी उनके लिए और ज्यादा घाटे का सौदा साबित होगा। अकेले चलने की औकात नहीं।

नीतीश ऐसा सोच रहे अपने विरोधियों को करारा जवाब देना चाहेंगे। जताने की कोशिश करेंगे कि भाजपा के साथ वे खुश हैं। फिर अलग रास्ते का सवाल ही कहां उठता है। भाजपा से उनका दोस्ताना कमजोर तो है नहीं। अलबत्ता यह दोस्ती रंग ही लाएगी। विरोधी दल इसी आशंका से डरे हैं। उधर, सूबे के भाजपा नेता भी चाहते हैं कि आलाकमान पटना से बेफिक्र होकर दिल्ली लौटें।