भाजपा आलाकमान को कर्नाटक में पार्टी की गुटबाजी खत्म करने में सफलता नहीं मिल पा रही है। गुरुवार को चिकमगलूर की घटना से यह साबित हो गया। पूर्व मुख्यमंत्री और लिंगायत समाज के सूबे के पार्टी के सबसे बड़े नेता बीएस येदियुरप्पा को अपनी विजय संकल्प यात्रा पार्टी कार्यकर्ताओं के विरोध के कारण स्थगित करनी पड़ी। येदियुरप्पा हेलिकाप्टर से पहुंचे थे। रास्ते में पार्टी के सैकड़ों कार्यकर्ताओं ने उनकी गाड़ी का घेराव किया। उन्होंने मांग की कि इलाके के मौजूदा विधायक एमपी कुमारस्वामी को इस बार टिकट न दी जाए। ये कार्यकर्ता पार्टी के ही नेता एमआर जगदीश के समर्थक बताए जा रहे थे।

येदियुरप्पा के बेटों को सीएम बसवराज मंत्री न बनाने पर अड़े

येदियुरप्पा ने नाराजगी जताई और रोड शो शुरू किए बिना ही लौट गए। येदियुरप्पा की जगह मुख्यमंत्री बनाए गए बसवराज बोम्मई से उनकी पटरी नहीं बैठ रही। येदियुरप्पा ने पिछले दिनों चुनावी राजनीति से संन्यास लेने का एलान तो जरूर कर दिया था पर अपने दोनों बेटों बीवाई बिजयेंद्र और बीवाई राघवेंद्र के सियासी भविष्य को लेकर वे बेचैन हैं। बिजयेंद्र को बोम्मई ने मंत्री नहीं बनाया। मंत्री नहीं बनाना चाहते थे इसलिए मंत्रिमंडल का विस्तार ही नहीं किया। पार्टी के प्रभारी महासचिव अरुण सिंह लाख दावा करें कि पार्टी में कोई गुटबाजी नहीं है पर गुटबाजी निचले स्तर तक साफ दिखाई देती है।

पार्टी महासचिव सीटी रवि के बयान पर तो आलाकमान ने ही नाराजगी जता दी। पार्टी के एक सांसद लहर सिंह सिरोया ने पिछले दिनों बयान दिया था कि कर्नाटक में भी पार्टी को गुजरात जैसी रणनीति अपनानी चाहिए। पुराने चेहरों को सेवानिवृत्त कर नए लोगों को टिकट देने चाहिए। आलाकमान बखूबी समझता है कि गुजरात और कर्नाटक में जमीनी अंतर है। कर्नाटक में भाजपा को कांग्रेस से कड़ी टक्कर मिल रही है। इसलिए वह संभलकर दांव चलना चाहता है।

70 पार वालों की अलग राह पर चलने से डरता है शीर्ष नेतृत्व

अघोषित तौर पर 70 साल की उम्र पूरी कर रहे लोगों को सेवानिवृत्त तो करना चाहता है पर बगावत से डरता है। दरअसल इस फार्मूले को अपनाया तो 24 मौजूदा विधायकों के टिकट कट जाएंगे। इससे पहले ही पूर्व मुख्यमंत्री और 67 की उम्र पार कर चुके जगदीश शेट्टर ने बयान दे दिया कि मैं तो चुनाव जरूर लडूंगा। इसी तरह कद्दावर नेताओं केएस ईश्वरप्पा, वी सोमन्ना और जीएच थिप्पा रेड्डी पर भी तलवार लटकी है। येदियुरप्पा सबको सांत्वना दे रहे हैं कि सभी मौजूदा विधायकों को टिकट मिलेगा।

कर्नाटक में भाजपा सरकार दल बदलुओं के बूते बनी है

वहीं सूबेदार नलिन कुमार कटील ने कह दिया कि चुनाव लव जेहाद व टीपू सुल्तान बनाम सावरकर के मुद्दे पर लड़ा जाएगा। आलाकमान कह चुका है कि चुनाव विकास के मुद्दे पर लड़ेगी पार्टी। कर्नाटक में भाजपा सरकार दल बदलुओं के बूते बनी है। दूसरे 75 पार के नेताओं को मार्गदर्शक मंडल में भेजने के अघोषित फैसले से पार्टी ने यहां पीछे हटकर 77 के येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री बनाया था।

हाथ कब मिलाएंगे

भाजपा और संघ परिवार का नारा था मंदिर वहीं बनाएंगे। विरोधी दल अपनी तरफ से जोड़ते थे-पर तारीख नहीं बताएंगे। आज ऐसी ही खिल्ली उनकी उड़ रही जो दावा तो करते हैं कि 2024 में भाजपा को दिल्ली की सत्ता से हटाएंगे, पर आपस में हाथ नहीं मिलाएंगे। भाजपा से परेशान तो ये सभी दल हैं। उदाहरण भी देते हैं कि जिस तरह 1977 और 1989 में विपक्षी दलों की एकता से ही तब भाजपा से भी ज्यादा ताकतवर रही कांग्रेस को सत्ता से हटाया था। पर, एकता करने को राजी नहीं।

दिल्ली में अडाणी के विरोध में हुए प्रदर्शन से राकांपा और तृणमूल के नदारद रहने से इसकी फिर पुष्टि हुई। बसपा पहले ही भाजपा से ज्यादा कांग्रेस और सपा को कोसती रही है। तृणमूल कांग्रेस हो या आम आदमी पार्टी, वाइएसआर कांगे्रस हो या बीजू जनता दल, इनमें कोई भी कांग्रेस की छतरी के तले आने को तैयार नहीं। जबकि यूपीए में शामिल दलों की स्पष्ट सोच है कि उन्हें 1996 के संयुक्त मोर्चे के प्रयोग पर भरोसा नहीं। उन्हें 2004 से 2014 तक चली यूपीए की सरकार के फार्मूले पर ही भरोसा है।

कैंब्रिज की लड़ाई में भाई-भाई

वरुण गांधी अपनी पार्टी को लेकर नरम दिख रहे। पीलीभीत के सांसद अपने सूबे और केंद्र की डबल इंजन सरकारों के प्रति जिस तरह का आलोचनात्मक रवैया दिखा रहे थे, वह अब नदारद है। ताजा संकेत उन्होंने राहुल गांधी से अपने अपरोक्ष अलगाव की बात कहकर दिया है। उन्होंने बताया कि भारतीय लोकतंत्र के विषय पर बोलने का निमंत्रण ब्रिटेन के कैंब्रिज विश्वविद्यालय से उन्हें भी मिला था, पर उन्होंने स्वीकार नहीं किया।

वे अपने लोकतंत्र की खामियों की चर्चा पार्टी फोरम और देश के भीतर ही दूसरे फोरम पर करना उचित समझते हैं। विदेश की धरती पर नहीं। वरुण ने जानकारी तब दी जब राहुल गांधी कैंब्रिज के अपने भाषण को लेकर भाजपा के निशाने पर हैं। वरुण गांधी ने राहुल की भारत जोड़ो यात्रा के वक्त किसानों की समस्याओं की चर्चा कर राहुल का परोक्ष समर्थन किया था।

तब उनके कांग्रेस में जाने की अटकलें लगाई गई थी। हालांकि उन्हें आरएसएस की विचारधारा का समर्थक बता राहुल ने उनसे कन्नी काट ली थी। 2024 के चुनाव को करीब देख अपना टिकट बचाने के लिए वरुण को राहुल के विरोध का यह समय जंचा होगा।
(संकलन : मृणाल वल्लरी)