आखिर चाचा-भतीजा साथ आ गए। आना मजबूरी दोनों की ही रही होगी। मैनपुरी में डिंपल यादव को उतारकर सपा सुप्रीमो ने पार्टी और परिवार दोनों की साख को दांव पर लगाया है। विधानसभा चुनाव के बाद से ही चाचा भतीजे में अनबन चल रही थी। हालांकि, चाचा की अपनी अलग पार्टी ठहरी। फिर भी जसवंत नगर से विधानसभा चुनाव वे सपा के चुनाव चिह्न पर ही लड़े थे। चाचा की असली चिंता अपने बेटे आदित्य यादव को राजनीति में जमाना है। सौतेले भाई प्रतीक की पत्नी अपर्णा यादव पहले ही भाजपा में शामिल हो गई थी। मैनपुरी सीट पर लोकसभा उपचुनाव मुलायम सिंह यादव की मौत के कारण हो रहा है।
भाजपा ने यहां पुराने सपाई रघुराज सिंह शाक्य को मैदान में उतारा है। उपचुनाव में भाजपा ने रामपुर और आजमगढ़ की सीटें सपा से छीन ली थी। लेकिन, मैनपुरी भी छिन जाए, इसे अखिलेश हजम नहीं कर सकते। डिंपल यादव के नामांकन दाखिल करते वक्त न शिवपाल यादव नजर आए थे और न उनका बेटा। इसी से अटकलें लगाई जा रही थी कि कुनबे की कलह कहीं डिंपल की लुटिया न डुबो दे। अखिलेश भी सयाने ठहरे। गुरुवार को डिंपल के साथ चाचा के घर जा धमके। मंत्रणा अखिलेश और शिवपाल में हुई पर मौजूद डिंपल और आदित्य भी रहे। मियां-बीवी ने चाचा के चरण स्पर्श कर आशीर्वाद मांगा। शिवपाल को कहना पड़ा कि परिवार की इज्जत और नेताजी यानि मुलायम सिंह यादव की प्रतिष्ठा का मामला है, सो वे जीजान से जुटेंगे। गिले-शिकवे भी जरूर रखे गए होंगे। पर, इस मुलाकात ने अखिलेश को चाचा की खुली बगावत के खतरे से तो मुक्त कर ही दिया। वैसे शिवपाल भी नाराजगी और पैतरेबाजी चाहे जितनी दिखा रहे हों पर लोकलाज का डर तो उन्हें भी सता रहा होगा। भले भाजपा का उम्मीदवार उनका पुराना चेला हो पर घर की बहू का विरोध कर वे यादव बिरादरी में अपने ऊपर उंगली क्यों उठवाते। लोकलाज की चिंता अखिलेश को भी कम न होगी। छोटे हैं तो झुकना भी उन्हीं को पड़ता।
घर के न घाट के
चिराग पासवान अचानक सक्रिय हो गए हैं। पिछले दिनों एलान किया था कि वे जल्दी ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात करेंगे। उसके बाद राजग में शामिल हो जाएंगे। हालांकि, दो दिन पहले ही उन्होंने भाजपा के कद्दावर नेता वीएन झा के बेटे विभय को अपनी पार्टी में शामिल कर लिया। यह कदम भाजपा को भला क्यों भाएगा। चिराग लोक जनशक्ति पार्टी (पासवान) के इकलौते सांसद हैं। बिहार विधानसभा में भी उनका इस समय कोई सदस्य नहीं है। हालांकि, 2019 में उनकी पार्टी के छह सांसद जीते थे।
उनके पिता को भाजपा ने राज्यसभा का सदस्य बनाकर केंद्र में मंत्री-पद भी दिया था। लेकिन पिता की मृत्यु के बाद चिराग ने 2020 का विधानसभा चुनाव अकेले लड़ा। रणनीति के तहत जद (एकी) उम्मीदवारों के खिलाफ तो उम्मीदवार उतारे पर भाजपा के खिलाफ नहीं। नतीजतन जद (एकी) की सीटें कम हो गई। हालांकि चुनाव प्रचार के दौरान चिराग खुद को मोदी का हनुमान ही बताते रहे। बाद में नीतीश की मदद से उनके चाचा पशुपति कुमार पारस ने लोजपा तोड़ दी। पांच सांसद उनके साथ गए और वे पासवान की जगह केंद्र में मंत्री बन गए।
चिराग की राजग में वापसी की राह में उनके चाचा ही असली रोड़ा हैं। नीतीश कुमार के भाजपा से अलग होने के बाद चिराग की दुविधा बढ़ी है। अपने सियासी वजूद को कायम रखने के लिए उन्हें दो टूक फैसला करना ही होगा। भाजपा के साथ रहें या राजद के। चिराग ने पिछले दिनों अपनी पार्टी का अधिवेशन नीतीश के इलाके नालंदा में किया था। उनके समर्थक उन्हें पेश तो बिहार के अगले मुख्यमंत्री के रूप में करते हैं। पर पांव जमा नहीं पा रहे चिराग। भाजपा से अपनी मां रीना पासवान के लिए पिता के निधन से खाली हुई राज्यसभा सीट मांगी थी पर निराशा हाथ लगी। विधानसभा चुनाव में कोई करिश्मा दिखाया होता तो भाजपा भाव देती भी।
कलह-कथा पर लगेगा विराम!
सीवी आनंद बोस के पश्चिम बंगाल का नया राज्यपाल बनने के बाद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने राहत की सांस ली है। इसके पहले राज्यपाल जगदीप धनखड़ से ममता बनर्जी के रिश्ते कभी सामान्य नहीं रहे। धनखड़ थे सियासी अतीत वाले। जबकि, सीवी आनंद बोस रिटायर नौकरशाह ठहरे। केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन की भी अपने राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान से पटरी नहीं बैठ रही। आरिफ भी राजनीतिक ठहरे। आमतौर पर माना जाता है कि सियासी पृष्ठभूमि वाले राज्यपालों की केंद्र की सत्तारूढ़ पार्टी की विरोधी पार्टियों वाली सरकारों से तनातनी रहती है।
नौकरशाह खुलकर टकराव कम करते हैं। महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री थे तो उनकी राज्यपाल भगतसिंह कोशियारी से पटरी नहीं बैठी। सत्यपाल मलिक तो जब गोवा के राज्यपाल थे तो सूबे के भाजपाई मुख्यमंत्री ही उनसे तंग आ गए थे। बोस ने कहा है कि वे केंद्र और राज्य के बीच सेतु का काम करेंगे। वैसे, सियासी अतीत वाले सभी राज्यपाल टकराव का रुख अपनाते हों, ऐसा नहीं है। राजस्थान की मिसाल सामने है। कलराज मिश्र भाजपा के कद्दावर नेता रहे हैं। फिर भी कांग्रेसी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से खूब पटरी बैठती है उनकी। (संकलन : मृणाल वल्लरी)