लोकसभा चुनाव में भाजपा दक्षिण में अपने विस्तार की कोशिश में है। बाकी राज्यों में विस्तार की भाजपा की योजना का सारा दारोमदार कर्नाटक के अगले महीने होने वाले विधानसभा चुनाव के नतीजों पर टिका है। यहां वह वर्तमान में सत्ता में है। इस बार वह यहां कांटे के मुकाबले में उलझी है। तमिलनाडु में दुविधा यह है कि जयललिता के निधन के बाद अन्नाद्रमुक उतनी प्रभावशाली नहीं रही। सत्तारूढ़ द्रमुक से भाजपा की पटरी बैठती नहीं। अन्नाद्रमुक में भी वर्चस्व की लड़ाई जारी है।

बेशक ई पलानीस्वामी ने ओ पनीरसेल्वम को पार्टी पर कब्जे की कानूनी लड़ाई में फिलहाल मात दे दी है। लेकिन, पनीरसेल्वम भी कुछ तो असर रखते ही हैं। अन्ना द्रमुक ने पिछला चुनाव भाजपा से मिलकर लड़ा था। भाजपा अभी इस सूबे में अकेले चुनाव लड़ने का दम नहीं रखती। दोनों दलों के स्थानीय नेता आपस में उलझे थे कि दिल्ली में अमित शाह ने पलानीस्वामी के साथ पिछले बुधवार को बैठक कर साफ कर दिया कि लोकसभा चुनाव दोनों दल मिलकर लड़ेंगे।

तमिलनाडु भाजपा अध्यक्ष ने सार्वजनिक रूप से अन्नाद्रमुक से तालमेल का विरोध किया है

हालांकि, भाजपा के तमिलनाडु के अध्यक्ष के अन्नामलाई ने सार्वजनिक रूप से बयान दिया था कि आलाकमान ने अन्नाद्रमुक से तालमेल किया तो वे अपने पद से इस्तीफा दे देंगे। लेकिन, जिस बैठक में अमित शाह और पलानीस्वामी के बीच मिलकर चुनाव लड़ने पर सहमति हुई उसमें अन्नामलाई खुद भी मौजूद थे। बेचारे अन्नामलाई चेन्नई वापस आकर पत्रकारों से कन्नी काटते नजर आए। उनकी मर्जी के विपरीत गठबंधन का फैसला तो हुआ ही, ऊपर से आलाकमान की यह नसीहत अलग मिली कि वे आइंदा अन्नाद्रमुक की कोई आलोचना नहीं करेंगे।

विपक्ष की अनेकता

एकता की दिशा में गैर भाजपाई दल अगर दो कदम आगे बढ़ाते हैं तो तीन कदम पीछे हटने वाली सूरत नजर आती है। शरद पवार, नीतीश कुमार, ममता बनर्जी और तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव इस दिशा में सक्रिय हैं। हर कोई कांगे्रस पार्टी को नसीहत भी लगे हाथ दे रहा है कि विपक्षी एकता की स्थिति में उसे क्षेत्रीय दलों के लिए प्रधानमंत्री पद का मोह छोड़ना चाहिए। यह भी कोई बात हुई कि विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी ही नेतृत्व का अपना स्वाभाविक दावा छोड़ दे। दर्द हर किसी के पेट में हो रहा है और हर कोई चाहता है कि 2024 के चुनाव में भाजपा को केंद्र की सत्ता से बेदखल कर दिया जाए। नहीं किया तो किसी का वजूद नहीं बचेगा।

केंद्रीय एजंसियों के दुरुपयोग का आरोप भी सभी लगा रहे हैं और उसके शिकार भी हैं। नीतीश कुमार ने यह एलान तो बेशक कर दिया कि मुख्यमंत्री पद का मोह छोड़ वे 2024 में भाजपा को कमजोर करने के मिशन में जुटेंगे। पर क्या वे कभी ईमानदारी से कह पाए कि उन्हें प्रधानमंत्री पद की चाह नहीं है। हालांकि भाजपा नेता ही नहीं कभी उनके खासमखास रहे आरसीपी सिंह भी कह चुके हैं कि बिहार की चालीस सीटों के दम पर कोई प्रधानमंत्री नहीं बन सकता।

ममता बनर्जी की हसरत भी है तो केसीआर ने तो इस लालच में अपनी पार्टी का नाम तक बदल दिया ताकि वह क्षेत्रीय की जगह राष्ट्रीय नजर आए। लेकिन, तेलंगाना में तो लोकसभा की सीटें महज 17 ही हैं। बिहार की तुलना में आधी से भी कम। इस पैमाने पर शरद पवार और ममता बनर्जी का पलड़ा जरूर भारी है। उनके राज्यों में क्रमश: 48 और 42 सीटें जो ठहरीं। विपक्षी एकता की नई कोशिश तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन की तरफ से भी हुई है। गनीमत है कि अभी तक उन्होंने प्रधानमंत्री पद की लालसा नहीं दिखाई है। उनके सूबे में भी 39 सीटें हैं। नीतीश ने बात तो पते की कही कि 2024 में विपक्ष का प्रयास भाजपा के उम्मीदवार के मुकाबले एक उम्मीदवार देने का होगा। पर क्या यह संभव है

सियासत में साध्वी कहां?

उमा भारती पिछले चार साल से सियासी वनवास में चल रही हैं। अंदेशा था कि लोकसभा टिकट कटेगा तो 2019 के चुनाव से पहले खुद ही एलान कर दिया था कि वे लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेंगी। वह भी एक दौर था जब साध्वी ने वाजपेयी सरकार से इस्तीफा देकर मध्यप्रदेश में भाजपा की कमान संभाली थी। उनके संघर्ष ने ही एक दशक से सूबे में सत्ता की कुर्सी पर काबिज दिग्विजय सरकार को बेदखल किया था। पर, एक अदालती मुकदमे के जाल में ऐसी उलझी कि मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। पद वापस नहीं मिला तो बगावत कर अपनी अलग पार्टी बना डाली।

नितिन गडकरी भाजपा के अध्यक्ष बने तो उमा भारती की पार्टी में सशर्त वापसी हुई। शिवराज चौहान के दबाव में मध्यप्रदेश की जगह उत्तर प्रदेश को सियासी मैदान बनाने की शर्त मान 2012 में विधानसभा और 2014 में झांसी से लोकसभा सदस्य बनी। पहली मोदी सरकार में मंत्रिपद भी पा गईं, पर अपनी अलग कार्यशैली से आलाकमान का कोपभाजन बन गईं। अब अपने गृह प्रदेश में ही अपनी भूमिका तलाश रही हैं। शराब नीति को लेकर पिछले दिनों चौहान को खूब घेरा। चौहान को दबाव में आकर उनकी सलाह माननी पड़ी।

(संकलन : मृणाल वल्लरी)