भारत डोगरा

हाल के वर्षों में शिक्षा में अनेक सुधार चर्चित रहे हैं। कभी किसी ने कहा कि एक स्तर तक परीक्षा हटा दो तो फिर किसी ने कहा कि परीक्षा वापस लाओ। कभी किसी ने कहा कि बस्ते का बोझ हल्का करो तो किसी ने कहा कि यह नया विषय और जोड़ दो। किसी ने कहा शारीरिक दंड पूरी तरह समाप्त करो तो किसी अन्य ने कहा कि अनुशासन का कोई तौर-तरीका तो अपनाओ। किसी का दावा है कि उसके स्कूल से पढ़े बच्चों के इतने अधिक अंक आए हैं, तो किसी का दावा है कि उसके स्कूल से जुड़े इतने प्रतिशत बच्चों ने डॉक्टरी या इंजीनियरिंग आदि में प्रवेश पा लिया है। इन सब चर्चाओं के बीच एक सवाल पीछे छूट जाता है कि किस तरह की शिक्षा व्यवस्था से ऐसे छात्र तैयार होते हैं जिनसे आगे चल कर एक बेहतर दुनिया बनाने की उम्मीद की जा सकती है? कौन से स्कूलों से ऐसे छात्र निकलते हैं जो भाईचारे, अमन, समता और न्याय को आगे बढ़ाएंगे? हमारे समाज को सबसे अधिक जरूरत तो ऐसी शिक्षा की है जो समग्र रूप से बेहतर समाज की नींव तैयार करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाए। अनेक स्तरों पर बेहद संवेदनशील दौर से गुजरते, बहुत गंभीर समस्याओं से जूझते हुए हमारे समाज को कई मायनों में अभूतपूर्व चुनौतियों का सामना करने के लिए अनुकूल जीवन मूल्य चाहिए और इसकी बुनियाद तैयार करने में सबसे अहम भूमिका शिक्षा संस्थानों व परिवार की ही हो सकती है।

इस दिशा में पहला कदम यह है कि ऐसे सबसे आवश्यक जीवन-मूल्यों के बारे में व्यापक सहमति बनाई जाए जो एक ओर समाज की वर्तमान समस्याओं को कम करने के लिए महत्त्वपूर्ण हैं और साथ ही भविष्य की इससे भी गंभीर चुनौतियों का सामना करने के लिए भी जरूरी हैं। यदि ऐसे जीवन मूल्यों पर व्यापक सहमति बन सकती है तो फिर शिक्षा में इनके समावेश का बहुत रचनात्मक, बहुत उपयोगी कार्य तेजी से आगे बढ़ सकता है।

एक बहुत सरल-सा जीवन मूल्य है- हम अपनी ओर से पूरा प्रयास करें कि अपने किसी वचन या कार्य से दूसरों को दुख न पहुंचाएं। कल्पना कीजिए एक छोटे से समुदाय की, जिसमें सभी इस जीवन मूल्य को स्वीकार करते हों। अनेकानेक समस्याएं जो दैनिक जीवन में परेशान करती रहती हैं वे इससे जड़-मूल से ही समाप्त हो जाएंगी। इस जीवन मूल्य के महत्त्व को पहले गहराई से आत्मसात करना होगा। फिर निरंतरता से उसे साधना होगा, तभी इस पर टिक सकेंगे। यही बात अन्य महत्त्वपूर्ण जीवन-मूल्यों पर भी लागू होती है। इन पर टिके रहने के लिए हम बेहद रचनात्मक ऐसे आत्ममंथन से जुड़ते चले जाते हैं जो हमारे अपने जीवन को बेहतर बनाता है और साथ में दुनिया को बेहतर बनाने से हमें जोड़ता है।

इसी तरह एक अन्य महत्त्वपूर्ण जीवन-मूल्य है- किसी भी तरह के भेदभाव से ऊपर उठ कर सभी मनुष्यों की समानता को आत्मसात करना, हृदय से स्वीकार करना और इस आधार पर सभी की भलाई की सोच बनाना। जाति, धर्म, नस्ल, रंग आदि के आधार पर भेदभाव करने से समस्याएं बढ़ती हैं इसलिए इन्हें नकारते हुए हम सभी मनुष्यों की समानता व भलाई में विश्वास रखें। दुनिया के किसी भी भाग में रहने वाले किसी भी व्यक्ति के बारे में हमारी मुख्य सोच उसकी भलाई की ही हो।

ये दोनों जीवन-मूल्य पहली नजर में सरल-स्पष्ट हैं पर इनमें कुछ पेच भी हैं, कुछ जटिलताएं भी हैं। हम किसी को दुख न पहुंचाएं, पर जो अन्याय करता है, उसके विरुद्ध तो आवाज उठाना जरूरी है। वह अन्याय करता रहे तो हमें उसे जेल में पहुंचाने तक उसके विरुद्ध संघर्ष करना होगा जिससे उसे और उसके परिवारजनों को दुख होगा। पर अन्याय के विरुद्ध संघर्ष में अन्याय करने वाले को दुख पहुंचाना उचित है, मान्य है। इसी तरह जब हम कहते हैं कि हम दुनिया के सब लोगों की भलाई चाहते हैं, लेकिन विश्व के मौजूदा हालात में कोई हम पर हमला कर दे तो हमें अपनी रक्षा के लिए तो मजबूत कदम उठाने ही होंगे। यह भी पूरी तरह मान्य है। दरअसल, बहुत व्यापक जीवन-मूल्य अपनाने पर ऐसे कुछ अपवादों की, कुछ विशेष स्थितियों की गुंजाइश बनी रहेगी और इस बारे में सहज समझ बन जाती है। व्यावहारिक स्तर पर ऐसे कुछ अपवाद स्पष्ट हो जाते हैं। इन अपवादों का अर्थ यह नहीं है कि इतने महत्त्वपूर्ण और कल्याणकारी जीवन मूल्यों को हम उपेक्षित कर दें।

इसी शृंखला में एक अन्य महत्त्वपूर्ण जीवन-मूल्य यह है कि न केवल लैंगिक भेदभाव को विभिन्न स्तरों पर समाप्त किया जाए बल्कि लैंगिक संबंधों को आधिपत्य, सत्तात्मकता, भोगवाद से मुक्त कर इन्हें परस्पर सम्मान, प्रेम, सहमति, सहजता व मर्यादित खुलेपन की ओर ले जाया जाए। अनावश्यक व बोझिल बंधनों को तोड़ने के साथ ही जरूरी मर्यादाओं को भी ध्यान में रखा जाए या मर्यादाओं को नए सिरे से परिभाषित किया जाए, लेकिन उन्हें उपेक्षित न किया जाए।

इसी तरह जीवन के किसी भी क्षेत्र में ऐसा न हो कि आधुनिकता के नाम पर समाज के लिए उपयोगी रही मर्यादाओं को अंधाधुंध त्याग दिया जाए। सार्थक परंपराओं व सार्थक बदलाव में एक समन्वय बने। अंधविश्वासों व दकियानूसीपन को छोड़ा जाए। दूसरी ओर शराब व अन्य तरह के नशों, अत्यधिक भोग-विलास के जीवन, व्यभिचार, भ्रष्टाचार, जुए आदि बुराइयों के विरुद्ध जो परंपरागत मान्यताएं हैं वे बनी रहें। ईमानदारी, मेहनत, सादगी में संतोष की हमारी जो परंपरागत मान्यताएं हैं उन्हें आधुनिक समय की जरूरतों से जोड़कर और मजबूत करना चाहिए।

मानव संबंधों में एक बहुत बड़ी कमी है कि ये प्राय: अपने विचार, हित, स्वार्थ स्थापित करने पर टिके होते हैं। आधिपत्य के संबंध बहुत समस्याएं लाते हैं क्योंकि दूसरे पक्ष के विचारों व जरूरतों को महत्त्व नहीं दिया जाता है। निरंतर टकराव, दुख, धोखे, झगड़े की संभावना बनी रहती है। इसलिए मानव संबंधों का आधार आधिपत्य के स्थान पर सहयोग का होना चाहिए और इसके लिए सतत प्रयास की जरूरत है। इसी तरह अधिक व्यापक स्तर पर प्रकृति व अन्य जीवों क् साथ संबंधों से भी आधिपत्य की प्रवृत्ति को हटा कर सह-अस्तित्व, सहयोग, समन्वय की सोच को विकसित करना चाहिए।

एक अति महत्त्वपूर्ण जीवन मूल्य यह है कि यथासंभव अन्याय के विरुद्ध न्याय का साथ अवश्य देना चाहिए। इस जीवन-मूल्य का व्यापक स्तर पर पालन होगा तो दुनिया अहिंसा की राह पर ही व्यापक समानता, न्याय और सबकी जरूरतों को गरिमामय ढंग से पूरा करने की ओर बढ़ेगी। सभी स्तरों पर अहिंसा की राह अपनाने व हिंसा की सोच को त्यागने के साथ-साथ दैनिक जीवन में क्रोध और बदला लेने की भावना को न्यूनतम करना भी एक महत्त्वपूर्ण जीवन मूल्य है। इसी तरह समय की बहुत बड़ी मांग है पर्यावरण की रक्षा के प्रति गहरी प्रतिबद्धता, इसके लिए सतत प्रयास और इसके अनुकूल सादगी में संतोष प्राप्त करना, ऐसी जीवन-शैली जो हर तरह के अनावश्यक उपभोग, भोग-विलास और विशेषकर नशे से मुक्त हो। यह प्रयास हमें अनेक तरह के ऐसे आकर्षणों से मुक्त रखेगा जो वास्तव में अनावश्क बंधन हैं व कई तरह की आफत के कारण भी हैं। पर्यावरण रक्षा से जुड़ते रहने से जीवन को बहुत रचनात्मकता भी मिलती है।

वास्तव में ये सभी जीवन मूल्य जीवन को बहुत सार्थक व रचनात्मक बनाते हैं। शिक्षा में, स्कूल-कॉलेजों में इन मूल्यों का प्रवेश व्यापक स्तर पर हो सके तो यह मानवता के वर्तमान के लिए तो बड़ी उपलब्धि होगी ही, भविष्य के लिए यह और भी महत्त्वपूर्ण सिद्ध होगी। निश्चय ही शिक्षा में इन जीवन मूल्यों का प्रवेश उपदेशात्मक उपायों से नहीं हो सकता है, इसे बहुत रचनात्मक व रुचिकर उपायों से करना होगा। यह शिक्षाविदों व अध्यापकों के लिए बड़ी चुनौती है। इसमें परिवार और अभिभावक स्तर पर भी महत्त्वपूर्ण योगदान चाहिए। इस दिशा में पहला कदम यह है कि सबसे सार्थक व आवश्यक जीवन-मूल्यों पर एक व्यापक सहमति बनाएं और फिर अनेक रचनात्मक उपायों से इनके शिक्षा में समावेश की ओर आगे बढ़ें।