सुरेश सेठ

अमीर देश उनके साथ कंधा भिड़ाने को तैयार नहीं। वे अपना सौ अरब का पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण के व्यय का वादा भी पूरा करने के लिए तैयार नहीं। देखना होगा कि भारत इन मजबूत और संपन्न देशों का नेतृत्व करते हुए उन्हें इस मंच पर कितना मना पाता है।

भारत के सामने दुनिया का चेहरा संवारने के लिए समर्पित प्रयास करने का एक बड़ा अवसर आ गया है। वैसे तो पिछले दिनों भारत की कूटनीतिक और आर्थिक तरक्की ने कोरोना महामारी के सबल मुकाबले और रूस तथा अमेरिका के बीच एक स्वस्थ संतुलन साधने से जो उपलब्धि हासिल की, उसका सीधा नतीजा यह निकला है कि आज न केवल दुनिया में सभी गंभीर मसलों पर भारत की राय लेनी जरूरी होती जा रही है, बल्कि भारत इस समय अलग-अलग धरातलों पर दुनिया को बदलने और संवारने के लिए भी जुट गया है।

आज अगर रूस उसे अपना मान रहा है तो अमेरिका ने भी उसको अपने वृत्त से बाहर नहीं किया है। रूस से हमने पिछले साल दो फीसद की जगह बीस फीसद तक कच्चा तेल खरीदने का अनुपात बढ़ाया, तो दूसरी ओर अमेरिका के साथ भी कई व्यावसायिक और निवेश संबंधी समझौते किए हैं। सबसे बड़ी बात कि सुरक्षा परिषद में भारत का स्थान बना है।

संयुक्त राष्ट्र का यह सशक्त अंग दुनिया के हर संघर्ष, हर झगड़े में निपटारे के लिए आगे आता है। भारत उसका अस्थायी सदस्य है, लेकिन एक महीने के लिए उसे सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता करने का मौका मिला है। काफी समय से भारत को स्थायी सदस्यता देने की मांग उठ रही है, उसे इस बार रूस का समर्थन भी मिल गया। रूस ने कहा, भारत हर मामले में वैश्विक प्रतिनिधित्व के योग्य है।

इस समय भारत, ब्राजील, जापान और जर्मनी को शामिल करने के लिए पैरवी चल रही है। पंद्रह देशों की इस परिषद के पांच स्थायी सदस्य भारत को स्थायी सदस्य बनाने की वकालत भी कर रहे हैं। यह पैरवी और सशक्त हो गई है, जब दुनिया के सबसे शक्तिशाली समूह जी-20 की एक साल के लिए अध्यक्षता भारत कर रहा है। वैश्विक जीडीपी में इस समूह की हिस्सेदारी पचासी फीसद है।

विश्व उत्पादन में इसकी हिस्सेदारी अस्सी फीसद। विश्व व्यापार में इसकी हिस्सेदारी पचहत्तर फीसद और विश्व की पैंसठ फीसद आबादी इसके सदस्य देशों में रहती है। ऐसे सशक्त संगठन की अध्यक्षता भारत कर रहा है और दूसरी ओर दुनिया के बड़े देश उसे सुरक्षा परिषद में स्थायी स्थान देने की मांग कर रहे हैं। निस्संदेह यह भारत के लिए गर्व की बात है।

अभी उदयपुर में जी-20 शेरपा की बैठक भी हो गई। इसमें भारत में पचास शहरों में दो सौ बैठकें आयोजित करने का लक्ष्य रखा गया है। अगले साल भारत में इस महत्त्वपूर्ण समूह का एजेंडा बनाना है। अगर भारत अपने कदम सही उठाता है तो निश्चय ही उसकी साख मजबूत होगी। मगर कैसे मजबूत होगी यह साख? दुनिया का हाल तो यह है कि पूरी दुनिया उत्तर, दक्षिण और पूर्व-पश्चिम के खानों में बंटी हुई है।

रूस-यूक्रेन युद्ध ने दुनिया को और ज्यादा विभाजित कर दिया है। क्या इस विभाजित तनावग्रस्त दुनिया में भारत एक सेतु बन कर उभर सकेगा? भारत सरकार ने नारा दिया है वसुधैव कुटुंबकम यानी पूरी दुनिया एक परिवार है, का। सबका कल्याण और समावेशी विकास ही जी-20 समूह का लक्ष्य होना चाहिए।

भारत एक और नई बात लेकर चला है। कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक साल भर में जी-20 के दो सौ से ज्यादा कार्यक्रम आयोजित करने जा रहा है। इसे एक अमीरों का समूह नहीं, जनसमूह बनाते हुए समाज, छात्रों और महिलाओं की सहभागिता बढ़ाने का प्रयास करने जा रहा है। विश्व के हजारों प्रतिनिधि इस एक साल में भारत आएंगे। इधर सरकार कह रही है कि जनभागीदारी बढ़ाएंगे। जाहिर है, इससे भारत के पर्यटन क्षेत्र को प्रोत्साहन मिलेगा।

हमारे सकल घरेलू उत्पादन और आय का आकलन बताता है कि पर्यटन और सेवा क्षेत्र से होने वाली आय निरंतर बढ़ रही है। अगर जी-20 के संपन्न देश बदलते भारत से वाबस्ता हो जाते हैं तो निश्चय ही पर्यटन और सेवा क्षेत्र में एक नया विकास होगा। दूसरी बड़ी बात, जो भारत की अध्यक्षता से उम्मीद के रूप में उभरी है, वह यह कि भारत एक विकासशील देश है, यह तीसरी दुनिया के नए उभरते देशों का अगुआ है। अगर इस समय जी-20 की अध्यक्षता निभाते हुए भारत दुनिया को समझौते, शांति, संवाद, अधिनायकवाद के विरोध का, लोकतंत्र के विस्तार का संदेश दे जाता है, तो निश्चय ही वह एक नई दुनिया बनाने में सफल हो सकेगा।

भारत के पास कई संदेश हैं, इस मजबूत मंच से प्रसारित करने के लिए। भारत की विविधता और अनेकता में एकता का संदेश सबको मिले। भारत ने जिस दृढ़ता के साथ कोविड प्रबंधन और महामारी का सामना किया, वह भी एक उदाहरण है और यही नहीं, भारत के करोड़ों पिछड़े और भूखे लोगों को इस महामारी के दौरान खाद्यान्न की आपूर्ति की गई। संकटकाल में भारत ने बहुत उत्तम आर्थिक प्रबंधन किया।

रूस-यूक्रेन युद्ध में भारत की मजबूत विदेश नीति सामने आई, जिसमें किसी भी पक्ष की ओर अनावश्यक झुकाव नहीं था। केवल संवाद की पैरवी और शांति को आवाज थी। यही वे बातें हैं, जिन्होंने भारत की साख दुनिया में बढ़ाई है और यही बातें हैं, जो जी-20 के मंच से भारत को सबसे कहनी है। निश्चय ही भारत अगर समर्पण के भाव से अपने रास्ते पर चलता है और दुनिया के शक्तिशाली समूह को भी साथ ले चलता है तो विश्व के कल्याण का मार्ग प्रशस्त है और वैश्विक अवधारणाओं में बदलाव का अवसर मिलेगा।

मगर बीच में कुछ ऐसे धरातल हैं, जहां इस विश्व नेतृत्व के अवसर पर भारत फिसल न जाए। सबसे पहले तो एक विकट फिसलाव जलवायु परिवर्तन की समस्या पर आ सकता है। आज भारत सहित दुनिया के सभी गरीब और विकासशील देश जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से जूझ रहे हैं। अमीर देश उनके साथ कंधा भिड़ाने को तैयार नहीं। वे अपना सौ अरब का पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण के व्यय का वादा भी पूरा करने के लिए तैयार नहीं। देखना होगा कि भारत इन मजबूत और संपन्न देशों का नेतृत्व करते हुए उन्हें इस मंच पर कितना मना पाता है।

दुनिया भर में आज महंगाई और मंदी का माहौल है। सभी देश आर्थिक ह्रास का सामना कर रहे हैं। एक दिलासाभरा संतोष यह हो सकता है कि भारत ने इनके मुकाबले अपनी विकास दर को ऊंचा रखा है, लेकिन इन विश्वव्यापी समस्याओं का मुकाबला सर्वसमावेशी आर्थिक पहल से ही होगा, आम सहमति से ही होगा। आपाधापी से अलग होकर सर्व जनकल्याण से ही होगा। देखना यह होगा कि भारत इस दिशा में कितना काम कर पाता है और किस तरीके से इस दिशा में चलते हुए विश्व के कल्याण का मार्ग विस्तृत कर सकता है।

बेशक 2008 से ही दुनिया में यह आवाज उठती रही है कि हम अकेले के बजाय साथ मिलकर चलेंगे तो ऐसे पथबंधु आसानी से दुनिया को उसकी मंजिल तक पहुंचा देंगे, लेकिन बीच में आ गए व्यापार युद्ध। एक ओर अमेरिका, दूसरी ओर चीन। फिर छिड़ा रूस और यूक्रेन युद्ध और अब एक ओर ताइवान का मसला, दूसरी ओर चीन द्वारा लद्दाख के बाद अरुणाचल में तनातनी और यों लगता है जैसे दूसरों के इलाकों को हड़पने की कोशिश और इधर भारत जी-20 के मंच से एक पृथ्वी, एक परिवार और एक भविष्य के मंत्र के साथ आगे आया है। देखना यह होगा कि यह मंत्र केवल उद्घोष रह जाता है या कि दुनिया के सब देश इसे अपनी दुश्वारियों और अपनी कटु समस्याओं से मुक्ति का मार्ग समझ कर अपना लेते हैं।