उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के लिए भाजपा से अकेले मुकाबला करना थोड़ा कठिन है। इसलिए वो गठबंधन के सहारे चुनाव में अपनी स्थिति सुधारने की कोशिश में है। अखिलेश यादव पीडीए पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक के सहारे 2024 के चुनाव में बाजी मारने का ख्वाहिश पाले हैं। लेकिन मायावती ने इसे तुकबंदी बता कर खारिज कर दिया। इससे ये स्पष्ट होता है कि साइकिल के साथ अब हाथी खड़ा होने के लिए किसी भी सूरत में तैयार नहीं है।

दरअसल अखिलेश यादव उन पिछड़े और दलितों को साथ लाने की ख्वाहिश पाले हैं जो एक समय पर बहुजन समाज पार्टी का पारंपरिक मतदाता माना जाता था, लेकिन वो 2014 से भाजपा के पाले चला गया। हाल फिलहाल तक भी ये मतदाता उसके साथ ही जुड़ा है। यदि वो उसके साथ नहीं होता तो भाजपा किसी भी हाल में अपने सहयोगी दलों के साथ उत्तर प्रदेश की 80 में से 76 सीटें जीतने का ख्वाब भी नहीं देख सकती थी।

2014 के चुनाव में अखिलेश यादव और मायावती दोनों को यह बात बखूबी समझ आ चुकी थी कि अब दलित और पिछड़ों ने उनका साथ छोड़ दिया है। इस चुनाव में मिली करारी शिकस्त ने सपा और बसपा को चारों खाने चित कर दिया है। दोनों की सेनाएं परास्त हो कर वापस लौट गई थीं। इस चुनाव की हार से घबराए अखिलेश ने 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का दामन थामा।

उन्हें इस बात का भरोसा था कि राहुल गांधी का साथ उत्तर प्रदेश में उनकी साख बचा पाने में कामयाब होगा। लेकिन ये भी सियासी दांव उलटा पड़ा और भाजपा ने पूर्ण बहुमत सरकार बनाकर राहुल और अखिलेश समेत मायावती को भी चौंका दिया। विधानसभा चुनाव में मिली इस शिकस्त ने अखिलेश यादव को सलाहकारों ने सुझाव दिया कि यदि बसपा का साथ मिल जाए तो 2019 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में बड़ा चुनावी उलटफेर किया जा सकता है।

काफी मान मनौव्वल के बाद गेस्ट हाउस कांड के पुराने घाव भुला कर मायावती अखिलेश यादव के साथ गठबंधन करने को तैयार हुर्इं। उस वक्त मायावती से गठबंधन न करने को लेकर मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश को कई बार मना किया लेकिन वो बसपा के साथ गठबंधन कर चुनावी मैदान में उतरे। बुआ-बबुआ की जोड़ी की तरफ राजनीतिक पंडित टकटकी लगाए देखते रहे।

कन्नौज में अखिलेश की पत्नी डिम्पल यादव ने मायावती के पैर छुए और यहीं से उनका पारंपरिक यादव और मुस्लिम मतदाता उनसे खासा नाराज हो गया। बुआ और बबुआ दोनों को लोकसभा चुनाव में करारी शिकस्त मिली। दोनों ने चुनाव के बाद कसम खाई कि चाहे कुछ भी हो जाए भविष्य में सपा-बसपा गठबंधन नहीं होगा।

अब पीडीए के सहारे अखिलेश 2024 के लोकसभा चुनाव में कुछ बड़ा हासिल करने की कोशिश में हैं। लेकिन बड़ा सवाल ये है कि अभी अपने संगठन को दुरुस्त कर रहे अखिलेश और मायावती कैसे भाजपा का मुकाबला करेंगे? जबकि भाजपा ने अपनी सेनाओं को हर तरह की सुविधाओं से सुसज्जित कर दिया है और वो मैदान में अभ्यास कर रही हैं। देखना दिलचस्प होगा कि आखिर सपा और बसपा इस चुनाव में कौन सा करतब दिखा पाने में कामयाब हो पाती हैं?