पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में उत्तर कोरिया के शासक किम जोंग उन के साथ अमेरिका ने बातचीत शुरू की थी, लेकिन यह बेनतीजा रही। आज भी कोई आसार नहीं दिख रहे कि अमेरिका किम को और मिसाइल परीक्षणों से रोक पाएगा। उत्तर कोरिया ने इस साल जनवरी में एक के बाद एक मिसाइल परीक्षण करते हुए दुनिया को फिर से यह संदेश दे दिया है कि वह अपनी सैन्य ताकत बढ़ाने का अभियान जारी रखेगा।
उत्तर कोरिया के इस कदम से खासतौर से अमेरिका की नींद उड़ी हुई है और संयुक्त राष्ट्र भी चिंतित है। हैरानी की बात तो यह कि उत्तर कोरिया ने ये परीक्षण ऐसे वक्त में किए हैं जब कोरोना महामारी के कारण उसकी अर्थव्यवस्था चरमरा जाने और भुखमरी के हालात पैदा हो जाने की खबरें आ रही हैं। हालांकि दावा यह किया जा रहा है कि उत्तर कोरिया के तानाशाह शासक किम जोंग उन ने देश के भीतर जन असंतोष को काबू में रखने के लिए ही ये मिसाइल परीक्षण किए हैं, ताकि मुख्य आर्थिक मुद्दों से जनता का ध्यान बांटा जा सके।
उत्तर कोरिया का परमाणु और मिसाइल कार्यक्रम क्षेत्रीय शांति के लिए गंभीर चुनौती बन गया है। इससे एशियाई क्षेत्र में हथियारों की होड़ बढ़ गई है। यह खतरा इसलिए भी गंभीर है कि ज्यादातर एशियाई देशों की बड़ी आबादी पहले से ही गरीबी जैसे संकट का सामना कर रही है। पर देखने में आ रहा है कि एशियाई देश हथियारों की होड़ को कम करने के बजाय उसे बढ़ाने में ही अपनी सुरक्षा समझ रहे हैं।
वैसे इसके पीछे एक बड़ा कारण यह है कि इससे वैश्विक हथियार कारोबार को भी ताकत मिलती है। पिछले कुछ सालों में उत्तर कोरिया ने अपने मिसाइल और परमाणु कार्यक्रम काफी तेज कर दिए हैं। इसका सीधा प्रभाव दक्षिण कोरिया और जापान जैसे देशों पर पड़ रहा है, जिनका उत्तर कोरिया से पुराना विवाद चला आ रहा है। उत्तर कोरियाई हथियार कार्यक्रम के कारण जापान और दक्षिण कोरिया को भी हथियार की होड़ में शामिल होना पड़ा है, जिसका स्वाभाविक रूप से लाभ अमेरिकी हथियार उद्योग को मिल रहा है।
मिसाइल कार्यक्रम में उत्तर कोरिया काफी आगे बढ़ चुका है। उसने ह्वासोंग श्रेणी के आधुनिक मिसाइल विकसित कर ली हैं। ह्वासोंग-12 की मारक क्षमता पैंतालीस सौ किलोमीटर है, जबकि ह्वासोंग-14 की मारक क्षमता दस हजार चार सौ किलोमीटर है। ह्वासोंग-15 की मारक क्षमता तेरह हजार किलोमीटर है। आज उत्तर कोरियाई मिसाइलों के निशाने पर अमेरिकी शहर हैं। इसीलिए अमेरिकी प्रशासन ने उत्तर कोरिया पर परमाणु और मिसाइल कार्यक्रम को रोकने के लिए हर तरह से दबाव बनाने में लगा है, इसका नतीजा कुछ नहीं निकल रहा। उधर चीन पूरी तरह से उत्तर कोरिया के साथ है और उसके मिसाइल विकास कार्यक्रम में हर तरह से मदद दे रहा है।
पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में उत्तर कोरिया के शासक किम जोंग उन के साथ अमेरिका ने बातचीत शुरू की थी। लेकिन यह बेनतीजा रही। आज भी कोई आसार नहीं दिख रहे कि अमेरिका किम को और मिसाइल परीक्षणों से रोक पाएगा। हालांकि उस समय किम जोंग ने बातचीत के दौरान हथियारों के होड़ को कम करने के संकेत दिए थे। लेकिन हकीकत में अब तक ऐसा कुछ देखने में आया नहीं है जिससे लगता हो कि उत्तर कोरिया परमाणु हथियारों और मिसाइलों के विकास को रोकेगा, बल्कि वह इस काम को और तेजी से बढ़ाता जा रहा है। पिछले साल सैन्य परेड में किम जोंग उन ने सबमरीन बैलेस्टिक मिसाइलों का प्रदर्शन किया था।
उत्तर कोरिया के हालात इस समय काफी खराब है। कोरोना के कारण उत्तर कोरिया ने देश में कड़े प्रतिबंध और बंदी जैसे कदम उठाए। इससे वहां खाद्य पदार्थों का संकट गहरा गया। आज लाखों लोग भुखमरी के शिकार हो गए हैं। खुद किम जोंग उन ने भी इस बात को माना है। इसके बावजूद उत्तर कोरिया मिसाइल परीक्षण कर रहा है, परमाणु कार्यक्रम तेज कर रहा है तो इसका सीधा मकसद देश को ऐसी बड़ी सैन्य ताकत बनाना है जो अमेरिकी चुनौतियों का मुकाबला कर सके। इसीलिए गरीब मुल्क होने के बावजूद किम जोंग उन सेना के आधुनिकीकरण और हथियारों पर भारी पैसा खर्च कर रहा है। उत्तर कोरिया की थल सेना में ग्यारह लाख और वायु सेना में एक लाख दस हजार जवान हैं। जबकि आर्थिक रूप से विकसित उसके पड़ोसी दक्षिण कोरिया की थल सेना में साढ़े चार लाख सैनिक हैं और वायुसेना में पैंसठ हजार।
हालांकि कोरिया प्रायद्वीप में दशकों से मौजूद तनाव का एक मुख्य कारण इस इलाके के प्राकृतिक संसाधन भी हैं। इन संसाधनों को लेकर वैश्विक ताकतें संघर्ष करती रही है। बीसवीं सदी में एशियाई भू-राजनीति को अपने हिसाब से चलाने के लिए पश्चिमी ताकतों ने भारत और पाकिस्तान की तर्ज पर कोरिया का भी विभाजन कर दिया था। वैश्विक ताकतों की विभाजन की इसी कूटनीति के कारण कोरियाई देश एक दूसरे के खिलाफ हैं।
सोवियत रूस और अमेरिका ने द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान की हार के बाद कोरिया का विभाजन कर उसे उत्तर और दक्षिण कोरिया में बांट दिया था। उसके बाद से ही ये देश हथियारों की होड़ में लग गए। उत्तर कोरिया ने जहां अपने परमाणु कार्यक्रम और मिसाइल कार्यक्रम को तेज किया, वहीं दक्षिण कोरिया हथियारों और मिसाइल रक्षा प्रणाली के लिए अमेरिका पर निर्भर हो गया।
दरअसल उन्नीसवीं सदी से ही कोरिया वैश्विक ताकतों के बीच संसाधनों को लेकर युद्ध का शिकार हो गया था। कोरिया में लोहा और कोयले काफी है। इसलिए जापान और चीन दोनों की नजरें यहां के संसाधनों पर लगी हैं। जापान ने चीन के प्रभाव से कोरिया को निकालने की कोशिश की। जापान ने खनन क्षेत्र में कोरिया को आधुनिक तकनीक देकर उसे चीन के प्रभाव से निकालने की कोशिश की। पर इसका नतीजा यह हुआ कि कोरियाई संसाधनों पर कब्जे को लेकर चीन और जापान एक दूसरे के सामने आ गए। बीसवीं शताब्दी में भी इस इलाके के संसाधनों पर कब्जे के लिए जापान अपनी ताकत दिखाता रहा है। पर दूसरे विश्वयुद्ध में वह हार गया था।
अब तक माना जा रहा था कि जो बाइडेन के राष्ट्रपति बनने के बाद उत्तर कोरिया के साथ बातचीत की संभावनाएं बनेंगी। इस दिशा में कुछ प्रयास श्ुरू तो हुए, पर अभी तक अमेरिका किम जोंग उन के साथ तालमेल बैठ नहीं पाया है। कहा यह भी जाता रहा है कि उत्तर कोरिया के परीक्षण अमेरिका पर दबाव बनाने के लिए ज्यादा हैं। लेकिन इस हकीकत से कोई इनकार नहीं करेगा कि उत्तर कोरिया को मिसाइल शक्ति से संपन्न बनाने के पीछे चीन के भी अपने हित हैं। एशिया-प्रशांत क्षेत्र में चीन के साथ उत्तर कोरिया भी अमेरिका के लिए बड़ा सरदर्द बन गया है।
उत्तर कोरिया के सामने बड़ी चुनौती देश को मौजूदा संकट से उबारने की है। दक्षिण कोरिया की अर्थव्यवस्था 1.64 खरब डालर की है, जबकि उत्तर कोरिया की अर्थव्यस्था चालीस अरब डालर की है। महामारी में भी दक्षिण कोरिया ने अपनी अर्थव्यवस्था को बचाए रखा और निर्यात को बढ़ाया। महामारी के दौर में दक्षिण कोरिया ने रूस और ब्राजील की अर्थव्यवस्था को भी पीछे छोड़ दिया। दूसरी तरफ पूर्णबंदी के कारण उत्तर कोरिया में भुखमरी फैल गई। इससे यह तो साफ है कि उत्तर कोरिया नए संकट में फंसता जा रहा है। लेकिन हथियार निर्माण और परीक्षण उसकी प्राथमिकता है। ऐसे में बड़ा संकट यही है कि अगर यह मुल्क इसी रास्ते पर चलता रहा तो एक न एक दिन इसकी नीतियों का खमियाजा पूरे क्षेत्र को उठाना पड़ सकता है।