देवेंद्रराज सुथार
अध्ययनों से पता चला है कि बोतलबंद पानी में भी प्लास्टिक के सूक्ष्म कण मौजूद हैं। कनाडाई वैज्ञानिकों द्वारा माइक्रोप्लास्टिक कणों पर किए गए विश्लेषण में चौंकाने वाले नतीजे मिले हैं। विश्लेषण में पता चला है कि एक वयस्क व्यक्ति प्रतिवर्ष लगभग बावन हजार माइक्रोप्लास्टिक कण केवल पानी और भोजन के साथ निगल रहा है। इसमें अगर वायु प्रदूषण को भी मिला दें तो हर साल करीब एक लाख इक्कीस हजार माइक्रोप्लास्टिक कण भोजन-पानी और सांस के जरिए एक वयस्क व्यक्ति के शरीर में जा रहे हैं।
केंद्र सरकार अगले साल तक भारत को एकल उपयोग प्लास्टिक से मुक्त करना चाहती है। इस संदर्भ में पर्यावरण मंत्रालय ने प्लास्टिक कचरा प्रबंधन नियम जारी किए हैं। उसमें कहा गया है कि 1 जुलाई, 2022 से पॉलीस्टाइरिन (थर्मोकोल) और एक्सपैंडेड पॉलीस्टाइरिन के साथ एकल उपयोग वाले प्लास्टिक का उत्पादन, आयात, भंडारण, वितरण, बिक्री और उपयोग वर्जित होगा। अब प्लास्टिक बैग की मोटाई पचास माइक्रॉन से बढ़ा कर पचहत्तर माइक्रॉन कर दी गई है। ये नियम 30 सितंबर से दो चरणों में लागू किए जाएंगे। चालीस माइक्रोमीटर या उससे कम मोटाई के प्लास्टिक को एकल उपयोग प्लास्टिक कहते हैं। यानी इन्हें एक बार उपयोग करके फेंक दिया जाता है। मसलन, सब्जी के पैकेट, चाय के प्लास्टिक कप, चाट-गोलगप्पे वाली प्लास्टिक प्लेट, पानी की बोतल, स्ट्रॉ आदि एकल उपयोग प्लास्टिक हैं।
पर्यावरण मंत्रालय की चिंता वाजिब है कि एकल उपयोग प्लास्टिक की वजह से पर्यावरण प्रदूषण पूरे विश्व के सामने चुनौती बन गया है।
जहां प्लास्टिक हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में बहुत उपयोगी साबित हो रहा है वहीं यह हमारे स्वास्थ्य और पर्यावरण को बड़ी तेजी से नुकसान पहुंचा रहा है। प्लास्टिक प्रदूषण की समस्या दिनोंदिन विकराल रूप धारण करती जा रही है। भारत में प्लास्टिक कचरे के निस्तारण की व्यवस्था भी नहीं है। स्थिति यह है कि भारत में सड़क से लेकर नाली, सीवर और घरों के आसपास प्लास्टिक कचरा हर जगह नजर आता है। एक अनुमान के मुताबिक, भारत में हर साल छप्पन लाख टन प्लास्टिक कचरा पैदा होता है। साठ फीसद प्लास्टिक कचरे को दुनिया के महासागरों में फेंक दिया जाता है। एनवायरमेंट साइंस एंड टेक्नोलॉजी के अनुसार, दुनिया की दस नदियां, जो महासागरों में नब्बे फीसद प्लास्टिक ले जाती हैं, उनमें भारत की तीन प्रमुख नदियां सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र हैं। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने जनवरी 2015 की आकलन रिपोर्ट में कहा था कि भारतीय शहर हर दिन पंद्रह हजार टन प्लास्टिक कचरा उत्पन्न करते हैं।
प्लास्टिक किसी अन्य तत्व या जैविक चीजों की तरह पर्यावरण में घुलता नहीं, बल्कि सैकड़ों साल तक वैसे ही बना रहता है। साथ ही प्लास्टिक जिस जगह पर पड़ा रहता है उस जगह को अपने रसायनों से जहरीला भी बनाता जाता है। जिस मिट्टी में यह प्लास्टिक जाता है, उसे बंजर बना देता है। पानी में जाता है, तो पानी को न केवल जहरीला बनाता, बल्कि जलजीवों के लिए मौत का कारण बन जाता है। बीते पचास वर्षों में हमने जितना उपयोग प्लास्टिक का बढ़ाया है, किसी अन्य चीज का इतनी तेजी से नहीं बढ़ाया। 1960 में दुनिया में पचास लाख टन प्लास्टिक बनाया जा रहा था, आज यह बढ़ कर तीन सौ करोड़ टन के पार हो चुका है। यानी हर व्यक्ति के लिए करीब आधा किलो प्लास्टिक हर वर्ष बन रहा है। हर साल तकरीबन 10.4 करोड़ टन प्लास्टिक कचरा समुद्र में मिल जाता है। 2050 तक समुद्र में मछली से ज्यादा प्लास्टिक के टुकड़े होने का अनुमान है। प्लास्टिक के मलबे से समुद्री जीव बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं। कछुओं की दम घुटने से मौत हो रही है और वेल इसके जहर का शिकार हो रही हैं।
प्लास्टिक ने भारत में साठ के दशक में प्रवेश किया था। इसको लेकर आज एक अजीबोगरीब विवाद खड़ा हो गया है। पर्यावरणविदों का कहना है कि यह पारिस्थितिकी तंत्र के लिए खतरनाक है, लेकिन इसके पैरोकारों का दावा है कि यह पर्यावरण के अनुकूल है, क्योंकि यह लकड़ी और कागज का सबसे अच्छा विकल्प है। दरअसल, प्लास्टिक अपने उत्पादन से लेकर उपयोग तक सभी चरणों में पर्यावरण और पूरे पारिस्थितिकी तंत्र के लिए खतरनाक है। इसके अलावा यह भी एक महत्त्वपूर्ण तथ्य है कि इसका उत्पादन ज्यादातर लघु क्षेत्र के उद्योगों में किया जाता है जहां गुणवत्ता मानदंडों का पालन नहीं किया जाता। वैज्ञानिकों द्वारा प्रमाणित किया गया है कि प्लास्टिक के सामान के उपयोग से नब्बे प्रतिशत कैंसर की संभावना होती है। डब्ल्यूडब्ल्यूएफ का लक्ष्य 2030 तक स्ट्रॉ और पॉलिथीन बैग जैसी सिर्फ एक बार प्रयोग की जाने वाली प्लास्टिक की वस्तुओं का इस्तेमाल बंद करना है। प्लास्टिक कचरे में सबसे ज्यादा मात्रा एकल उपयोग प्लास्टिक की ही होती है।
अध्ययनों से पता चला है कि बोतलबंद पानी में भी प्लास्टिक के सूक्ष्म कण मौजूद हैं। कनाडाई वैज्ञानिकों द्वारा माइक्रोप्लास्टिक कणों पर किए गए विश्लेषण में चौंकाने वाले नतीजे मिले हैं। विश्लेषण में पता चला है कि एक वयस्क व्यक्ति प्रतिवर्ष लगभग बावन हजार माइक्रोप्लास्टिक कण केवल पानी और भोजन के साथ निगल रहा है। इसमें अगर वायु प्रदूषण को भी मिला दें तो हर साल करीब एक लाख इक्कीस हजार माइक्रोप्लास्टिक कण भोजन-पानी और सांस के जरिए एक वयस्क व्यक्ति के शरीर में जा रहे हैं। हर साल उत्पादित होने वाले कुल प्लास्टिक में से महज बीस फीसद पुनर्चक्रित हो पाता है।
उनतालीस फीसद जमीन के अंदर दबा कर नष्ट किया जाता है और पंद्रह फीसद जला दिया जाता है। पूरी दुनिया में हर मिनट पेयजल की दस लाख प्लास्टिक बोतलें खरीदी जाती हैं। बोतलबंद पानी का पारिस्थितिकी तंत्र पर चौदह सौ गुना और जल स्रोतों पर पैंतीस सौ गुना अधिक बुरा प्रभाव पड़ता है। बोतलबंद पानी को बनाने की प्रक्रिया में प्रतिवर्ष करीब 1.43 प्रजातियां धरती से खत्म हो रही हैं और जैव विविधता को नुकसान पहुंच रहा है। एक लीटर बोतलबंद पानी के लिए 1.6 लीटर पानी लगता है। इसमें भरा जाने वाला अधिकांश जल संसाधित भू-जल होता है, जिससे जलवाही स्तर घट रहा है।
भारत में बोतलबंद पानी के कारोबार को लेकर एक सर्वे रिपोर्ट बताती है कि यह सालाना लगभग इक्कीस प्रतिशत के हिसाब से बढ़ रहा है। 2019 के आंकड़े गवाह हैं कि एक सौ साठ अरब रुपए का यह कारोबार 2023 तक बढ़ कर चार सौ साठ अरब तक पहुंचने वाला है। इसका प्रत्यक्ष संबंध पर्यावरण से जुड़ा है। दुनिया भर में प्रचलित बोतलबंद पानी प्लास्टिक कचरे में बढ़ोत्तरी का मुख्य कारण है। जहां देश के संपन्न लोग बोतलबंद पानी पर अवलंबित होते जा रहे हैं, वहीं निर्धन जनता बूंद-बूंद पानी को तरस रही है।
प्लास्टिक के जलने से उत्सर्जित होने वाली कार्बन डाइआॅक्साइड की मात्रा 2030 तक तीन गुना हो जाएगी, जिससे हृदय रोग के मामले में तेजी से वृद्धि होने की आशंका है। बीते साल इटली यूरोप का ऐसा पहला देश बन गया, जहां ऐसे प्लास्टिक पर पूरी तरह पाबंदी लगा दी गई, जो कुदरती तौर पर अपने आप पूरी तरह से नष्ट नहीं होता। चीन, दक्षिण कोरिया, केन्या, उगांडा, ताइवान और बांग्लादेश समेत कई देशों में बहुत पतले प्लास्टिक बैग के इस्तेमाल पर प्रतिबंध है।
देखा गया कि प्लास्टिक के बैग नालियों को जाम कर देते हैं और कई बार बाढ़ का सबब बनते हैं। चूंकि भारत में कुल प्लास्टिक कचरे का सत्तर प्रतिशत शहरी क्षेत्रों में होता है, इसलिए शहरी स्थानीय निकायों को पुन: उपयोग योग्य और गैर-पुन: उपयोग योग्य श्रेणियों में इकट्ठा करने और विभाजित करने के लिए विशाल श्रम की आवश्यकता है। हमें समझना होगा कि पर्यावरण जैसी साझी विरासत की रक्षा करना हम सबकी नैतिक जिम्मेदारी है। प्लास्टिक को केवल कानून बना कर और जुर्माना लगा कर नहीं रोका जा सकता, बल्कि हमें इसके नुकसान को लेकर जन-जागृति लाने की आवश्यकता है। जब आमजन में यह समझ विकसित होगी कि प्लास्टिक जैसा पदार्थ बेजुबान पशुओं की मौत से लेकर भूमि की उर्वरता क्षमता को नष्ट करने वाला सबसे बड़ा कारक है, तो इसको लेकर लोग जरूर सचेत होंगे।