प्रभात झा

नियति की नीयत को कोई नहीं जानता। कोरोना विपदा के बारे में भी यही कहा जा सकता है। कोरोना वैश्विक महामारी है। सिर्फ भारत नहीं विश्व के लगभग 190 देश इसकी चपेट में है। उन देशों में भारत भी है जो कोरोना की वैश्विक आपदा से जूझ रहा है। यह संकट किसी के द्वारा लाया नहीं गया है, बल्कि स्वत: आया है। इसे ही प्रकृति प्रदत्त प्रकोप कहते हैं। आजादी के बाद भारत ने ऐसी किसी विकट विपदा का कभी सामना नहीं किया। ऐसे वैश्विक संकट में भारत की राष्ट्र के नाते बड़ी भूमिका हो गई है। कोरोना जन-जन का संकट बन चुका है। अच्छी बात यह है कि जन-जन के इस संकट से लड़ने के लिए प्रधानमंत्री के नेतृत्व में देश का जन-जन अपने-अपने स्थान पर खड़ा हो गया है।

राष्ट्र जीवन में कभी-कभी ऐसा काल आता है, जब राष्ट्र के लिए सबको अपने-अपने विचारों को तिलांजलि देकर राष्ट्र ध्वज तिरंगे के सम्मान में और जनार्दन रूपी जनता के साथ होकर एक साथ खड़ा होना पड़ता है। यह समय ऐसा ही है। जिंदगी गरीब और अमीर हो सकती है, पर हर किसी की जिंदगी, जिंदगी होती है। एक अमीर की सांस का महत्त्व परिवार में जो होता है, उससे कहीं अधिक एक गरीब की सांस का महत्त्व उसके परिवार के लिए होता है। हम मनुष्य हैं। मनुष्य हैं तो विचार करेंगे। विचार करेंगे तो तुलना भी होगी, आकलन भी होगा और समीक्षा भी करेंगे। पूरे देश की जनता राष्ट्र के संकट के दौरान सभी राजनीतिक दलों को पैनी निगाह की नजरों से देख रही है।

आज मैं जब तुलना करता हूं, तो मन में सहसा विचार आता है कि संगठन क्यों होता है? उसमें भी कार्यकर्ता आधारित संगठन का महत्त्व क्यों हो जाता है? एक कदम आगे जाएं, तो उस संगठन का महत्त्व और बढ़ जाता है जिसकी नीचे तक संगठनात्मक संरचना होती है। कहने को कांग्रेस सवा सौ साल से अधिक पुरानी पार्टी है। वर्षों तक भारत में उनका शासन रहा। पर दिक्कत यह रही कि जवाहर लाल नेहरू और इंदिरा गांधी ने कांग्रेस को कभी भी परिवार से बाहर नहीं आने दिया। अत: धीरे-धीरे देश में उनकी संगठनात्मक संरचना समाप्त हो गई। कांग्रेस आज विरोध के लिए विरोध करने वाली राजनीतिक पार्टी बन कर रह गई है। किसी भी दल में पार्टी से बड़ा नेता नहीं हो सकता। इसका ताजा उदाहरण हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जो अपने हर संगठनात्मक भाषण में एक ही बात कहते हैं, ‘नरेंद्र मोदी की क्या हैसियत है, यह तो भारतीय जनता पार्टी है जिसने देश के प्रधानमंत्री पद पर लाकर खड़ा कर दिया।’ क्या आज कांग्रेस की सोनिया गांधी, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी यह कहने की हिम्मत रखते हैं?

कोरोना से निपटने के लिए प्रधानमंत्री ने जनता कर्फ्यू लगाया और कोरोना के संकट को देखते हुए 24 मार्च आधी रात बजे से देश बंदी की घोषणा की। यह घोषणा देशहित में थी, न कि दल हित में। जब देश की बात आती है तो उसमें सभी दल, संस्थाएं व एक-एक नागरिक समर्पित हो जाता है। अटल जी कहा करते थे कि जब देश संकट में हो तो विचारधारा को चादर से ढक कर राष्ट्रधारा के साथ एक साथ खड़े हो जाना चाहिए। भाजपा के लाखों कार्यकर्ता चरणबद्ध और समयबद्ध कार्यक्रम के तहत अनुशासन और सामाजिक दूरी के साथ समाज के बीच जो काम कर रहे हैं, वह सदैव स्मरणीय रखा जाएगा। प्रधानमंत्री जी ने आह्वान किया कि घड़ा-घंटी, शंख बजा कर, ताली बजा कर अपने-अपने घरों में उन सभी को सम्मान दें, जो अपनी जान जोखिम में डाल कर राष्ट्र में लोगों की जिंदगी बचाने में लगे हैं। भाजपा ने इस कार्यक्रम को अपनी संगठनात्मक व्यवस्थाओं के तहत शहर से लेकर गांव तक सफल बनाया, वहीं कांग्रेस ने अपने कार्यकर्ताओं को तो छोड़िए, जनता से अपील तक नहीं की।

जनता कर्फ्यू के बाद कोरोना को लेकर केंद्र सरकार ने करोड़ों भारतीयों के हित में एक नहीं अनेक फैसले लिए। पर किसी कांग्रेसी या विरोधी दल ने स्वागत नहीं किया। क्या राष्ट्रीय संकट के इस समय में उन्हें सरकार के साथ नहीं खड़ा होना चाहिए? क्या भारत सिर्फ भाजपा का राष्ट्र है? इस संकट में जन-जन की भावना की कद्र जो नहीं करेगा, उसे आने वाले दिनों में जनता अच्छी तरह सबक सिखाएगी।

आज भाजपा के कार्यकर्ता राष्ट्रीय अध्यक्ष के नेतृत्व में ऑडियो-वीडियो से कांफ्रेंसिंग के माध्यम से सतत सक्रिय हैं। वहीं ऐसे समय में न कांग्रेस का 24, अकबर रोड सक्रिय है और उनके नेताओं के कार्यालय। उनके यहां से सिर्फ प्रधानमंत्री पर आरोप-प्रत्यारोप किया जा रहा है, न कि खुले रूप से आह्वान किया जा रहा है कि प्रधानमंत्री जी राष्ट्रीय संकट में कांग्रेस हर कार्यकर्ता आपके साथ है। हम सोचते हैं कि कांग्रेस के नेता किस मुंह से यह बात करेंगे, क्योंकि कांग्रेस के पास आज कोई भी संगठनात्मक ढांचा नहीं है। हर कांग्रेसी यह कहता है कि कांग्रेस को हम नहीं जानते, जो भी है सोनिया जी, राहुल जी और प्रियंका जी।

वहीं भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने अपने सभी राष्ट्रीय पदाधिकारियों, सांसदों, विधायकों सहित सभी प्रदेश अध्यक्षों से नित्य चर्चा कर रहे हैं। सभी प्रदेश अध्यक्ष अपने-अपने राज्यों के जिला मंडल अध्यक्षों से चर्चा कर रहे हैं। संगठनात्मक आधार पर हर पदाधिकारी को देश में दस-दस जिले का दायित्व दिया गया है। प्रधानमंत्री ने प्रत्येक केंद्रीय मंत्री को देश के भिन्न-भिन्न राज्यों का कार्य सौंपा है। जहां सरकार कोरोना आपदा पर सूक्ष्म दृष्टि रखे हुए है, वहीं संगठन पूरी तरह अद्यतन जानकारी से युक्त रहता है। संगठन का महत्त्व इससे समझा जा सकता है।

आज हम जब नजर दौड़ाते हैं तो देखने में आता है कि परिवार आधारित राजनीति दलों के पास आज न विचार हैं, न कार्यकर्ता हैं और न संगठन है। अगर है तो सिर्फ परिवार के समर्थन और परिवार से लगाव रखने वाले लोगों का समूह। जब देश संकट से गुजर रहा हो और ऐसे में देश के सभी राजनीति दलों के कार्यकर्ताओं को स्वत: सक्रिय होना चाहिए और संगठनात्मक रूप से उतरना जाना चाहिए। भारत में जब पांच अप्रैल को प्रधानमंत्री ने रात नौ बजे नौ मिनट तक दीया जलाने का आह्वान किया तो देश में झुग्गियों में रहने वालों से लेकर अट्टालिकाओं में रहने वालों तक ने एक साथ खड़े होकर दीये जलाते हुए कोरोना से लड़ने का जन-जन में विश्वास जगाया। लेकिन यह आश्चर्य की बात है कि कांग्रेस ने इसका भी विरोध किया।

लोकतंत्र में दो पहिए होते हैं, एक सत्ता और दूसरा विपक्ष। सत्ता पक्ष अपने सत्कार्यों से जन-जन में अपना स्थान बनाए रखना चाहता है और विपक्ष की भूमिका राष्ट्र प्रहरी के रूप में सत्ता निर्णय पर पैनी निगाह रखने की होती है। हम सब जानते हैं, स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी ने विपक्ष के नेता के नाते न केवल भारत में, बल्कि जन-जन के मन में स्थान बनाया। उन्होंने कभी प्रधानमंत्री बनने की बात नहीं सोची, पर देश की जनता ने उनके बारे में अपना मन बनाया कि उन्हें आज नहीं तो कल प्रधानमंत्री बनना चाहिए। आज देश में अटल जी और आडवाणी जी की तरह प्रतिपक्ष की जरूरत है जो राष्ट्रीय संकट में यह नहीं देखते थे कि केंद्र और राज्य में किसकी सरकार है। वे सिर्फ यह देखते थे कि देश का हित किसमें है। लोकतंत्र को कायम रखने के लिए विपक्ष भी कायम रहना चाहिए। काश! कांग्रेस सहित जो भी विपक्षी दल हैं, उन्हें भी यह समझ में आ जाए।
(लेखक राज्यसभा सांसद एवं भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं)