विजय भंडारी
नवगठित नीति आयोग के उपाध्यक्ष डॉ. अरविंद पानगड़िया ने पदभार ग्रहण करने के बाद जयपुर में एक तरह से अपना पहला नीति वक्तव्य दिया। उसमें उन्होंने कहा कि राजस्थान में विपुल मात्रा में खनिज पेट्रोल उपलब्ध है, मगर उसके शोधन के लिए स्थापित की जाने वाली रिफाइनरी के लिए हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड (एचपीसीएल) और राज्य सरकार के बीच जो समझौता हुआ है उसे ‘बुरे सौदे’ की संज्ञा दी जा सकती है। वहीं प्रधानमंत्री देश के आर्थिक विकास के लिए चाहते हैं कि राज्यों की राज्यों के बीच, राज्यों की केंद्र के बीच स्पर्द्धा हो और पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) प्रणाली के आधार पर विनिवेश करके उद्योगों की स्थापना की जाए, जिससे नए रोजगार पैदा हो सकें। पानगड़िया का राजस्थान में एचपीसीएल की रिफाइनरी को लेकर दिया गया वक्तव्य प्रधानमंत्री की मंशा से मेल खाता नजर नहीं आता है।
अमेरिका की कोलंबिया यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र के नामी प्रोफेसर रहे डॉ. पानगड़िया मानते हैं कि जिस राजस्थान सरकार पर पिछली कांग्रेस सरकार 1.3 लाख करोड़ रुपए का कर्जा छोड़ कर गई है, वह सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी एचपीसीएल से ऐसा समझौता करे, जिसमें राज्य को प्रतिवर्ष चार हजार करोड़ रुपए रिफाइनरी स्थापित करने के लिए देने पड़ें, तो वह स्वाभाविक रूप से बुरा सौदा है। उनका तर्क है कि पंद्रह वर्षों तक राज्य सरकार को कुल मिला कर लगभग पचास हजार करोड़ रुपए देने पड़ेंगे। यानी जब राज्य सरकार की वित्तीय स्थिति पहले से इतनी खराब है तो उसमें यह अतिरिक्त भार उसके खजाने का भट्ठा बिठाने वाला ही साबित होगा।
राजस्थान में नई भाजपा सरकार की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के स्वर में स्वर मिलाते हुए पानगड़िया ने कहा कि एचपीसीएल के साथ किए गए समझौते पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए, क्योंकि वह राज्य के हितों के विपरीत है। हालांकि राजे सरकार को काम करते तेरह महीने हो गए हैं, लेकिन वह अभी तक यह निर्णय नहीं कर पाई है कि इस मसले पर पुनर्विचार के लिए क्या किया जाए? भिन्न-भिन्न समाचारों से पता चलता है कि अभी तक इस बात को लेकर भी अंतिम निर्णय नहीं हो पाया है कि इस मसले पर कोई नया सलाहकार ढूंढ़ने के लिए क्या तरीका अपनाया जाए!
मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने पिछले वर्ष ही जयपुर के डॉ. पानगड़िया को राज्य आयोजना मंडल का उपाध्यक्ष नियुक्त कर दिया था। एचपीसीएल और राज्य सरकार के बीच सितंबर, 2013 में समझौता हुआ था। इसलिए माना जा सकता है कि राजस्थान सरकार के आयोजना मंडल का उपाध्यक्ष बनने के बाद पानगड़िया ने उस समझौते को जरूर देखा होगा। संभव है उसका अध्ययन करने के बाद ही उन्होंने उक्त टिप्पणी की होगी।
मगर हकीकत यह है कि संबंधित समझौते में ऐसी कोई शर्त नहीं है, जिसे लेकर पानगड़िया साहब चिंता जाहिर कर रहे हैं। फिर सवाल यह भी है कि देश का ऐसा कौन-सा राज्य है, जो लाखों-करोड़ों के कर्ज तले नहीं दबा हुआ है? हर राज्य सरकार कर्ज के बल पर ही अपनी विकास परियोजनाएं आगे बढ़ा रही है। यहां तक कि खुद भारत सरकार पर अरबों-खरबों का विदेशी कर्ज है। यह नहीं भूलना चाहिए कि विकासशील अर्थव्यवस्था के लिए घाटे की वित्तीय स्थिति उन्नति की सीढ़ी है।
यह सबको पता है कि अमेरिका जैसा आर्थिक महाशक्ति कहा जाने वाला देश भी भारी कर्ज के बोझ से दबा हुआ है। पांच वर्ष पहले वह भी अभूतपूर्व मंदी के दौर में फंस गया था। फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने, जिनका मुख्य नारा और लक्ष्य ‘विकास’ है, कभी यह नहीं कहा कि कर्ज तले दबा राज्य विकास के लिए कर्ज न ले या वैसी स्थिति होने पर आगे बढ़ने के लिए कोई मार्ग न खोजे। जबकि राजस्थान सरकार की स्थिति ऐसी नहीं है कि वह अपनी विकास परियोजनाओं के लिए कर्ज लेने से परहेज करे। उपरोक्त ऋण रोजमर्रा खर्च के लिए नहीं लिया गया था, बल्कि विकास के लिए ही व्यय हुआ है, जो हर राज्य सरकार करती है।
भारत सरकार से लेकर राज्य सरकारें तक विकास परियोजनाओं को आगे बढ़ाने के लिए अनेक रियायतें देकर विनिवेश आकर्षित करने के मकसद से देश-विदेश के निवेशकों को आमंत्रित करती हैं। हर साल केंद्र और राज्य सरकारें करोड़ों रुपए खर्च करके विनिवेशकों का सम्मेलन आयोजित करती हैं, जिनमें भारतवंशियों (एनआरआइ) के अलावा विदेशियों को भी आमंत्रित किया जाता है। सरकारों और उद्यमियों के बीच अरबों रुपए के व्यावसायिक समझौते होते हैं। यह अलग बात है कि उनमें से कितने फलीभूत होते हैं और कितने सिरे नहीं चढ़ पाते। उन समझौतों के तहत शुरू हुए कारोबार की सफलता का प्रतिशत निकालें तो निराशा ही हाथ लगेगी। फिर भी ये आयोजन सफल व्यापार, आयात-निर्यात और संबंधों को सुदृढ़ करने के लिए किए जाते हैं, प्रतिवर्ष किए जाएंगे और किए जाते रहने चाहिए।
यहां ध्यान देने की बात है कि राजस्थान में रिफाइनरी लगाने संबंधी समझौता किसी निजी कंपनी के साथ नहीं, बल्कि सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी और राज्य सरकार के बीच हुआ है और तथाकथित ‘बुरे सौदे’ में ब्याज मुक्त ऋण के अलावा किसी प्रकार की रियायत नहीं दी गई है। यह ऋण भी इक्विटी शेयर में बदलता जाएगा।
आज भी वहां से जो कच्चा तेल निकाला जा रहा है, उससे राज्य सरकार को प्रतिवर्ष लगभग छह हजार करोड़ रुपए का राजस्व प्राप्त होता है। यह आने वाले वर्षों में बढ़ता ही जाएगा। किसी भी प्रकार से यह घाटे का सौदा नहीं है, बल्कि राज्य सरकार और राजस्थान की जनता का इसमें लाभ ही है।
पहले ही इस परियोजना में लगभग दस वर्ष का विलंब हो चुका है। अगर यह निर्णय वसुंधरा राजे की पिछली सरकार के समय हो गया होता, तो राजस्थान राज्य पता नहीं कितना आगे निकल गया होता। मगर इस दिशा में सोचने के बजाय अब रिफाइनरी लगाने संबंधी समझौते को बुरा सौदा कह कर पूरी परियोजना को और पीछे धकेलने की कोशिश की जा रही है। यह सब सुविचारित और सुनियोजित ढंग से किया जा रहा है, राजनीतिक ईर्ष्यावश या अनजाने में किया जा रहा है, कहना मुश्किल है।
राजस्थान देश का पहला राज्य है, जहां तेल उत्पादक की रिफाइनरी कंपनी के साथ हिस्सेदारी की गई है। इससे राज्य को केवल रॉयल्टी नहीं मिलेगी, बल्कि रिफाइनरी की कमाई में भी हिस्सा मिलेगा। हमारे संविधान के अनुसार खनिज संपदा केंद्र के अधीन है। उसके उत्पादन से राज्य को रॉयल्टी ही मिलती है।
वसुंधरा राजे तर्क देती हैं कि जब भूमि, तेल और पानी हमारा है, तो हम पूंजी क्यों लगाएं? जबकि प्रस्तावित रिफाइनरी से लाभ में हिस्से के अलावा तेल की बिक्री से वैट आदि का राजस्व प्राप्त होगा। रोजगार के नए अवसर मिलेंगे, कर राजस्व और विकास के अन्य मार्ग खुलेंगे। नई बस्तियां बसेंगी। मरुभूमि अकल्पित दामों में बिकेगी। सड़क यातायात बढ़ेगा। नए उद्योग स्थापित होंगे। व्यापार बढ़ेगा। मरुभूमि सरसब्ज हो जाएगी।
उपरोक्त समझौते के अनुसार यह रिफाइनरी नब्बे लाख मीट्रिक टन तेल का उत्पादन किए बिना वित्तीय रूप से आत्मनिर्भर नहीं हो सकती है। ख्याति प्राप्त अंतरराष्ट्रीय कंसल्टेंट के अध्ययन के अनुसार ‘राजस्थान में उपलब्ध और आयातित कच्चे तेल पर आधारित रिफाइनरी को वित्तीय आधार पर आत्मनिर्भर बनाने के लिए राज्य सरकार का सहयोग आवश्यक होगा।’
भारत सरकार और संबंधित दोनों हिस्सेदारों के गहन विचार-विमर्श के बाद यह निर्णय हुआ था कि एचपीसीएल की हिस्सेदारी चौहत्तर प्रतिशत और राजस्थान सरकार की छब्बीस प्रतिशत तक रहेगी। रिफाइनरी के लिए दोनों हिस्सेदारों ने एक नई कंपनी जेवीको बनाई, जिसे राज्य सरकार पानी और बिजली के लिए लिग्राइट उपलब्ध कराएगी और ढांचा खड़ा करने में मदद करेगी। तीन हजार पांच सौ पचास एकड़ भूमि उपलब्ध कराएगी और उसके मुआवजे के रूप में दो सौ करोड़ रुपए तक भुगतान किए जाएंगे, जो राजस्थान सरकार की इक्विटी में समाहित हो जाएंगे। राजस्थान की पूंजी पर निगाह रखने के लिए राज्य सरकार कंपनी में अपना एक निदेशक नियुक्त करेगी। यही नहीं, परियोजना की संपूर्णता और परिचालन पर राज्य सरकार का सहयोग रहेगा, जिससे यह सफलतापूर्वक चलती रहेगी, यानी राजस्थान राज्य के हितों पर पूर्ण नियंत्रण रहेगा।
राजस्थान सरकार की हिस्सेदारी का संपूर्ण धन एक साथ नहीं दिया जाएगा और ब्याज रहित रियायत के अलावा किसी भी प्रकार की अन्य रियायत नहीं दी जाएगी। पंद्रह वर्ष तक हर साल प्रोत्साहन राशि के रूप में तीन हजार सात सौ छत्तीस करोड़ रुपए राज्य के लिए साढ़े चालीस लाख मीट्रिक टन कच्चे तेल और इतना ही अन्य स्थानों से उपलब्ध कराने की शर्त पर दिए जाएंगे। यह राशि राजस्थान सरकार के हिस्से के रूप में जमा होगी। इन पंद्रह वर्षों में रिफाइनरी में उत्पादन और वाणिज्यिक संचालन के दौरान अगर राजस्थान का कच्चा तेल साढ़े चालीस लाख मीट्रिक टन प्रतिवर्ष से अधिक हो जाएगा, तो यह राशि कम हो जाएगी। इसकी संभावना अधिक है, क्योंकि राजस्थान में तेल का उत्पादन बढ़ता ही जा रहा है। बिजली के लिए राजस्थान में उपलब्ध लिग्राइट की खानें बाजार दर पर कंपनी को दी जाएंगी।
समझौते के अंतर्गत यह स्पष्टीकरण बहुत महत्त्वपूर्ण है कि राजस्थान की इक्विटी परियोजना की वास्तविक कीमत और धन की आवश्यकता पर निर्भर करेगी। प्रतिवर्ष तीन हजार सात सौ छत्तीस करोड़ रुपए पंद्रह वर्षों तक दिए जाने की शर्त रिफाइनरी में वाणिज्यिक उत्पादन शुरू होने के बाद आवश्यक कच्चा तेल उपलब्ध कराने पर निर्भर करेगी। रिफाइनरी में वाणिज्यिक उत्पादन शुरू होने के सोलहवें वर्ष से कंपनी द्वारा ब्याज रहित धन का राज्य सरकार को पुनर्भुगतान शुरू हो जाएगा।
इस प्रकार समझौते की संपूर्ण शर्तों का अध्ययन करने पर यह पक्का भरोसा हो जाता है कि रिफाइनरी लगवाने में राजस्थान को किसी प्रकार की हानि नहीं होगी। जनता में भ्रम पैदा करने के लिए दी जाने वाली यह दलील कि हमारी भूमि, तेल, पानी, बिजली और पूंजी से स्थापित की जाने वाली रिफाइनरी राजस्थान के हित में कैसे होगी, पूरी तरह निराधार है। दरअसल, रिफाइनरी लगने से न केवल राज्य सरकार, बल्कि पूरे राजस्थान के लोगों को लाभ होगा।
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