ब्रह्मदीप अलूने

भारत और ब्रिटेन के बीच मुक्त व्यापार समझौते से आयात और निर्यात प्रवाह में वृद्धि, निवेश प्रवाह में वृद्धि, संसाधनों के अधिक कुशल आबंटन से उत्पादकता में वृद्धि और अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा के लिए अधिक खुलेपन से आर्थिक विकास एवं समृद्धि में वृद्धि होने की उम्मीद है। इस समझौते से 2035 तक दोनों देशों के बीच सालाना कारोबार अट्ठाईस अरब पाउंड तक बढ़ जाएगा।

उदारवादी पूंजीवादी देश ब्रिटेन की भारत के साथ सहयोग को उच्च स्तर पर ले जाने और उसका पसंदीदा भागीदार बनने की कोशिशें अब साकार हो सकती हैं। हाल में समूह बीस (जी-20) की शिखर बैठक के दौरान ब्रिटिश प्रधानमंत्री ऋषि सुनक और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मुलाकात के बाद इस बात की संभावनाएं बढ़ गई हैं कि निकट भविष्य में दोनों देशों के बीच मुक्त व्यापार समझौता अस्तित्व में आ जाएगा।

दरअसल, बाली में जी-20 सम्मेलन के दौरान ऋषि सुनक ने तीन हजार भारतीयों को वीजा देने की घोषणा कर अपने सकारात्मक इरादे जाहिर कर यह संदेश देने की कोशिश की कि उनकी अर्थव्यवस्था को ब्रेक्जिट के बाद मिले झटकों से उबारने के लिए भारत एक महत्त्वपूर्ण सहयोगी बनने जा रहा है। यूरोप से दूर अपने आर्थिक भविष्य को तलाशने की ब्रिटिश कोशिशों को 2010 में ही साफ करते हुए ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री डेविड केमरून ने कहा था कि भारत और ब्रिटेन के संबंध पसंदीदा भागीदारी वाले होने चाहिए।

इसके पहले 2005 में दोनों के बीच निवेश को बढ़ावा देने के लिए संयुक्त आर्थिक और व्यापारिक फोरम की स्थापना हो चुकी थी। लेकिन वीजा नियमों, भारतीय समुदाय पर होने वाले नस्लीय हमलों और कश्मीर जैसे मुद्दों को लेकर ब्रिटेन की राजनीतिक नीतियों में दोहरापन समस्याओं को बढ़ाता रहा। भारत के आंतरिक मामलों पर भी लेबर पार्टी का दृष्टिकोण नकारात्मक ही रहा। इन सबके साथ पिछले कुछ वर्षों में ब्रिटिश राजनीतिक घटनाक्रम और अस्थिरता भी दोनों देशों के बीच रिश्तों में गर्माहट न आने का एक प्रमुख कारण रही।

पर अब परिस्थितियां बदली हैं। भारत और ब्रिटेन के रिश्ते पहले से अधिक मजबूत और प्रभावी बनने की ओर अग्रसर होते दिखाई दे रहे हैं। ब्रिटेन सहित यूरोपीय देशों की अर्थव्यवस्थाएं जहां सिकुड़ रही हैं, वहीं भारत की अर्थव्यवस्था लगातार बढ़ रही है। तमाम चुनौतियों के बावजूद भारत ने अपनी विकास दर की रफ्तार को बनाए रखा है। इस समय ब्रिटिश अर्थव्यवस्था अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। अमेरिकी डालर के मुकाबले ब्रिटिश पाउंड की कीमत निचले स्तर पर है। सरकार की नई कर नीतियों से ब्रिटेन पर कर्ज बढ़ता जा रहा है, जो पहले ही बहुत है। महंगाई से आम लोगों की मुश्किलें बढ़ती जा ही हैं। लोगों की आमदनी भी घटती जा रही है। बेरोजगारी चरम पर है ही। यूरोपीय संघ में साझा हितों के चलते ब्रिटेन के नागरिक इस तरह की मंदी का शिकार पहले कभी नहीं हुए थे।

ब्रिटेन यूरोपीय संघ (ईयू) से बाहर निकलने वाला पहला देश बना और 31 जनवरी 2020 को ब्रिटेन आधिकारिक तौर पर ईयू से अलग हो गया था। ईयू से अलग होने से हुए आर्थिक नुकसान की भरपाई के लिए ब्रिटेन भारत की ओर देख रहा है जो दुनिया का सबसे बड़ा बाजार है और जहां निवेश की अपार संभावनाएं हैं। गौरतलब है कि भारत और ब्रिटेन के बीच रिश्ते तीन सौ साल से ज्यादा पुराने हैं। दोनों देशों के आपसी संबंधों को मजबूत रखने में ब्रिटेन में रहने वाले प्रवासी भारतीयों की अहम भूमिका है। ये प्रवासी भारतीय ब्रिटेन और भारत के बीच एक पुल का काम कर रहे हैं।

दूसरी ओर ब्रिटेन में भारत की भूमिका भी बेहद महत्त्वपूर्ण रही है। ब्रिटेन में विभिन्न स्तरों पर नई परियोजनाएं शुरू करने के मामले में भारत अग्रणी देशों में शुमार है। ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था में भारत की कंपनियों की अहम भूमिका है। भारतीयों की आठ सौ से ज्Þयादा कंपनियों ने ब्रिटेन में एक लाख से ज्यादा लोगों को रोजगार दिया है। भारत के हजारों छात्र ब्रिटेन में पढ़ रहे हैं। ब्रिटेन के लिए शिक्षा आय बढ़ाने का बड़ा जरिया है, लेकिन उसकी सख्त वीजा नीतियों से परेशान भारतीय छात्र अब अमेरिका, आस्ट्रेलिया और जर्मनी में पढ़ाई या नौकरी के लिए जा रहे हैं।

भारत और ब्रिटेन के लिए द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने के लिए ‘रोडमैप 2030’ को लागू करने का एक अवसर है। भारत और ब्रिटेन के बीच मुक्त व्यापार समझौते से आयात और निर्यात प्रवाह में वृद्धि, निवेश प्रवाह में वृद्धि, संसाधनों के अधिक कुशल आवंटन से उत्पादकता में वृद्धि और अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा के लिए अधिक खुलेपन से आर्थिक विकास एवं समृद्धि में वृद्धि होने की उम्मीद है। इस समझौते से 2035 तक दोनों देशों के बीच सालाना कारोबार अट्ठाईस अरब पाउंड तक बढ़ जाएगा। भारत के साथ कारोबारी समझौता करना ब्रिटेन सरकार की सबसे महत्त्वाकांक्षी नीतियों में से एक है।

पिछले दो दशकों में ब्रिटेन और चीन के संबंध काफी मजबूत रहे। इनमें से पहले दशक को वर्ष 2015 में चीन के साथ संबंधों का स्वर्णिम दशक घोषित किया गया था। लेकिन इस समय चीन और ब्रिटेन के रिश्तों में खटास देखने को मिल रही है। खासकर ताइवान और वीगर मुसलमानों पर ब्रिटेन का रुख चीन विरोधी रहा है। पिछले वर्ष चीन ने सात ब्रिटिश सांसदों पर यात्रा प्रतिबंध लगा दिए थे और उनकी संपत्ति जब्त कर ली थी। चीन का कहना था कि ये सांसद वीगर मुसलमानों के साथ बर्ताव को लेकर झूठ और दुष्प्रचार फैला रहे थे।

बाद में ब्रिटेन में चीनी राजदूत को ब्रिटिश संसद में एक कार्यक्रम में बोलने से रोक दिया गया था। इस कार्यक्रम की मेजबानी में ब्रिटेन के कई दलों के सांसद शामिल थे। जाहिर है, चीन से नाराज ब्रिटेन के भारत से रक्षा संबंध भी मजबूत हो सकते हैं। भारत हिंद-प्रशांत क्षेत्र में बाजार हिस्सेदारी और रक्षा दोनों ही क्षेत्रों में ब्रिटेन के लिए एक प्रमुख रणनीतिक भागीदार है। हिंद प्रशांत में ब्रिटेन एक क्षेत्रीय शक्ति है और उसके पास ओमान, सिंगापुर, बहरीन, केन्या और ब्रिटिश हिंद महासागर क्षेत्र में नौसैनिक सुविधाएं हैं। चीन की समुद्र में आक्रामक नीति से निपटने के लिए भारत और ब्रिटेन के बीच रणनीतिक सहयोग देश की सामरिक सुरक्षा के लिए महत्त्वपूर्ण हो सकता है।

रक्षा क्षेत्र में भारत के आत्मनिर्भरता अभियान में भी ब्रिटेन से तालमेल उपयोगी हो सकता है। भारत को चाहिए कि ब्रिटेन से वह जैव प्रौद्योगिकी में नई खोजों के क्षेत्र में सहयोग के करार करे। इस क्षेत्र में ब्रिटेन काफी आगे है। भारत के सामने चुनौती है कि ब्रिटेन जैसे देशों को अंतरराष्ट्रीय मामलों में अपनी नीति के निकट लाए। भारत चाहता है कि ब्रिटेन संयुक्त राष्ट्र और दूसरे बहुराष्ट्रीय संस्थानों में भारत का साथ दे। यहीं नहीं, भारतीयों के लिए वीजा सुविधाएं आसान करने की भी अपेक्षा भारत करता रहा है।

भारत के व्यवसायी ब्रिटेन में रह कर ही यूरोप में कारोबार करते है। भारत चाहता है कि भारतीयों के पास ब्रिटेन में काम करने और वहां रहने के अधिक से अधिक अवसर हों। ब्रिटेन के साथ किसी भी तरह के कारोबारी समझौते में भारत की प्राथमिकता भारतीय छात्रों और पेशेवरों के लिए वीजा नियमों में राहत हासिल करना रही है।

ब्रिटेन से मजबूत रिश्तों का लाभ भारत को कई स्तरों पर मिल सकता है। मुक्त व्यापार समझौते से दोनों देशों के बीच वस्तुओं और सेवाओं के आयात और निर्यात में रुकावटों को कम किया जा सकेगा। इस समझौते के तहत वस्तुओं और सेवाओं को अंतरराष्ट्रीय सीमाओं के पार खरीदा और बेचा जा सकता है, जिसके लिए बहुत कम सरकारी शुल्क, कोटा और सरकारी अनुदान जैसे प्रावधान किए जाते हैं। लेकिन ब्रिटेन की राजनीतिक अस्थिरता कब करवट ले ले, यह कहा नहीं जा सकता। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि ब्रिटेन की मुक्त व्यापार समझौते की उच्च आकांक्षा और भारत में संरक्षणवादी बाजार व्यवस्था के भ्रम के बीच दोनों देश कैसे पसंदीदा भागीदार के रूप में आगे बढ़ेंगे।