जयंतीलाल भंडारी

भारत में खाद्य तेल की खपत दो सौ पच्चीस लाख टन सालाना की है और इसमें अस्सी लाख टन पाम आयल भी शामिल है। पाम आयल का इस्तेमाल खाने से लेकर साबुन, बिस्कुट, टूथपेस्ट, शैंपू जैसी रोजमर्रा के इस्तेमाल वाली वस्तुओं के उत्पादन में किया जाता है। ऐसे में पाम आयल के गहराते संकट की वजह से खाद्य तेलों के अलावा दूसरी वस्तुएं भी महंगी हो रही हैं।

पिछले हफ्ते दिल्ली में आयोजित रायसीना संवाद में विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा कि रूस-यूक्रेन युद्ध और आपूर्ति शृंखला में बाधा की वजह से दुनियाभर में खाद्यान्न की कमी होने लगी है और महंगाई तेजी से बढ़ती जा रही है। सरकार से लेकर अर्थशास्त्री तक इस हालात को लेकर चिंतित नजर आ रहे हैं। भारत में भी आम आदमी कीमतों में बढ़ोतरी से जूझ रहा है, लेकिन खाद्यान्न अनुकूलता के कारण अभी यहां वैसे हालात पैदा नहीं हुए हैं, जैसे दुनिया के और मुल्कों में देखने को मिल रहे हैं। इस समय भारत अपने खाद्यान्न भंडारों के कारण दुनिया को खाद्य संकट से उबारने में मदद भी कर पाने की स्थिति में है।

गौरतलब है कि अमेरिका, ब्रिटेन, तुर्की, पाकिस्तान सहित अधिकांश देशों में जहां महंगाई भारत की तुलना में काफी अधिक है, वहीं जर्मनी, इटली, स्पेन सहित कई यूरोपीय देशों में खाद्य तेलों और आटे का स्टाक खत्म होने की खबरें भी आ रही हैं। महामारी संकट तथा महंगाई और बढ़ने की आशंका को देखते हुए लोग घरों में सामान जमा कर रहे हैं। इस कारण कई यूरोपीय देशों को तो सीमित मात्रा में सामान बेचने का नियम लागू करने को बाध्य होना पड़ा है, ताकि जमाखोरी न बढ़े। इतना ही नहीं कई यूरोपीय देशों में उद्योग-कारोबार में गिरावट के कारण कर्मचारियों की छंटनी का सिलसिला भी जारी है। वैसे भी बेरोजगारी दुनिया की बड़ी और गंभीर समस्या बन गई है।

उल्लेखनीय है कि भारत में खाद्यान्न अनुकूलता के बावजूद महंगाई बढ़ने के चार परिदृश्य सामने हैं। एक, थोक और खुदरा महंगाई दर बढ़ रही है। दो, पेट्रोल और डीजल की कीमतों में वृद्धि रोजमर्रा के खर्च को प्रभावित कर रही है। तीन, चीन सहित कई देशों से आयातित वस्तुएं महंगी हो गई हैं और इंडोनेशिया ने पाम आइल का निर्यात रोकने का फैसला किया है। चार, ब्याज दरों में वृद्धि से कर्ज महंगा होने से महंगाई बढ़ रही है।

गौरतलब है कि 18 अप्रैल को आए आंकड़ों के अनुसार मार्च में थोक महंगाई दर बढ़ कर 14.55 फीसद पर पहुंच गई। यह बीते चार माह में सबसे ज्यादा रही। यह लगातार बारहवां महीना रहा, जब थोक महंगाई दर दस फीसद से ऊपर रही। इसी तरह खुदरा महंगाई भी इस साल मार्च में 6.95 फीसद पर पहुंच गई, जो पिछले सत्रह महीनों में सबसे ज्यादा रही। यह लगातार तीसरा महीना है जब खुदरा महंगाई भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) के दो से छह फीसद से दायरे से बाहर बनी हुई है।

यह बात भी महत्त्वपूर्ण है कि रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध की वजह से कच्चे तेल के बढ़ते दाम और वस्तुओं की आपूर्ति बाधित होने से वैश्विक जिंस बाजार में भी भारी तेजी बनी हुई है। शंघाई सहित चीन के कई औद्योगिक शहरों में कोरोना फिर से फैलने की वजह से पूर्णबंदी जैसे कदम उठाए जा रहे हैं। इस कारण उत्पादन में कमी होने से चीन से आयातित कच्चा माल काफी महंगा हो गया है।

इसका असर भारत के उद्योगों पर पड़ रहा है। रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से सूरजमुखी के तेल का आयात पहले से प्रभावित है। इंडोनेशिया ने पिछले हफ्ते से पाम आयल का निर्यात बंद कर दिया है। भारत में खाद्य तेल की खपत दो सौ पच्चीस लाख टन सालाना की है और इसमें अस्सी लाख टन पाम आयल भी शामिल है। भारत में पाम आयल का इस्तेमाल खाने से लेकर साबुन, बिस्कुट, टूथपेस्ट, शैंपू जैसी रोजमर्रा के इस्तेमाल वाली वस्तुओं के उत्पादन में किया जाता है। ऐसे में पाम आयल के गहराते संकट की वजह से खाद्य तेलों के अलावा दूसरी वस्तुएं भी महंगी हो रही हैं। इससे अप्रैल की खुदरा महंगाई दर पर असर पड़ेगा।

सरकार के साथ रिजर्व बैंक भी बढ़ती महंगाई के दुष्प्रभावों से अनजान नहीं है। इस समय रिजर्व बैंक की प्राथमिकता महंगाई को काबू करना है। इसी को ध्यान में रखते हुए रिजर्व बैंक के कहने पर देश के विभिन्न व्यावसायिक बैंकों ने कर्ज दर (एमसीएलआर) में इजाफा किया है। इससे कर्ज महंगे हो गए हैं। कर्जदारों, कारोबारियों और उद्योगपतियों को कर्ज पर ज्यादा किस्त और ब्याज चुकाना होगा। कर्ज दर बढ़ने से महंगाई के दौर में लोगों की मुश्किलें और बढ़ेंगी। एमसीएलआर बैंकों की ऐसी मानक ब्याज दर होती है, जिस पर बैंक ग्राहकों को कर्ज देते हैं।

हालांकि कर्ज का महंगा होना महंगाई नियंत्रण की दिशा में एक प्रभावी कदम है, लेकिन इससे आर्थिक गतिविधियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की आशंका रहती है। वस्तुत: महंगी दर पर कर्ज लेने से आम आदमी, उद्यमी व कारोबारी पीछे हटेंगे। इससे बाजार में विभिन्न उत्पादों की मांग और आपूर्ति में कमी आएगी। स्थिति यह भी है कि इस साल मार्च से बढ़ी महंगाई के बाद जहां आम आदमी के जीवन पर महंगाई का असर पड़ा है, वहीं कर्ज के भुगतान पर भी इसका प्रभाव दिखने लगा है। कर्ज नहीं चुका पाने वालों की संख्या बढ़ रही है। जबकि पिछले साल नवंबर में आर्थिक गतिविधियों में तेजी को देखते हुए कर्जदारों की भुगतान क्षमता सुधार दिखा था। लेकिन मार्च में खाद्य वस्तुओं और तेल की बढ़ती कीमतों से आर्थिक हालात फिर से बिगड़ने लगे।

इस समय दूसरे देशों की तुलना में भारत में महंगाई का असर कम है। भारत में महंगाई को तेजी से बढ़ने से रोकने में कुछ अनुकूलताएं स्पष्ट दिखाई दे रही हैं। देश में अच्छी कृषि पैदावार खाद्य पदार्थों की कीमतों के नियंत्रण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। इसके अलावा देश में न केवल सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के लिए आवश्यकता से अधिक चावल और गेहूं का सुरक्षित केंद्रीय भंडार भरपूर है, बल्कि देश गेहूं और चावल का निर्यात भी कर रहा है। यह बात भी महत्त्वपूर्ण है कि देश में महंगाई को काबू करने में सार्वजनिक वितरण प्रणाली की उपयोगिता दिखाई दे रही है।

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत सार्वजनिक राशन प्रणाली के तहत करीब अस्सी करोड़ लाभार्थियों में से जनवरी 2022 तक सतहत्तर करोड़ से अधिक लाभार्थी डिजिटल रूप से सभी राशन दुकानों से जुड़ गए। सरकार ने तिलहन और खाद्य तेलों पर भंडारण सील की अवधि छह महीने बढ़ा कर 31 दिसंबर 2022 तक कर दी है। भंडारण सीमा के तहत खुदरा विक्रेता तीन टन तक और थोक व्यापारी पचास टन तक खाद्य तेल का भंडारण कर सकता है। इस कदम से जमाखोरी पर नियंत्रण रहेगा।

रिजर्व बैंक भी कह चुका है कि वह अब विकास दर में वृद्धि के बजाय महंगाई नियंत्रण को अधिक प्राथमिकता देगा और अपने नरम रुख को धीरे-धीरे वापस लेगा। जिस तरह पिछले वर्ष 2021 में पेट्रोल और डीजल की कीमतें सौ रुपए प्रति लीटर से अधिक होने पर केंद्र सरकार ने पेट्रोल व डीजल पर सीमा व उत्पाद शुल्क में और कई राज्यों ने वैट में कमी की थी, वैसे ही कदम अब फिर जरूरी दिखाई दे रहे हैं।

उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकार ऐसे विभिन्न रणनीतिक प्रयासों से देश के आम आदमी और अर्थव्यवस्था को महंगाई के खतरों से बचाने के लिए तेजी से आगे बढ़ेगी। भारतीय मौसम विभाग ने इस वर्ष सामान्य मानसून रहने का जो पूर्वानुमान किया है, वह सटीक रहेगा और सामान्य मानसून से भी महंगाई नियंत्रित होगी।