भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने एक कार्यक्रम में कहा कि वीर सावरकर ने महात्मा गांधी के कहने पर अंग्रेजों के सामने दया याचिका लगाई थी। एक खास वर्ग द्वारा सावरकर के बारे में जानबूझकर झूठ फैलाया गया और भ्रम की स्थिति पैदा की गई।
राजनाथ सिंह ने 12 अक्टूबर को दिल्ली के अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर में उदय माहुरकर और चिरायु पंडित की किताब ‘वीर सावरकर: हू कुड हैव प्रिवेंटेड पार्टिशन’ के विमोचन कार्यक्रम में संघ प्रमुख मोहन भागवत की मौजूदगी में कहा कि ‘जब तक शेर अपना इतिहास खुद नहीं लिखेंगे, तब तक शिकारियों की गाथाएं गाई जाती रहेंगी।’
राजनाथ सिंह के इस बयान पर सोशल मीडिया पर बहस छिड़ गई है। एक वर्ग गांधी का नाम सावरकर से जोड़ने को लेकर असहमति जताता दिख रहा है। वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष ने लिखा, ‘सावरकर के उत्थान के लिये गांधी का सहारा तो चाहिये ही।’ AIMIM नेता असदुद्दीन ओवैसी ने कहा, ‘ये लोग इतिहास को तोड़कर पेश कर रहे हैं। एक दिन ये लोग महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता के दर्ज़े से हटाकर सावरकर को ये दर्ज़ा दे देंगे।’
कांग्रेस नेता डॉ. रागिनी नायक ने लिखा, ‘सावरकर का शुद्धिकरण करने के लिए भी राजनाथ जी को गांधी का सहारा लेना पड़ रहा है। इनके हिसाब से गांधी के कहने पर सावरकर ने माफ़ीनामा लिखा…।’
वीर सावरकर के भाई ने मांगी थी गांधी जी से मदद: चर्चित लेखक विक्रम संपत ने अपनी किताब ‘सावरकर: एक भूले-बिसरे अतीत की गूंज’ में इस किस्से का विस्तार से जिक्र किया है। पेंग्विन से प्रकाशित किताब के पहले खंड में उन्होंने वीर सावरकर के भाई नारायण राव सावरकर के उन तमाम पत्रों का जिक्र किया है, जो उन्होंने महात्मा गांधी को लिखा था। विक्रम संपत लिखते हैं कि नारायण राव ने महात्मा गांधी को लिखे पत्रों में से 18 जनवरी 1920 के अपने पहले पत्र में शाही माफी के तहत अपने भाइयों की रिहाई सुनिश्चित कराने के संबंध में उनसे (गांधीजी) से सलाह और मदद मांगी थी।
नारायण राव ने क्या लिखा था? वीर सावरकर के भाई नारायण राव ने महात्मा गांधी को लिखा था, ‘कल (17 जनवरी) को मुझे सरकार की ओर से सूचना मिली कि रिहा किए गए लोगों में सावरकर बंधुओं का नाम नहीं है। स्पष्ट है कि सरकार उन्हें रिहा नहीं कर रही है। कृपया आप मुझे बताएं कि ऐसे मामले में क्या करना चाहिए? वे पहले ही अंडमान में 10 साल की कठोर सजा काट चुके हैं। उनका स्वास्थ्य भी गिर रहा है। आप इस मामले में क्या कर सकते हैं, उम्मीद है अवगत कराएंगे…।’
क्या था गांधी जी का जवाब?: संपत लिखते हैं कि एक सप्ताह बाद यानी 25 जनवरी 1920 को गांधी जी ने उत्तर दिया, जो उम्मीद के मुताबिक ही था। गांधी जी ने जवाब दिया था कि वे इस संबंध में बहुत कम सहयोग कर सकते हैं। उन्होंने जवाबी ख़त में जो लिखा था उसका मजमून कुछ यूं था, ‘प्रिय डॉ. सावरकर, मुझे आपका पत्र मिला। आपको सलाह देना कठिन लग रहा है, फिर भी मेरी राय है कि आप एक संक्षिप्त याचिका तैयार कराएं जिसमें मामले से जुड़े तथ्यों का जिक्र हो कि आपके भाइयों द्वारा किया गया अपराध पूरी तरह राजनीतिक था।’
गांधी जी ने इसी पत्र में आगे लिखा था, ‘जैसा कि मैंने आपसे पिछले एक पत्र में कहा था मैं इस मामले को अपने स्तर पर भी उठा रहा हूं।’ बकौल संपत, महात्मा गांधी ने 26 मई 1920 को यंग इंडिया में ‘सावरकर बंधु’ नाम से एक लेख लिखकर भी उनकी रिहाई के लिए आवाज उठाई थी।