सावरकर पर दिए गए अपने संबोधन में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने खुलकर बात की है। उन्होंने कहा कि आजादी के बाद से सावरकर को बदनाम करने की कोशिश की जा रही है और इस कड़ी में अगला नंबर विवेकानंद का है।
भागवत ने ये बातें सावरकर पर एक पुस्तक के विमोचन कार्यक्रम में कहीं। उन्होंने कहा कि आज के दौर में लोगों को सावरकर के बारे में सही जानकारी नहीं है।
उन्होंने कहा कि आज लोग सावरकर और संघ पर टिप्पणी करते हैं, अगला नंबर स्वामी दयानंद, विवेकानंद और स्वामी अरविंद का होगा।
वहीं सावरकर पर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी मंगलवार को बयान दिया। उन्होंने कहा कि वीर सावरकर ने महात्मा गांधी के सुझाव पर अंडमान जेल में कैद के दौरान अंग्रेजों के सामने दया याचिका दायर की थी, लेकिन कुछ विचारधारा का पालन करने वालों ने उनको बदनाम किया और इसे अब बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
सिंह ने यह बात अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर में सावरकर पर एक पुस्तक के विमोचन के दौरान कही। इस दौरान आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने भी सभा को संबोधित किया।
भागवत ने कहा कि अगर उस समय सबने जोर से बोला होता तो देश का विभाजन नहीं होता। लेकिन आज लोग कहते हैं कि ये वीर सावरकर का हिंदुत्व है, ये विवेकानंद का हिंदुत्व है। जबकि हिंदुत्व तो केवल एक ही है, वो पहले भी था और आखिर तक रहेगा।
उन्होंने कहा कि अशफाक उल्लाह खान ने कहा था कि मरने के बाद वह भारत में ही जन्म लेंगे। ऐसे महान लोगों की आवाज को गूंजना चाहिए।
उन्होंने कहा कि लोग मान रहे हैं कि 2014 के बाद से सावरकर का युग आ रहा है, और ये सही है। इसमें सबकी जिम्मेदारी और भागीदारी होगी। हम एक हो रहे हैं, यही हिंदुत्व है।
इस दौरान उन्होंने संसद पर भी तीखा हमला बोला। उन्होंने कहा कि संसद में मार-पीट को छोड़कर और क्या नहीं होता। सब कुछ होता है और बाहर आकर सब चाय पीते हैं और एक दूसरे के यहां शादी में जाते हैं। यहां अलगाव या विशेष अधिकार की बात मत करो क्योंकि सब एक हैं।
कौन थे सावरकर
विनायक दामोदर सावरकर का जन्म 28 मई 1883 को महाराष्ट्र के नासिक के निकट भागुर गांव में हुआ था। वह बचपन से ही पढ़ाई में काफी अच्छे थे।
वह भारत के महान क्रांतिकारी और स्वतंत्रता सेनानी थे और उन्हें इतिहास में वीर सावरकर के नाम से जाना जाता है। वह हिंदू राष्ट्रवादी थे और पेशे से एक वकील और राजनीतिज्ञ भी थे।
सावरकर को 6 बार अखिल भारतीय हिन्दू महासभा का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया था। गांधीजी के हत्या में सावरकर के सहयोगी होने का आरोप लगा था, हालांकि ये आरोप बाद में सिद्ध नहीं हो सका।