ब्रह्मदीप अलूने
जिस प्रकार अमेरिका ने रूस को घेरने के लिए नाटो का विस्तार कर रूस के पड़ोसी देशों के साथ सुरक्षा संधि की थी, उसी तर्ज पर एशिया में चीन को घेरने की नीति अपनाई जा रही है। भारत, आस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका लगातार एशिया प्रशांत के समुद्र में अपनी शक्ति बढ़ा रहे हैं। वहीं, भू-राजनीतिक स्तर पर भी ऐसी कार्ययोजनाओं को आगे बढ़ाया जा रहा है।
शक्ति संतुलन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। इसमें यह प्राथमिकता से सुनिश्चित किया जाता है कि कोई भी शक्ति इतनी प्रबल न हो जाए कि उससे दूसरे राष्ट्रों के हितों की रक्षा न की जा सके। चीन अफ्रीका, मध्य-पूर्व, मध्य एशिया और यूरोप के सारे आर्थिक मार्गों को अपने नियंत्रण में करने की कोशिश कर रहा है।
दुनिया के अन्य क्षेत्रों के साथ ही खासकर मध्य-पूर्व में चीन के बढ़ते प्रभुत्व को नियंत्रित और संतुलित करने के लिए भारत, अमेरिका और संयुक्त अरब अमीरात के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार सऊदी अरब में मिले हैं। ये तीनों देश इजराइल के समर्थन से ‘कनेक्टिविटी कारिडोर’ के निर्माण की वृहत योजना को साकार करने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं, जो भारत से अरब की खाड़ी से गुजरता हुआ इजरायल, जार्डन तक और फिर वहां से यूरोपीय संघ तक विस्तृत होगा।
‘कनेक्टिविटी कारिडोर’ का विचार अमेरिका, इजराइल, भारत और यूएई ने दो वर्ष पहले ही कर लिया था, लेकिन हाल ही में चीन ने सऊदी अरब और ईरान के राजनयिक संबंध बहाल करवाने में जो सफलता अर्जित की है, उससे अमेरिका, इजराइल और भारत चकित हैं और इसे बड़ी चुनौती के रूप में देख रहे हैं।
चीन आर्थिक गलियारे के तहत कई देशों में करोड़ों डालर का निवेश कर चुका है। चीन और खाड़ी देशों के बीच मुक्त व्यापार को लेकर वार्ताएं करीब एक दशक से चल रही हैं। चीन इस इलाके में शांति स्थापित करके न केवल अपने व्यापरिक साम्राज्य को सफल बना सकता है, बल्कि वह सामरिक बढ़त भी लेना चाहता है।
मध्य-पूर्व में महाशक्तियों के बहुत सारे सामरिक और आर्थिक हित मौजूद हैं। महाशक्तियों के हित और शक्ति संतुलन के बीच तेल संपदा का भी एक महत्त्वपूर्ण द्वंद्व है, जो शह और मात के खेल को पश्चिम एशिया तक खींच लाता है। इसमें शिया-सुन्नी विवाद को हवा देकर, आपसी जोर आजमाइश और प्रतिद्वंद्विता को बढ़ावा दिया गया है।
विश्व के संपूर्ण उपलब्ध तेल का लगभग छियासठ फीसद ईरान की खाड़ी के आसपास के इलाकों, जिनमें मुख्य रूप से कुवैत, ईरान और सऊदी अरब शामिल हैं, में पाया जाता है। सोवियत संघ और अमेरिका तो तेल के मामले में आत्मनिर्भर हैं, लेकिन अगर यूरोप को इस इलाके से तेल प्राप्त होना बंद हो जाए तो उसके अधिकांश उद्योग-धंधे बंद हो जाएंगे। यही कारण है कि पश्चिमी देश मध्य-पूर्व पर अपना नियंत्रण बनाए रखना चाहते हैं।
इन सबके बीच मध्य-पूर्व में कड़े प्रतिद्वंद्वियों को जोड़ने की चीन की कोशिशें न तो अमेरिका के लिए व्यक्तिगत स्तर पर फायदेमंद हैं और न ही इजराइल की सुरक्षा के लिए। चीन भारत का परंपरागत प्रतिद्वंद्वी है और मध्य-पूर्व में भारत के आर्थिक और सामरिक हित भी इससे प्रभावित हो सकते हैं।
पश्चिम एशिया में लगभग अस्सी लाख भारतीय निवास करते हैं, जिनमें से केवल संयुक्त अरब अमीरात में इनकी संख्या पच्चीस लाख है। भारत को इस भूभाग में अत्यंत सतर्कता से आगे बढ़ने की आवश्यकता है, क्योंकि ऊर्जा सुरक्षा, खाद्य सुरक्षा, श्रमिक, व्यापार, निवेश और समुद्री सुरक्षा जैसे भारत के कई मूलभूत हित इस क्षेत्र से हैं।
चीन और पाकिस्तान, ईरान और सऊदी अरब को साथ मिलाकर भारत की कूटनीतिक समस्याओं को बढ़ा सकते हैं। वहीं इजराइल के लिए परंपरागत शत्रु देशों का आपस में मिल जाना नई सामरिक चुनौती बन सकता है। यही नहीं, मध्य-पूर्व में अमेरिकी हित पूरा करने के लिए उसका सऊदी अरब और यूएई पर नियंत्रण जरूरी है।
ऐसे में ‘आइ2यू2’ समूह के भारत, अमेरिका, यूएई और इजराइल ने सामूहिक सुरक्षा की तर्ज पर चीन को नए आर्थिक गलियारे के निर्माण से चुनौती देने की योजना पर काम शुरू कर दिया है। 2021 में पहली बार इस समूह के बीच समुद्री सुरक्षा, बुनियादी ढांचे, डिजिटल ढांचे और परिवहन से जुड़े अहम मुद्दों पर चर्चा हुई थी। भारत में यूएई के राजदूत ने उस वक्त इस नए गुट को पश्चिमी एशिया का ‘क्वाड’ बताया था।
यह योजना मध्य-पूर्व और एशिया में आर्थिक और राजनीतिक सहयोग के विस्तार पर केंद्रित है, जिसके अंतर्गत व्यापार, जलवायु परिवर्तन से मुकाबला, ऊर्जा सहयोग और अन्य महत्त्वपूर्ण साझा हितों पर समन्वय करना शामिल है। इस गलियारे का निर्माण पूरा होने पर भारत के लिए कंटेनर परिवहन की लागत में उल्लेखनीय कमी आएगी।
अगर यह समूह और कार्ययोजना सफल होती है, तो पश्चिम एशिया में भारत की भू-राजनीतिक उपस्थिति को बढ़ावा मिलेगा और वैश्विक स्तर पर भारत के रणनीतिक और आर्थिक महत्त्व को बढ़ावा मिलेगा। भारत और यूएई के बीच आर्थिक संबंध पहले से ही गहरे हैं। यूएई भारत का तीसरा सबसे बड़ा व्यापार साझीदार है।
भारत की हिंद महासागर को लेकर वर्तमान नीति शक्ति संतुलन पर आधारित है। भारत 2007 में स्थापित ‘क्वाड’ का अहम सदस्य है। भारत, जापान, संयुक्त राज्य अमेरिका और आस्ट्रेलिया का यह सामरिक समूह स्वतंत्र, खुले और समृद्ध हिंद-प्रशांत क्षेत्र को सुरक्षित करने के लिए प्रतिबद्ध है। हालांकि इन चार देशों के साझा उद्देश्य को लेकर चीन के साथ रूस इसकी आलोचना करता रहा है।
अमेरिका की नजर हिंद प्रशांत क्षेत्र के रणनीतिक और आर्थिक महत्त्व पर भी है। इस क्षेत्र में चीन ने कई देशों को चुनौती देकर विवादों को बढ़ाया है। चीन ‘वन बेल्ट वन रोड’ परियोजना को साकार कर दुनिया में अपना प्रभुत्व स्थापित करना चाहता है और उसके केंद्र में हिंद प्रशांत क्षेत्र की अहम भागीदारी है।
चीन ने दक्षिण एशिया के कई देशों में बंदरगाहों का निर्माण कर भारत की सामरिक चुनौतियां बढ़ा दी हैं। अभी तक चीन पर आर्थिक निर्भरता के चलते अधिकांश देश चीन को चुनौती देने में नाकामयाब रहे हैं। अब क्वाड के बाद ‘आइ2यू2’ फोरम के साथ आने से चीन का मुकाबला करने में अन्य देशों का साथ मिलने की संभावनाएं बढ़ेगी।
गौरतलब है कि अमेरिकी विदेश नीति में एशिया प्रशांत क्षेत्र को बेहद महत्त्वपूर्ण माना गया है। चीन के उभार को रोकने के लिए कूटनीति और सामरिक रूप से अमेरिका एशिया के कई इलाकों में अपनी सैन्य क्षमता को बढ़ा रहा है। बराक ओबामा ने एशिया में अपने विश्वसनीय सहयोगी देशों के साथ उन देशों को भी जोड़ने की नीति पर काम किया, जो चीन की विस्तारवादी नीति और अवैधानिक दावों से परेशान हैं। इनमें से कुछ देश दक्षिण चीन सागर पर चीन के अवैध दावों को चुनौती देना चाहते हैं और कुछ देश चीन की भौगोलिक सीमाओं के विस्तार के लिए सैन्य दबाव और अतिक्रमण की घटनाओं से क्षुब्ध हैं।
ओबामा के बाद बाइडेन प्रशासन भी सामूहिक सुरक्षा को बढ़ावा देने की नीति पर काम करके अपने सहयोगियों को जोड़ रहा है। इसमें आस्ट्रेलिया, यूके और यूएस के समूह ‘आकस’ तथा ‘इंडो-पैसिफिक इकोनामिक फ्रेमवर्क’ यानी ‘आइपीईएफ’ शामिल हैं। इस समूह में भारत सहित तेरह देश भागीदारी कर रहे हैं। जाहिर है, जिस प्रकार अमेरिका ने रूस को घेरने के लिए नाटो का विस्तार कर रूस के पड़ोसी देशों के साथ सुरक्षा संधि की थी, उसी तर्ज पर एशिया में चीन को घेरने की नीति अपनाई जा रही है।
भारत, आस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका लगातार एशिया प्रशांत के समुद्र में अपनी शक्ति बढ़ा रहे हैं, वहीं भू-राजनीतिक स्तर पर भी ऐसी कार्ययोजनाओं को आगे बढ़ाया जा रहा है। चीन की साम्राज्यवादी और आक्रामक आर्थिक नीतियों के कुचक्र से दुनिया को बचाने के लिए क्षेत्रीय स्तर पर मजबूत गठजोड़ बनाया जाना चाहिए, यह भारत और वैश्विक सुरक्षा के लिए बेहद जरूरी है।