महिलाओं की शिक्षा परिवार से लेकर राष्ट्र तक के विकास में अहम भूमिका निभाती है। हालांकि शिक्षा के पैमाने पर महिलाओं की स्थिति में उत्तरोत्तर प्रगति हुई है, लेकिन आज के बदलते शैक्षिक एवं तकनीकी परिदृश्य के मद्देनजर महिला शिक्षा में व्यापक विकास एवं उन्नयन की महती आवश्यकता है। यहां पर हाल ही की एक रपट का उल्लेख करना जरूरी होगा, जिसमें यह निष्कर्ष निकाला गया है कि पूरे विश्व में लगभग 1.5 करोड़ लड़कियों को प्राथमिक शिक्षा से वंचित होना पड़ रहा है। यह रपट महिलाओं के सशक्तीकरण के लिए काम करने वाली संस्था ‘संयुक्त राष्ट्र महिला’ की ओर से जारी की गई है। इसमें कहा गया है कि हाल के दशकों में प्राथमिक एवं माध्यमिक विद्यालयों में लैंगिक समानता को लेकर काफी कुछ सुधार देखने को मिले हैं, मगर बहुत सारे ऐसे क्षेत्र हैं, जिनमें लैंगिक असमानता अभी भी गहरी पैठ बनाए हुए है।
अगर विद्यालयों में नामांकन की बात की जाए तो प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा के स्तर पर महिलाओं की स्थिति में काफी हद तक सुधार हुआ है। वहीं एक कड़वा सच यह भी है कि नामांकन कराने के बाद शिक्षा को बीच में ही छोड़ देने वालों में भी महिलाओं की संख्या पुरुषों की अपेक्षा कई गुना अधिक है। कई स्थानों पर तो 48.1 फीसद लड़कियां स्कूल जाने से वंचित हैं। अब अगर उच्च शिक्षा के परिदृश्य पर नजर डाली जाए, तो भी आंकड़े बहुत संतोषजनक नहीं है। यूनेस्को के वैश्विक शिक्षा निगरानी दल की ओर से किए गए खुलासे के अनुसार, विज्ञान, प्रौद्योगिकी इंजीनियरिंग एवं गणित जैसे क्षेत्रों में वैश्विक स्तर पर महिलाओं की हिस्सेदारी केवल 35 फीसद है। खास बात यह है कि पिछले दस वर्षों से यह आंकड़ा जस का तस बना हुआ है।
आज तकनीकी एवं डिजिटल क्रांति का युग है। डिजिटल क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तनों की वजह से आज शैक्षिक परिदृश्य भी हर स्तर पर परिवर्तित हो चुका है। लिहाजा, अब केवल शिक्षित होना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि तकनीकी रूप से दक्ष होकर एवं कौशल विकास के पैमाने पर लगातार प्रगति करके ही खुद को इस बदलते परिदृश्य के साथ जोड़े रखा जा सकता है। आज कृत्रिम बुद्धिमत्ता जैसी तकनीक के नवीनतम उत्पाद दिन-प्रतिदिन उत्कृष्ट रूप ग्रहण करते जा रहे हैं। विशेष बात यह है कि शिक्षा के क्षेत्र में भी कृत्रिम बुद्धिमत्ता का प्रभाव एक हद तक परिलक्षित होने लगा है। हाल की एक रपट के मुताबिक, वर्ष 2018 से 2023 के बीच डेटा एवं कृत्रिम बुद्धिमत्ता के क्षेत्र में महिलाओं की हिस्सेदारी केवल 26 फीसद रही है।
संयुक्त राष्ट्र की महिला केंद्रित इकाई की रपट में बताया गया है कि महिलाओं को प्राथमिक शिक्षा उचित रूप से उपलब्ध नहीं होने के पीछे एक बड़ा कारण सामाजिक व्यवस्थाएं भी हैं। गौरतलब है कि हमारे सामाजिक परिदृश्य में लैंगिक असमानता एवं भेदभाव से परिपूर्ण सोच आज भी गहरे तक समाई हुई है। इसी सोच का दुष्परिणाम है कि लड़कियों के लिए शिक्षा तक पहुंच पाना एक बड़ी चुनौती है। बड़ी संख्या में लड़कियां शिक्षा के लिए विद्यालयों में नामांकन तो कर लेती हैं, मगर बीच में ही उन्हें मजबूरन पढ़ाई छोड़नी पड़ती है। इसके प्रमुख कारणों में अल्प आयु में ही विवाह हो जाना और घरेलू कार्यों की आवश्यकता से अधिक जिम्मेदारी लाद दिया जाना भी शामिल है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की ओर से कराए गए एक अध्ययन में यह खुलासा हुआ है की बेटियों के स्कूल छोड़ने के पीछे एक अन्य महत्त्वपूर्ण कारक साधनों की कमी है। ऐसी लड़कियों की संख्या भी कम नहीं है, जो परिवहन संबंधी साधनों एवं अन्य सुविधाओं की कमी की वजह से शिक्षा से वंचित हो जाती हैं।
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की एक रपट बताती है कि 15 से 18 वर्ष की 39.4 फीसद लड़कियां स्कूल से बाहर हैं। यही नहीं, 57 फीसद लड़कियां ग्यारहवीं कक्षा तक आते-आते पढ़ाई छोड़ देती हैं। पंद्रह वर्ष से कम आयु वाले बच्चों में 2.7 फीसद लड़कों की तुलना में 3.2 फीसद लड़कियां स्कूल नहीं जाती हैं। एक अन्य रपट के अनुसार, विश्व के 68 फीसद देशों में विज्ञान, प्रौद्योगिकी इंजीनियरिंग एवं गणित की शिक्षा को समर्थन देने वाली नीतियां मौजूद हैं, लेकिन इनमें से केवल पचास फीसद नीतियां ही महिलाओं की शिक्षा पर केंद्रित हैं। जाहिर है कि नीतिगत कमी अथवा नीतियों की विफलता भी महिला शिक्षा के अवरुद्ध होने के लिए काफी हद तक जिम्मेदार है।
इसके लिए बड़े एवं व्यापक स्तर पर प्रयासों की शृंखला को अमल में लाना होगा। इसमें पहला एवं सबसे महत्त्वपूर्ण प्रयास यह है कि व्यक्ति, समाज एवं राष्ट्र, प्रत्येक स्तर पर रूढ़िवादी सोच एवं अनावश्यक पूर्वाग्रहों से ग्रसित मानसिकता का जड़ से उन्मूलन करना होगा, क्योंकि महिलाओं की शिक्षा में सबसे बड़ा बाधक तत्त्व यही है। प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा तक प्रत्येक स्तर पर महिलाओं के दृष्टिकोण से संसाधनों की उपलब्धता को सुनिश्चित करते हुए बुनियादी ढांचे में पर्याप्त सुधार करने होंगे।
एक अन्य अहम पहलू यह भी है कि चूंकि आज आनलाइन शिक्षा एक विकसित रूप धारण कर चुकी है, इसलिए महिलाओं की डिजिटल साक्षरता पर शुरुआत से ही ध्यान दिया जाना चाहिए, ताकि वे शिक्षा के नवीनतम स्वरूप एवं परिवेश में अपने आप को ढालने में समर्थ एवं सक्षम हो सकें। एक शिक्षित एवं सफल महिला केवल एक परिवार ही नहीं, बल्कि संपूर्ण राष्ट्र के लिए आदर्श होती है। इस सोच के साथ शिक्षा की उन सभी कमियों को दूर करने के लिए युद्ध स्तर पर प्रयास किए जाने चाहिए, जो विशेष रूप से महिलाओं को प्रभावित करती हैं।
भारत के संबंध में बात की जाए, तो देश की आबादी का एक बड़ा हिस्सा ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करता है और वहां आज भी पुरुष प्रधान विचारधारा कहीं न कहीं हावी है। नतीजा यह होता है कि महिलाएं शिक्षा का विकल्प या तो चुन नहीं पातीं और यदि वे उस राह पर आगे बढ़ती भी हैं, तो बहुत आगे तक नहीं जा पातीं। इसके अलावा महिला असुरक्षा जो हमारे देश में एक बेहद ज्वलंत मुद्दा है, महिलाओं की शिक्षा में एक बहुत बड़ा रोड़ा है। असुरक्षा के भय से बहुत से अभिभावक अपनी बेटियों को शिक्षा के लिए बाहर भेजने से कतराते हैं।
हालांकि शासन के स्तर से ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ एवं अन्य महत्त्वपूर्ण योजनाएं क्रियान्वयन में लाई गई हैं, लेकिन व्यावहारिक रूप से वे सभी कितना सफल हैं, इस संबंध में कुछ कहना बहुत मुश्किल है। हम एक ओर विकसित राष्ट्र बनने का सपना एवं संकल्प लेकर आगे बढ़ रहे हैं, दूसरी ओर लैंगिक असमानता एवं महिला अशिक्षा जैसी चुनौतियां भी एक कटु वास्तविकता के रूप में हमारे समक्ष खड़ी हैं। आज आवश्यकता है जल्द से जल्द इन चुनौतियों एवं बाधाओं से निजात पाने की, क्योंकि जब तक ये मौजूद रहेंगी, तब तक विकसित राष्ट्र बनने का स्वप्न कदापि साकार नहीं हो सकता।
शिक्षा आज केवल किताबों तक सीमित नहीं रही, बल्कि यह आनलाइन संसाधनों, आभासी मंच एवं डिजिटल माध्यमों तक विस्तृत हो चुकी है। विज्ञान और तकनीकी प्रगति आज के युग की रीढ़ है। विश्व की अर्थव्यवस्था, शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक संरचना तकनीकी विकास पर आधारित हो चुकी है। भारत जैसे विकासशील देश में विज्ञान एवं तकनीक को बढ़ावा देना राष्ट्र की प्राथमिकता है। इस क्षेत्र में यदि महिलाओं की सशक्त भागीदारी सुनिश्चित हो जाए, तो देश की प्रगति को कई गुना गति मिल सकती है।
