देश के आर्थिक विकास का पैमाना कुछ इस तरह होना चाहिए, जिसमें सकल घरेलू उत्पादन में वृद्धि, आर्थिक समानता, प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि, गरीबी और भुखमरी में गिरावट, सामाजिक असमानताओं में कमी, रोजगार की उपलब्धता और प्रति व्यक्ति खुशहाली हो। एक समृद्ध लोकतंत्र में आर्थिक प्रणाली ऐसी होनी चाहिए, जहां व्यवस्था का मुख्य उद्देश्य आर्थिक वृद्धि हो और समाज के सभी वर्गों का सर्वांगीण विकास संभव हो। विकास का माडल ऐसा हो, जिसमें रोजगार के अवसर, गरीबों का उत्थान और किसानों की समृद्धि सुनिश्चित हो सके तथा महंगाई की दर कम रहे। भारत की आर्थिक विकास दर लगातार बढ़ रही है। आने वाले तीन वर्षों में देश के पांच ट्रिलियन डालर की अर्थव्यवस्था बन जाने की उम्मीद की जा रही है। कहा जा रहा है कि वर्ष 2027 तक भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश बन जाएगा।
एशियाई विकास बैंक के मुताबिक, भारत की जीडीपी चालू वित्त वर्ष में 6.5 फीसद और 2026 में 6.7 फीसद की दर से बढ़ने की संभावना है। ऐसे में तेजी से आगे बढ़ रही भारतीय अर्थव्यवस्था के प्रमुख पहलुओं पर ध्यान देना जरूरी हो जाता है। भारतीय व्यवस्था के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती महंगाई, बेरोजगारी, भुखमरी, आर्थिक असमानता, घटते संसाधन और बढ़ती जनसंख्या है। एक तरफ कहा जा रहा है कि देश का आर्थिक विकास तेजी से आगे बढ़ रहा है, दूसरी ओर बढ़ती बेरोजगारी दर चिंता का विषय बनी हुई है।
बेरोजगारी एक गंभीर मुद्दा है, जो देश के संपूर्ण विकास में बाधक है
इस वक्त बेरोजगारी एक गंभीर मुद्दा है, जो देश के संपूर्ण विकास में अवरोधक है। उसी अर्थव्यवस्था को संतुलित माना जाता है, जिसमें आर्थिक विकास के साथ-साथ रोजगार के नए अवसर भी सृजित होते हों। संगठित एवं असंगठित क्षेत्रों में रोजगार के अवसर घट रहे हैं। जुलाई 2015 से जून 2016 और अक्तूबर, 2022 से सितंबर, 2023 के दौरान विनिर्माण क्षेत्र के 18 लाख असंगठित उद्यम बंद हो गए हैं। इस कारण करीब 54 लाख लोगों की नौकरियां चली गईं।
ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में कुल कार्यबल तथा जनसंख्या के लिहाज से भारत दुनिया का सबसे बड़ा देश है। यहां युवाओं की आबादी अन्य देशों की अपेक्षा ज्यादा है। हाल में जारी सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय की रपट के मुताबिक, देश में पुरुषों में बेरोजगारी दर 5.6 फीसद, जबकि महिलाओं में 5.8 फीसद है। देश में 15-29 आयु वर्ग के युवाओं में इस वर्ष अप्रैल में बेरोजगारी 13.8 फीसद से बढ़कर मई में 15 फीसद हो गई। शहरी क्षेत्रों में बेरोजगारी दर अप्रैल में 17.2 फीसद से बढ़कर मई में 17.9 फीसद हो गई, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में यह अप्रैल के 12.3 फीसद की तुलना में मई में 13.7 फीसद थी।
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मगर हमारे यहां जनसंख्या और श्रमबल क्षमता अधिक होने के बावजूद आर्थिक असमानता भी अन्य देशों की तुलना में अधिक है। देश में बढ़ती बेरोजगारी के साथ ही आर्थिक असमानता विकास की राह बड़ी बाधक है। आक्सफैम-2024 की एक रपट में कुछ चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। इसके मुताबिक, पिछले कई वर्षों से भारत समेत विश्व में आर्थिक असमानता बढ़ रही है। यह आर्थिक तंत्र के लिए बहुत निराशाजनक और चिंताजनक बात है। आर्थिक असमानता के मामले में भारत के संदर्भ में कोई विशेष सुधार नहीं दिखाई देता है।
आंकड़ों के मुताबिक, भारत की कुल संपत्ति का चालीस फीसद हिस्सा देश के एक फीसद अमीर लोगों के पास है। वर्तमान में भारत के इक्कीस सबसे अमीर अरबपतियों के पास देश के सत्तर करोड़ लोगों से ज्यादा संपत्ति है। आधी आबादी के पास देश की कुल संपत्ति का केवल तीन फीसद है। यहां अरबपतियों की संख्या लगातार बढ़ रही है। देश में वर्ष 2020 में 102 अरबपति थे, 2022 में 166 और 2023 में यह आंकड़ा 200 के करीब पहुंच गया है। इस तरह की आर्थिक असमानता से गरीबी, बेरोजगारी एवं भुखमरी बढ़ती है और देश का सर्वांगीण विकास रुक जाता है।
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अगर भारत में बेरोजगारी के आंकड़ों पर गौर करें तो इसे दूर करने संबंधी प्रयास निराशाजनक नजर आते हैं। बेरोजगारी दर में उतार-चढ़ाव से देश के विकास पर दूरगामी प्रभाव पड़ता है। इंडिया स्किल्स रपट-2025 के अनुसार, भारत में स्रातकों के बीच रोजगार योग्यता बढ़ कर 54.81 फीसद हो गई है। वहीं, ‘नेशनल इंस्टीट्यूशनल रैंकिंग फ्रेमवर्क’ की रपट से पता चलता है कि भारत में हर वर्ष पचास लाख युवा उच्च शिक्षा की ओर रुख करते हैं, जिनकी उम्र करीब उन्नीस-बीस वर्ष होती है। ये युवा अपनी स्रातक की पढ़ाई लगभग 24 वर्ष की उम्र तक पूरी कर लेते हैं। जबकि भारत में पच्चीस वर्ष से कम उम्र के युवाओं में स्रातक स्तर पर बयालीस फीसद बेरोजगार हैं।
परास्रातक की पढ़ाई करने के बाद या जिनकी उम्र पच्चीस से उनतीस वर्ष के बीच है, उनमें बेरोजगारी 22.8 फीसद है। इसी तरह तीस से पैंतीस वर्ष उम्र के पढ़े-लिखे युवाओं में बेरोजगारी 9.8 फीसद है। इससे ऊपर की उम्र के शिक्षित लोगों में बेरोजगारी दर लगभग पांच फीसद है। देश में पिछले दस वर्षों में बेरोजगारी दर में लगातार वृद्धि देखी गई है। वर्ष 2014 में यह 5.44 फीसद और 2020 में आठ फीसद थी। वर्ष 2023 के अक्तूबर में बेरोजगारी दर 10.1 फीसद पर पहुंच गई थी।
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भारत में श्रमबल की भागीदारी लगभग 46 फीसद है। देश में बढ़ती बेरोजगारी पर नजर डालें तो इसके कई कारण स्पष्ट नजर आते हैं। इनमें जनसंख्या वृद्धि प्रमुख कारण है। कोविड महामारी से उत्पन्न आर्थिक दिक्कतें, व्यावसायिक कौशल की कमी, खराब शैक्षिक उपलब्धियां, कृषि क्षेत्र में कम उत्पादकता, विनिर्माण क्षेत्र में कम निवेश और अपर्याप्त ढांचागत विकास माध्यमिक क्षेत्र में नौकरी के अवसरों को सीमित करता है। भारत में आर्थिक विकास दर बढ़ी, उद्योगों से लाभ हुआ, संवेदी सूचकांक में उछाल भी आया, पर रोजगार के अवसरों में अपेक्षाजनक बदलाव नहीं हुआ।
सरकारी मुहिम ‘मेक इन इंडिया’ के अंतर्गत विदेशी कंपनियां भारत में अपने उत्पाद बेचने के उद्देश्य से यहां उद्योग लगा रही हैं, पर ये युवाओं को पर्याप्त रोजगार उपलब्ध कराने में सफल साबित नहीं हो पा रही हैं। भारत में रोजगार के सबसे ज्यादा अवसर लघु, सूक्ष्म एवं मध्यम दर्जे के उद्योग सृजित करते हैं।
एक अनुमान के मुताबिक, देश में लघु एवं मध्यम उद्योग कुल चालीस फीसद रोजगार उपलब्ध कराते हैं। इन क्षेत्रों को भी सरकारी नीतियों से अपेक्षाजनक प्रोत्साहन नहीं मिल पा रहा है। भारत में सबसे ज्यादा साठ फीसद श्रमशक्ति ग्रामीण क्षेत्रों में है। वर्तमान समय में देश में रोजगार की दर चालीस फीसद है। यानी यहां पर सौ लोगों में से सिर्फ चालीस लोगों के लिए काम उपलब्ध है, बाकी साठ लोगों के पास कोई काम नहीं है। आश्चर्य की बात यह है कि जब देश में आर्थिक विकास तेजी से आगे बढ़ रहा है, तो रोजगार के स्रोत क्यों घट रहे हैं।
देश में रोजगार की उपलब्धता कम होने से प्रतिभा संपन्न युवाओं का अन्य देशों में पलायन होने लगता है, जो देश के लिए कई तरह से नुकसान पहुंचाता है। ऐसे में जरूरी है कि एक स्पष्ट कार्ययोजना तैयार कर रोजगार सृजन, आर्थिक समानता लाने और प्रतिभा संपन्न युवाओं की श्रमशक्ति का सदुपयोग करने की दिशा में गंभीरता से प्रयास किए जाएं।