जब लेह का ‘जेन-जेड’ नहीं चला तो एक समुदाय के छुटभैये नेता ने सोचा कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भी लगे हाथ कुछ कोशिश कर ली जाए। पहले ‘आइ लव …’ लिखे बैनर-पोस्टर वाले जुलूस निकले..! प्रतिक्रिया में दूसरे समूह ने भी ‘आइ लव…’ वाले बैनर-पोस्टर लेकर प्रदर्शन किए..! तनाव बढ़ा, पत्थरबाजी और आगजनी हुई, पुलिस ने लाठियां बरसाईं।

जब यह सब हो गया तो एक गर्जना हुई कि कुछ लोग भूल गए कि उत्तर प्रदेश में किसका शासन है..! फिर गिरफ्तारियां, अवैध निर्माण पर बुलडोजर..! चैनलों ने सब सीधा प्रसारण में दिखाया। चैनलों की बहसों में एक ओर ‘पीड़ित होने’ के तर्क आए तो दूसरी ओर ‘अराजकता फैलाने वालों पर कार्रवाई गलत कैसे’ के तर्क आए। इसी क्रम में ‘आइ लव योगी’ हुआ, तो ‘आइ लव बुलडोजर’ और ‘आइ लव अखिलेश’… भी हुआ। अपने यहां हर चीज का अंत इसी तरह से होता है।

इसके बाद आया दुबई में एशिया क्रिकेट कप में भारत द्वारा पाकिस्तान को बुरी तरह से हराने और ट्राफी समारोह के इंतजार का दृश्य। भारतीय टीम के कप्तान सूर्यकुमार यादव ने शुरू में ही साफ कर दिया था कि वे ‘एसीसी’ के मुखिया और पाक के गृह मंत्री मोहिसन के हाथों ट्राफी स्वीकार नहीं करेंगे, क्योंकि भारत में आतंकी गतिविधियों को पाकिस्तान बढ़ावा दे रहा है। भारतीय टीम दो घंटे तक किसी और के हाथों ट्राफी लेने का इंतजार करती रही, लेकिन तभी चैनलों में दिखाई दिया कि पाकिस्तान के मंत्री मोहसिन स्वयं उस ट्राफी को अपने हाथों में लिए दर्शक दीर्घा की ओर दौड़े जा रहे हैं..!

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इसके बाद मामला आइसीसी तक पहुंचा। भारतीय टीम के कप्तान ने कहा कि हमारी जीत ही सबसे बड़ी ट्राफी है और वे इस जीत की राशि सेना तथा पहलगाम आतंकी हमले के पीड़ितों को देंगे..! अपने जनतंत्र में इस मुद्दे पर भी पाक के हिमायती निकल पड़े। कई चर्चकों ने इस पर कटाक्ष किया कि ये कैसी ‘जनतांत्रिक वाणी’ रही, जो आम लोगों के क्रिकेट मैच देखने के ‘जनतांत्रिक अधिकार’ को ‘अधिकार’ नहीं समझती..।

बहरहाल, इन दिनों ‘ध्रुवीकरण’ इस कदर व्याप्त है कि उससे अभिनेता शाहरुख खान तक नहीं बच पाए। इधर उन्हें राष्ट्रीय सम्मान मिला, उधर चैनलों पर विभाजनकारी बहसें आ विराजीं..! ‘तुष्टीकरणवादी’ पुराने उस्ताद बोलने लगे कि यह भी तो ‘तुष्टीकरण’ है, जबकि दूसरे कहिन कि भाई ये सारे सम्मान एक समिति ने तय किए हैं और जिस फिल्म के लिए शाहरुख को सम्मान दिया गया है, वह तो सत्ता के प्रति ‘काफी आलोचनात्मक’ है।

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फिर एक एंकर ने बताया कि विपक्ष का मानना है कि लेह में जो हुआ वह ‘गेम आफ मोबिलाइजेशन’ था..! क्या बात है! जिस तरह ‘गेम्स आफ हंगर’ या ‘गेम्स आफ थ्रोन’ सीरीज बनाई और दिखाई जाती है, जिनको ‘एआइ तकनीक’ की मदद से प्रभावशाली बनाया जाता है, उनके लिए ‘जेन-जी’ के कथित आंदोलन भी वैसे ही ‘गेम्स’ हैं। ‘लेह’ के बाद एक दाक्षिणात्य चरित नायक कहने लगे कि ये धरती तो सबकी है..! कितनी बढ़िया बात कही ‘सर जी’ ने, लेकिन वे पहले अपने घर-बार दान कर एक उदाहरण कायम करें, फिर ऐसे ‘उदार वचन’ कहें..!

जब भी चुनाव आते हैं, तो भीड़ होती है और जब भीड़ होती है, तब कुछ भी हो सकता है। यही हुआ। तमिलनाडु के उभरते नेता विजय की पार्टी ‘टीवीके’ ने ‘करूर’ में एक रैली बुलाई, उनके चाहने वाले बड़ी संख्या में वहां पहुंचे। मगर थलपति विजय देर से पहुंचे तो उन्हें करीब से देखने-सुनने वालों की भीड़ आगे आई और भगदड़ मच गई। देखते-देखते कई लोग कुचलकर मर गए और कई घायल हुए। प्रधानमंत्री से लेकर विपक्ष के नेताओं तक ने हादसे के शिकार हुए लोगों के प्रति अपने ‘शोक संदेश’ भेजे। ‘विजय’ के आरोप रहे कि ये ‘भितरघात’ है… पुलिस बंदोबस्त ठीक नहीं था। पर्याप्त एंबुलेंस तक नहीं थीं। भीड़ के निकलने के रास्ते तक तय नहीं थे… बिजली भी चली गई थी..!

फिर चैनलों पर तमिलनाडु के सत्ता पक्ष और विपक्ष में भी इस मुद्दे पर वैसी ही ‘तू-तू मैं-मैं’ होती दिखी जैसी कि उत्तर भारत के दलों के बीच होती है। सब एक-दूसरे को जिम्मेदार ठहराते रहे। थलपति विजय मामले को अदालत ले गए और अपनी प्रस्तावित जनसभाएं स्थगित कर दीं।

इसी बीच, एक छुटभैये नेता ने राहुल गांधी को जान से मारने की धमकी तक दे डाली, तो कई एंकरों ने उसकी मलामत की। फिर दशहरे के अवसर पर ‘संघ’ के ‘शताब्दी समारोह ’में प्रधानमंत्री के संबोधन को कई चैनलों ने सीधा प्रसारण में दिखाया और चर्चा कराई। इस तरह संघ ‘मुख्य धारा’ हो गया!