भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में कई नाम चमकते हैं, लेकिन कुछ चेहरे इतिहास के पन्नों में उतनी जगह नहीं पा सके, जितनी वे हकदार थे। सुचेता कृपलानी उन्हीं में से एक हैं—वो महिला नेता जिन्होंने विभाजन की आग में 36,000 से ज्यादा महिलाओं और बच्चों को मौत, हिंसा और अपहरण से बचाया, लेकिन जिन्हें आज की पीढ़ी अक्सर सिर्फ “पहली महिला मुख्यमंत्री” के परिचय तक सीमित कर देती है। उनकी पुण्यतिथि पर दिल्ली के हिंदी भवन में आयोजित एक व्याख्यान में यह सवाल तीखे तरीके से उठा कि आखिर भारतीय राजनीति ने सुचेता जैसी साहसिक और नैतिक नेतृत्व वाली महिला को क्यों भुला दिया।
कार्यक्रम में मुख्य वक्ता वरिष्ठ पत्रकार और गांधीवादी लेखक अरविन्द मोहन ने सुचेता कृपलानी की पूरी यात्रा पर रोशनी डाली – नोआखाली की हिंसा में गांधीजी के साथ राहत कार्य से लेकर विभाजनकाल के दिल्ली कैंपों में अकेले मोर्चा संभालने तक। उन्होंने कहा कि जब सरकारी मशीनरी टूट गई थी, तब सुचेता कृपलानी ने निजी नेटवर्क, संसाधन और अदम्य साहस के सहारे हजारों महिलाओं को सुरक्षित स्थानों तक पहुँचाया। उनके शब्दों में, “अगर वह काम किसी पुरुष नेता ने किया होता, तो उसकी मूर्ति हर बड़े चौराहे पर लगी होती।”
इतिहासकार डॉ. भगवान सिंह, जिन्होंने कार्यक्रम की अध्यक्षता की, ने सुचेता–आचार्य कृपलानी दंपति के जीवन को “राष्ट्रसेवा का तप” बताया। उन्होंने कहा कि दोनों ने व्यक्तिगत जीवन की सुख-सुविधाओं से कहीं ऊपर देशहित को रखा। डॉ. सिंह ने यह भी याद दिलाया कि सुचेता कृपलानी उन चुनिंदा लोगों में थीं, जिन्हें गांधीजी ने संगठनात्मक नेतृत्व के बेहद संवेदनशील कामों में आगे रखा था—यह उनकी क्षमता, भरोसे और नैतिक बल की स्वीकृति थी।
गांधीवादी लेखक अरविन्द मोहन ने उत्तर प्रदेश की पहली महिला मुख्यमंत्री के रूप में उनके कार्यकाल को भी खास नजरिए से रेखांकित किया। सुचेता जी ने बेहद साधारण सरकारी आवास से सरकार चलाई, भ्रष्टाचार पर सख्ती की, और यह दिखाया कि सत्ता चलाने के लिए न चमकदमक चाहिए न शोर—सिर्फ निर्णय क्षमता और नैतिक साहस। अरविंद मोहन के मुताबिक, जिन्हें कभी विरोधियों ने “गूंगी गुड़िया” कहकर तंज कसा था, उन्होंने प्रशासनिक दक्षता और राजनीतिक ईमानदारी से उस तमगे को बेअसर कर दिया।
कार्यक्रम के अंत में, आचार्य कृपलानी मेमोरियल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी अभय प्रताप ने कहा कि ट्रस्ट का उद्देश्य ऐसी स्मृति सभाओं के जरिए युवाओं को यह समझाना है कि स्वतंत्रता आंदोलन सिर्फ किताबों में दर्ज घटनाएँ नहीं, बल्कि कुछ असाधारण व्यक्तियों की जीवित विरासत है। तिब्बती संसद के निवर्तमान उपाध्यक्ष आचार्य येशी फुन्स्टोक, समाजवादी नेता राजवीर पवार, विश्व युवा केंद्र के अजीत राय, जगदीश सिंह, डॉ. शशि शेखर सिंह, देवेंद्र राय, डॉ. राजीव रंजन गिरि, अमलेश राजू, प्रेम प्रकाश, उमेश चतुर्वेदी, महेश भाई, संजीव कुमार समेत अनेक विचारक, पत्रकार, शोधकर्ता और सामाजिक कार्यकर्ता मौजूद रहे। इनकी मौजूदगी में आयोजित यह कार्यक्रम उभरती गायिका अनुश्री मिश्रा के भजन के साथ समाप्त हुआ। कार्यक्रम का संचालन प्रबंध न्यासी अभय प्रताप ने किया।
कार्यक्रम के अंत में यह स्पष्ट हो गया कि सुचेता कृपलानी की कहानी केवल इतिहास का हिस्सा नहीं, बल्कि वर्तमान समय के राजनीतिक-सामाजिक विमर्श की ज़रूरत भी है। राष्ट्रगान के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ और रिपोर्ट प्रस्तुत करने वाले हिमांशु कवि ने लिखा कि सुचेता कृपलानी को याद करना, दरअसल उस मानवीय विरासत को याद करना है जिसे भारत बार-बार खो देता है।
