देश में सड़कों पर पैदल चलने वाले लोगों की सुरक्षा एक गंभीर विषय है। इस पर गौर करना बेहद जरूरी है कि सड़कें क्या केवल वाहनों के लिए है या उन पर चलने का समान अधिकार पैदल यात्रियों का भी है। केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय की एक रपट भयावह तस्वीर पेश करती है। इसके मुताबिक, सड़क दुर्घटनाओं में पैदल यात्रियों की मौत की संख्या लगातार बढ़ रही है। वर्ष 2022 में देश भर में सड़क दुर्घटनाओं में 32,825 पैदल यात्रियों की जान चली गई, जो हादसों में हुई कुल मौतों का लगभग पांचवां हिस्सा है।
यह आंकड़ा केवल एक संख्या नहीं है, बल्कि एक गहरी प्रणालीगत विफलता को दर्शाता है। वर्ष 2014 से 2018 के बीच सड़क पर पैदल चलने वाले लोगों की मौत में 84 फीसद की भारी वृद्धि हुई है। यह प्रवृत्ति दर्शाती है कि पैदल यात्रियों की सुरक्षा को लेकर विभिन्न स्तरों पर सतर्कता और गंभीरता का अभाव है। जागरूकता की कमी के साथ-साथ यातायात नियमों का भी सुचारु रूप से पालन सुनिश्चित नहीं हो पा रहा है।
भारत में सड़कें मुख्य रूप से वाहनों को ध्यान में रख कर बनाई गई हैं, जिससे पैदल यात्रियों को अपनी सुरक्षा के लिए जद्दोजहद करना पड़ता है। अधिकांश शहरों में फुटपाथ या तो हैं ही नहीं या वे टूटे हुए हैं या फिर अतिक्रमण की जद में आ गए हैं। इस वजह से पैदल यात्रियों को मुख्य सड़कों पर चलने के लिए मजबूर होना पड़ता है, जहां तेज रफ्तार वाहनों से हमेशा दुर्घटना का खतरा बना रहता है।
दूसरी ओर, सड़कों पर अतिक्रमण भी एक बड़ी समस्या बन गई है। शहरों में तो सड़कों किनारे ही वाहन खड़े कर दिए जाते हैं, जिससे यातायात में बाधा उत्पन्न होती है और पैदल यात्रियों के लिए भी परेशानियों के साथ जान का जोखिम बना रहता है। स्थानीय प्रशासन की ओर से भी फुटपाथ और सड़कों पर अतिक्रमण के खिलाफ कार्रवाई नाममात्र ही होती है।
सड़क पर पैदल चलना भी कम जोखिमभरा नहीं, फुटपाथों पर अवैध कब्जेदारों ने बिगाड़े हालात
देश के कई शहरों में पैदल यात्रियों के लिए नीतियां तो बनाई गई हैं, लेकिन उनके कमजोर कार्यान्वयन के कारण जमीनी स्तर पर उनका प्रभावी असर नजर नहीं आता है। बंगलुरु इसका एक उदाहरण है। वहां वर्ष 2008 में पैदल यात्री नीति प्रस्तावित की गई थी, लेकिन पंद्रह वर्ष बाद भी जमीनी स्तर पर कोई खास सुधार देखने को नहीं मिला है और सड़क हादसों में पैदल चलने वालों की मौत लगातार बढ़ रही हैं।
इसी तरह चेन्नई और मुंबई में भी पैदल यात्री-केंद्रित नीतियों के बावजूद इनके खराब कार्यान्वयन के कारण मृत्यु दर अधिक बनी हुई है। ये नीतियां केवल कागजों की ही शोभा बढ़ा रही हैं। आम सड़कों पर पैदल चलने का अधिकार एक बुनियादी मानवीय जरूरत है और इसे हमारे संविधान के तहत जीने के मौलिक अधिकार का एक हिस्सा माना गया है।
एम्स के बाहर फुटपाथों पर उपेक्षित जिंदगी, मानवीय संकट के समाधान के लिए उठी गुहार
अफसोस की बात है कि देश में सड़क पर पैदल यात्रियों के लिए कोई ठोस समर्थन नहीं दिखता है। हालांकि, कुछ मौजूदा कानून जैसे मोटर वाहन अधिनियम और भारतीय न्याय संहिता में ऐसे नियम हैं, जिनमें लापरवाही से वाहन चलाने पर सजा का प्रावधान किया है। ये नियम अप्रत्यक्ष रूप से पैदल चलने वालों की मदद करते हैं, लेकिन इनमें ‘चलने के अधिकार’ को स्पष्ट तौर से परिभाषित नहीं किया गया है।
न्यायपालिका ने हमेशा पैदल यात्रियों के अधिकारों को मान्यता दी है। इस दिशा में एक महत्त्वपूर्ण मोड़ वर्ष 1985 का ओल्गा टेलिस बनाम बंबई नगर निगम मामला था, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि फुटपाथों का मुख्य उद्देश्य पैदल चलने वालों की सुरक्षा सुनिश्चित करना है। शीर्ष अदालत ने कहा कि फुटपाथों पर अतिक्रमण करके इस महत्त्वपूर्ण सुविधा को खत्म नहीं किया जा सकता है। इस सिद्धांत को वर्ष 2018 में ओमप्रकाश गुप्ता बनाम मुंबई नगर निगम मामले में बंबई उच्च न्यायालय ने फिर से दोहराया।
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले में एक और ऐतिहासिक फैसला दिया, जिसमें सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को दो महीने के भीतर व्यापक दिशानिर्देश बनाने का निर्देश दिया गया है। इन दिशानिर्देशों का मुख्य उद्देश्य सड़क किनारे फुटपाथों को बाधा-मुक्त और दिव्यांग-अनुकूल बनाना है। इसके अलावा, न्यायालय ने केंद्र सरकार को राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा बोर्ड स्थापित करने का भी निर्देश दिया है, जो इस दिशा में एक बड़ा कदम होगा।
आम सड़कों पर पैदल यात्रियों के अधिकारों को मान्यता दिए जाने के बावजूद जमीनी स्तर पर अभी भी बहुत सुधार की जरूरत है। भारतीय सड़क कांग्रेस ने वर्ष 2012 में ही फुटपाथों को लेकर बहुत ही स्पष्ट दिशानिर्देशों के साथ सिफारिशें की थीं। इनमें पैदल चलने के लिए कम से कम 1.8 मीटर चौड़ा और बाधा-मुक्त क्षेत्र बनाने का सुझाव दिया गया था।
इसके साथ ही रेहड़ी-पटरी वालों और अन्य सुविधाओं के लिए एक अलग ‘फर्नीचर जोन’ बनाने, बस ठहराव के लिए सही जगह तय करने और ‘जेब्रा क्रासिंग’ पर पैदल चलने वालों को प्राथमिकता देने जैसे सुझाव भी शामिल थे। मगर हकीकत यह है कि सड़क बनाने और रखरखाव का काम करने वाली एजंसियां अक्सर इन दिशानिर्देशों को नजरअंदाज कर देती हैं। जहां ‘जेब्रा क्रासिंग’ बनाई गई होती है, वहां वाहन चालक दिशानिर्देशों का पालन नहीं करते हैं। नियमों को सख्ती से लागू करने की जिम्मेदारी स्थानीय प्रशासन और यातायात पुलिस की होती है, मगर इस ओर उनका ध्यान कम ही जाता है।
बीएमडब्ल्यू से लेकर बुलेट तक, भारत में सड़क हादसों का सबसे बड़ा कातिल – स्पीड का जुनून
दिल्ली जैसे महानगर में सड़कों के निर्माण एवं विकास और रखरखाव के लिए कई सरकारी एजंसियां-जैसे नगर निगम, लोक निर्माण विभाग, दिल्ली विकास प्राधिकरण और भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण जिम्मेदार हैं। इस बहु-एजंसी प्रणाली के कारण यह तय करना बहुत मुश्किल हो जाता है कि मुख्य जवाबदेही किसकी है और इससे अक्सर भ्रम की स्थिति पैदा होती है। इसके अलावा, राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी भी एक बड़ी बाधा है। अक्सर सरकार और प्रशासन सुधारों पर तभी ध्यान देते हैं, जब कोई बड़ी दुर्घटना हो जाती है। यह सिर्फ एक प्रतिक्रियागत रवैया है। कुछ दिनों की मुस्तैदी के बाद हालात फिर से पुराने ढर्रे पर लौट आते हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन सुरक्षित पैदल यात्री बुनियादी ढांचा बनाने और निजी वाहनों को हतोत्साहित करने की सलाह देता है। फिनलैंड ने वर्ष 2030 तक पैदल चलने और साइकिल चलाने के लिए जगह तीस फीसद तक बढ़ाने का लक्ष्य रखा है। मेक्सिको सिटी में सुलभ फुटपाथ बनाने से यात्रा के समय में चालीस फीसद की कमी आई है। जापान और स्वीडन जैसे देशों में दिव्यांगों की मदद के लिए खास सुविधाएं हैं, जैसे पीले रंग के फर्श और श्रव्य संकेत। भारत को भी अब पैदल चलने के अधिकार को सिर्फ सुरक्षा का मुद्दा नहीं, बल्कि सम्मान, समानता और स्वास्थ्य का मुद्दा मानना चाहिए।
इस समस्या के समाधान के लिए लिए सरकार को एक स्पष्ट कानून बनाने पर गंभीरता से विचार करना चाहिए, जो पैदल चलने वालों के अधिकारों की रक्षा करे। इसके साथ ही कुछ और भी जरूरी कदम उठाने होंगे। सबसे पहले वाहन चालकों और आम लोगों को जागरूक करना होगा, ताकि वे पैदल चलने वालों के अधिकारों का सम्मान करें। दूसरा, फुटपाथों को पूरी तरह अतिक्रमण से मुक्त कराना होगा। इसके अलावा सड़कों को ‘पैदल यात्री-पहले’ के दृष्टिकोण से तैयार करना होगा, ताकि उनकी सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।