राजद-कांग्रेस के महागठबंधन ने गुरुवार को विकासशील इंसान पार्टी (VIP) के संस्थापक मुकेश सहनी को डिप्टी सीएम पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया। आज ही महागठबंधन ने तेजस्वी यादव को सीएम पद का उम्मीदवार भी घोषित किया मगर यह एक औपचारिकता ही थी। तेजस्वी और राजद पहले ही साफ कर चुके थे कि पार्टी सत्ता में आयी तो लालू यादव और राबड़ी देवी के पुत्र ही मुख्यमंत्री होंगे।

मुकेश सहनी भी कई बार कह चुके थे कि राज्य में महागठबंधन की सरकार बनी तो वह राज्य के डिप्टी सीएम बनेंगे। उनके इस दावे को राजनीतिक विश्लेषक गम्भीरता से नहीं ले रहे थे। आज सहनी के दावे पर सार्वजनिक मुहर लग गयी। मुकेश सहनी की वीआईपी पार्टी बिहार की 15 विधान सभा सीटों पर चुनाव लड़ रही है।

सहनी को डिप्टी सीएम उम्मीदवार घोषित करने को लेकर केवल विश्लेषक नहीं चौंके हैं। राजनीतिक इतिहासकार भी सिर खुझा रहे होंगे कि देश के पहले चुनाव से लेकर अब तक ऐसी अवधारणा पहले कभी घटित हुई है या नहीं?

डिप्टी सीएम पद को संतुलन-वादी आविष्कार माना जाता है। पिछले एक दशक में भाजपा ने इस पद का सर्वाधिक उपयोग किया है। माना जाता है कि पार्टी इस तरह अपने अलग-अलग वोटबैंक को संतुष्ट करती है। मसलन, बिहार में इस समय जदयू के नीतीश कुमार मुख्यमंत्री हैं और भाजपा के विजय सिन्हा एवं सम्राट चौधरी डिप्टी सीएम हैं। विजय सिन्हा भूमिहार समुदाय से हैं। सम्राट चौधरी कोइरी समुदाय से। नीतीश कुमार कुर्मी समुदाय से।

बिहार के अत्यंत पिछड़ा वर्ग (EBC) का बड़ा हिस्सा नीतीश कुमार का वोटबैंक माना जाता है और सामान्य वर्ग और ओबीसी का एक हिस्सा भाजपा का वोटबैंक माना जाता है। इसलिए जदयू के सीएम प्लस भाजपा के दो डिप्टी सीएम की तिकड़ी को अगड़ा-पिछड़ा-अत्यंत पिछड़ा समीकरण का प्रतिबिम्ब माना जाता है।

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जदयू और भाजपा दोनों ही चुनाव दर चुनाव एक निश्चित वोटबैंक पर अपनी पकड़ साबित कर चुके हैं इसलिए सीएम और डिप्टी सीएम पद के बंटवारे में उनकी भागीदारी समझ में आती है। मगर मुकेश सहनी ने जमीन पर कौन सी पकड़ दिखायी है जिसके कारण राजद-कांग्रेस-कम्युनिस्ट उनके आगे झुक गये!

मुकेश सहनी खुद को ‘सन ऑफ मल्लाह’ (मल्लाह का बेटा) कहते हैं। बिहार जातीय सर्वेक्षण के अनुसार बिहार में मल्लाह जाति की संख्या कुल आबादी का 2.60 प्रतिशत है। सहनी दावा करते हैं कि उन्हें मल्लाह के अलावा कुछ अन्य समुदायों का भी समर्थन प्राप्त है जो ‘निषाद समाज’ के अंग माने जाते हैं और इनका कुल वोट प्रतिशत 7-8 फीसद है। हालाँकि सहनी का यह दावा चुनाव में प्रमाणित होना बाकी है।

सहनी के लिए अभी तक सर्वाधिक वोट प्रतिशत वाला चुनाव पिछला आम चुनाव रहा। 2024 के लोक सभा में वीआईपी ने राजद-कांग्रेस के साथ मिलकर तीन सीटों पर चुनाव लड़ा था। उसके सभी प्रत्याशी हार गये थे लेकिन उसे कुल वोट प्रतिशत का 2.71 प्रतिशत मत प्राप्त हुआ था।

वर्ष 2020 में हुए बिहार विधान सभा चुनाव में मुकेश सहनी ने भाजपा-जदयू के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था। सहनी ने कुल 11 प्रत्याशी उतारे थे और जिनमें से चार को जीत मिली। वीआईपी को 1.52 प्रतिशत वोट मिले और 6,39,840 मत प्राप्त हुए थे।

वीआईपी के टिकट पर मुजफ्फरपुर की बोचहा सीट से चुनाव जीतने वाले मुसाफिर पासवान के 2021 में निधन के बाद इस सीट पर उपचुनाव हुआ तो राजद के अमर पासवान जीत गये। वीआईपी के बाकी बचे तीन विधायक वर्ष 2023 में भाजपा में शामिल हो गये। इस तरह फिलहाल मुकेश सहनी की पार्टी के पास शून्य विधायक और शून्य सांसद हैं।

मुकेश सहनी के दावे के बरक्स आंकड़ों की हकीकत की रोशनी में सहनी को राज्य में डिप्टी सीएम घोषित करने पर हैरान होना स्वाभाविक है। साफ है कि जिस तरह कांग्रेस गुरुवार से पहले तक तेजस्वी को सीएम उम्मीदवार घोषित न करके लालू यादव के लम्बे राजनीतिक वनवास से उपजी असुरक्षा को दूहने का प्रयास कर रही थी, उसी तरह मुकेश सहनी भी राजद के इसी असुरक्षा को दूहकर खुद को डिप्टी सीएम घोषित करवाने में कामयाब रहे हैं।

राजद के 20 साल लम्बे राजनीतिक वनवास में चार दिन की चाँदनी नीतीश कुमार की कृपा से आयी थी और उन्हीं के साथ चली गयी। यही कारण है कि वह जीरो विधायक जीरो सांसद वाले मुकेश सहनी को भी नाराज करके कोई रिस्क नहीं लेना चाहती होगी।

राजद के समर्थक बार-बार याद दिलाते हैं कि पिछले विधान सभा चुनाव में एडीए गठबंधन और महागठबंधन को मिले कुल वोटों में महज कुछ लाख का अंतर था। कुल सीटों के मामले में भी राजद गठबंधन एनडीए से ज्यादा पीछे नहीं था। इसलिए राजद के रणनीतिकार दो प्रतिशत वोटों के दावे को भी हल्के में नहीं ले पा रहे होंगे। कौन जाने सहनी के कुछ लाख वोटों से राजद की झोली में सत्ता आ जाए!