आखिरकार केंद्र सरकार को बात समझ में आ गई। तीन सितंबर, 2025 को सरकार ने कई वस्तुओं और सेवाओं पर जीएसटी दरों को तर्कसंगत बना कर कम किया। कर संरचना अब उस अच्छे और सरल कर के करीब है, जिसकी वकालत पिछले आठ वर्षों से कई राजनीतिक दल, व्यवसायी, संस्थान और व्यक्ति (जिनमें मैं भी शामिल हूं) करते रहे हैं। अगस्त, 2016 में जब संसद में संविधान (122वां संशोधन) विधेयक पर बहस हुई थी, तब मैंने राज्यसभा में भाषण दिया था। उसके कुछ अंश इस प्रकार हैं :
अडिग रुख
‘मुझे खुशी है कि वित्त मंत्री ने स्वीकार किया कि यूपीए सरकार ने ही सबसे पहले आधिकारिक तौर पर जीएसटी लागू करने के अपने इरादे का एलान किया था। 28 फरवरी, 2005 को बजट भाषण के दौरान लोकसभा में इसकी घोषणा की गई थी।
‘महोदय, चार प्रमुख मुद्दे हैं…
‘अब मैं विधेयक के सबसे महत्त्वपूर्ण भाग पर आता हूं… यह कर की दर के बारे में है। मैं अभी मुख्य आर्थिक सलाहकार की रपट के कुछ अंश पढूंगा… कृपया याद रखें कि हम एक अप्रत्यक्ष कर पर विचार कर रहे हैं। अप्रत्यक्ष कर की परिभाषा के अनुसार, यह एक प्रतिगामी कर है। कोई भी अप्रत्यक्ष कर अमीर और गरीब दोनों पर समान रूप से लागू होता है… मुख्य आर्थिक सलाहकार की रपट कहती है: ‘उच्च आय वाले देशों में औसत जीएसटी दर 16.8 फीसद है।
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भारत जैसी उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं में यह औसत 14.1 फीसद है।’ इस तरह दुनिया भर में 190 से अधिक देशों में किसी न किसी रूप में जीएसटी लागू है। यह 14.1 फीसद से 16.8 फीसद के बीच है।
‘हमें करों को कम रखना होगा। साथ ही, हमें केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के मौजूदा राजस्व की रक्षा करनी होगी। …हम ‘राजस्व तटस्थ दर’ यानी आरएनआर के जरिए यह करते हैं।
‘मुख्य आर्थिक सलाहकार राज्य सरकार के प्रतिनिधियों और अन्य विशेषज्ञों के साथ विचार-विमर्श के बाद 15 फीसद से 15.5 फीसद के आरएनआर पर पहुंचे और फिर सुझाव दिया कि मानक दर 18 फीसद होनी चाहिए। कांग्रेस पार्टी ने 18 फीसद कोई हवा से नहीं निकाला है। यह आपकी रपट से निकला है।
‘…किसी को तो जनता के लिए आवाज उठानी ही होगी। जनता की ओर से, मैं आपसे अनुरोध करता हूं कि इस दर को मुख्य आर्थिक सलाहकार द्वारा अनुशंसित दर पर ही रखें, यानी मानक दर 18 फीसद से अधिक नहीं होनी चाहिए।
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‘…रपट के पैरा 29, 30, 52 और 53 पढ़ें। इसमें स्पष्ट रूप से तर्क दिया गया है…
अठारह फीसद की मानक दर केंद्र और राज्यों के राजस्व की रक्षा करेगी, यह पर्याप्त होगी, मुद्रास्फीति-रोधी होगी, कर चोरी से बचाएगी और भारत के लोगों को स्वीकार्य होगी… यदि आप वस्तुओं और सेवाओं पर 24 फीसद या 26 फीसद कर लगाने जा रहे हैं, तो फिर जीएसटी विधेयक लाने की क्या आवश्यकता है?
‘अंतत: आपको कर विधेयक में एक दर रखनी ही होगी। मैं अपनी पार्टी की ओर से स्पष्ट रूप से मांग करता हूं कि जीएसटी की मानक दर, जो 70 फीसद से अधिक वस्तुओं और सेवाओं पर लागू होती है, वह अठारह फीसद से अधिक नहीं होनी चाहिए और निम्न एवं अन्य दर अठारह फीसद के आधार पर तय की जा सकती है।
आठ वर्ष की पीड़ा
वर्ष 2016 में भी मैंने यही बात कही थी, जो आज कह रहा हूं। मुझे खुशी है कि सरकार इस विचार पर सहमत हो गई कि दरों को युक्तिसंगत और कम किया जाना चाहिए। हालांकि, शुरुआत में सरकार का तर्क था कि अठारह फीसद की सीमा से राजस्व का भारी नुकसान होगा, खासकर राज्य सरकारों को। यह चिंता का एक बड़ा कारण था। आज दो कर दरें पांच फीसद और अठारह फीसद हैं! केंद्र के पास कर राजस्व बढ़ाने के कई तरीके हैं; अगर राज्य सरकारों को राजस्व का नुकसान होता है, तो सही कदम यही होगा कि उन्हें मुआवजा दिया जाए।
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पिछले आठ वर्षों में सरकार ने उपभोक्ताओं से ज्यादा से ज्यादा पैसा वसूलने के लिए कई जीएसटी दरों का इस्तेमाल किया। पहले वर्ष (जुलाई 2017 से मार्च 2018) में सरकार ने लगभग 11 लाख करोड़ रुपए एकत्र किए। वर्ष 2024-25 में लगभग 22 लाख करोड़ रुपए संग्रहित किए गए। उपभोक्ताओं द्वारा अपनी मेहनत से कमाया गया पैसा सरकार ने जीएसटी के माध्यम से छीन लिया- इसे सही मायने में और उपहासपूर्वक गब्बर सिंह टैक्स कहा गया। उच्च जीएसटी दरें कम खपत और बढ़ते घरेलू कर्ज के कारणों में से एक थीं। यह बुनियादी अर्थशास्त्र है कि करों में कमी से खपत को बढ़ावा मिलेगा। यदि टूथपेस्ट, हेयर आयल, मक्खन, शिशु नैपकिन, पेंसिल, नोटबुक, ट्रैक्टर, स्प्रिंकलर आदि पर पांच फीसद जीएसटी आज अच्छा है, तो पिछले आठ वर्षों में यह बुरा क्यों था? लोगों को आठ वर्षों तक अत्यधिक कर क्यों चुकाना पड़ा?
अभी बहुत कुछ बाकी
दरों में कमी तो बस शुरुआत है। अभी और भी बहुत कुछ करना बाकी है। सरकार को चाहिए कि- राज्यों, उत्पादकों और उपभोक्ताओं को एक ही जीएसटी दर (जरूरत पड़ने पर और छूट के साथ) के लिए तैयार करे; अधिनियमों और नियमों की धाराओं के लिए प्रचलित अस्पष्ट भाषा को खत्म करे; उन्हें सरल भाषा में फिर से लिखे; सरल फार्म और रिटर्न निर्धारित करे, फार्म भरने की आवृत्ति में तर्कसंगत कमी करे; कानून के अनुपालन को सरल बनाए: किसी छोटे व्यापारी या दुकानदार को चार्टर्ड अकाउंटेंट की सेवाओं की आवश्यकता न हो।
- जीएसटी कानूनों को गैर-आपराधिक बनाए: ये वाणिज्य से संबंधित नागरिक कानून हैं और किसी भी उल्लंघन के लिए उचित मौद्रिक दंड दिया जाना चाहिए; कर संग्रहकर्ताओं में यह भावना पैदा करे कि उत्पादक और व्यापारी अर्थव्यवस्था के केंद्र हैं, और वे कर संग्रहकर्ता के निशाने पर रहने वाले दुश्मन नहीं हैं। भाजपा के लिए जश्न मनाने की कोई बात नहीं है। सरकार को लोगों से माफी मांगनी चाहिए। और मुझे आशा है कि शेष सुधारों को लागू करने में आठ वर्ष और नहीं लगेंगे।