हाल ही में सामने आए आंकड़ों के अनुसार जापान में स्मृति भ्रंश यानी याददाश्त खो देने की समस्या एक बड़ा संकट बनती जा रही है। गौरतलब है कि जापान में वर्ष 2024 में स्मृति भ्रंश से पीड़ित लगभग अठारह हजार उम्रदराज लोग अपने घर का रास्ता भूल गए। याददाश्त खोने या कमजोर होने से बुजुर्गों का भटक जाना समग्र समाज के लिए एक चेतावनी बनकर सामने आया है। तकलीफदेह है कि अपने ही आंगन तक पहुंचने का मार्ग भूले बुजुर्गों में से पांच सौ लोगों के शव लावारिस हालत में मिले। ऐसे में वहां स्मृति भ्रंश के शिकार लोगों के बढ़ते आंकड़े गहन चिंता का विषय बन गए हैं।

स्वास्थ्य से जुड़ी स्थिति के रूप में देखा जाए या जीवन से जुड़ी आवश्यक बातों और हालात को भूल जाने के तौर पर, स्मृति भ्रंश दुनियाभर में हर आयुवर्ग के बीच एक गंभीर समस्या बन रही है। चिंतनीय यह भी है कि स्मृति भ्रंश की समस्या बहुत से लोगों में आगे चलकर मनोभ्रंश की व्याधि बन जाती है। मनोभ्रंश स्मृति भ्रंश की ही एक व्यापक स्थिति है, जिसमें याददाश्त कमजोर होने के साथ ही भाषायी, तार्किक और निर्णय लेने की क्षमता में भी गिरावट आ जाती है। वहीं स्मृति भ्रंश मुख्यत: याददाश्त कमजोर होने से जुड़ी परेशानी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुमान के मुताबिक, दुनिया भर में साढ़े तीन करोड़ से भी ज्यादा लोग मनोभ्रंश से पीड़ित हैं। सन 2050 तक यह संख्या तिगुनी से भी अधिक बढ़कर साढ़े ग्यारह करोड़ तक पहुंच जाएगी।

डिजिटल डिमेंशिया: किशोर और युवा पीढ़ी में क्यों बढ़ रही भूलने और अकेलेपन की समस्या, स्क्रीन टाइम का खतरा

विचारणीय है कि डिजिटल दुनिया में बीत रहे लंबे समय ने इंसान के मन-मस्तिष्क की कार्यशैली बदल दी है, जिसके चलते गुस्सा, चिड़चिड़ापन, नींद की कमी और याददाश्त कम होने जैसी समस्याएं तेजी से बढ़ी हैं। एक ओर सोशल मीडिया मंचों की संख्या बढ़ी है, तो दूसरी ओर हर आयुवर्ग के लोग इन आभासी मंचों पर लंबा समय भी बिता रहे हैं। जरूरत से ज्यादा स्क्रीन पर रमने के चलते मन ही नहीं, मस्तिष्क पर भी नकारात्मक असर पड़ रहा है। अधिकतर लोग एक तरह के भावनात्मक संक्रमण, सूचनाओं की अति और जरूरी या गैरजरूरी जानकारियों के अंबार तले दबे हैं। यह स्थिति भी स्मरण शक्ति पर नकारात्मक प्रभाव डालने वाली है।

स्पष्ट दिखता है कि तकनीकी सुविधाओं के घेरे में इंसान शारीरिक ही नहीं, मानसिक रूप से भी निष्क्रिय हो रहा है। सोचने-समझने की घट रही शक्ति से दिमाग की कार्यप्रणाली शिथिल हो रही है। यही नहीं, आभासी संसार में हर पल विचित्र सामग्री देखते रहने से भी अकेलापन, अवसाद, चिंता और दिमागी सुस्ती बढ़ रही है। इन हालात में तार्किक और भावनात्मक मोर्चे पर हिस्से आ रही उलझन दिमागी विघटन का सबसे बड़ा कारण साबित हो रही है, जो सीधे-सीधे मस्तिष्क की कार्यक्षमता पर दुष्प्रभाव डालने, मन को मायूसी में घेरने और व्यवहार में असंयम तथा अस्थिरता लाने वाली है।

Dementia: क्या है डिमेंशिया, क्यों होती है ये बीमारी? जानिये लक्षण और उपचार भी

दरअसल, तकनीकी तरक्की ने दृश्य माध्यमों की भूमिका बढ़ा दी है। हर मुट्ठी में मौजूद जानकारियों की स्क्रीन ने दिमाग पर जोर डालकर सोचने और याद रखने की जरूरत ही कम कर दी। क्लिक भर में स्क्रीन के माध्यम से मिलती या ढूंढ़ ली जाती हर सूचना-विवरण या तस्वीर दिमाग को सुस्त बनाने वाली गतिविधि साबित हो रही है। सामाजिकता का दायरा घटा है। शारीरिक-मानसिक और सामाजिक गतिविधियों में कमी स्मृति कम होने के जोखिम को और बढ़ा रही है। कुछ समय पहले एप से टैक्सी उपलब्ध करवाने वाली एक कंपनी द्वारा देश के पांच शहरों में किए गए सर्वे में लोगों की याददाश्त कमजोर होने की बात सामने आई थी, जिसमें मुंबई पहले नंबर पर रहा।

असल में इंसानों के लिए याद रखने के नाम पर स्मृतियां भर नहीं होतीं। रोजमर्रा की जिंदगी में भी बहुत कुछ याद रखना जरूरी होता है। मन-मस्तिष्क की सजगता के बिना संवाद-प्रतिवाद से लेकर दैनिक कामकाज को पूरा करने तक अनगिनत मुश्किलें सामने आती हैं। ऐसे में आम जीवन से जुड़ी सहज-सी गतिविधियों, सामान और कामों की सूची को भी भूल जाना एक बड़ा खतरा बन गया है। कमजोर होती स्मरण शक्ति दुर्घटनाओं तक को न्योता देने वाली साबित हो रही है। बच्चे हों या बड़े, पल भर में यह भूल जा रहे हैं कि उन्होंने क्या काम करने के बारे में सोचा था! अपना फोन नंबर या पता याद रखना मुश्किल हो गया है। अब न रास्ते याद रहते हैं और न ही किसी तरह के सीमा चिह्न। घर-परिवार में भी चीजों को रखकर या बातों को बोलकर भूल जाने की समस्या जिंदगी को हर मोर्चे पर मुश्किल बनाने लगी है। चिंता का विषय है कि अब यह जीवन के आखिरी पड़ाव पर पहुंचे बुजुर्गों की परेशानी भर नहीं रही।

हमारे देश में भी कम उम्र के लोग कमजोर होती याददाश्त के मरीज बन रहे हैं। एकल परिवारों के इस दौर में भूल जाने की स्थितियां बहुत से जोखिम पैदा करने वाली हैं। तकनीक से घिरती जीवनशैली में कुछ सकारात्मक बदलाव ही इस समस्या से बचाने में मददगार बन सकते हैं। धुंधलाती स्मृतियों की व्याधि से जूझने के लिए मन-मस्तिष्क को सजग-सक्रिय रखना आवश्यक है। तकनीकी सुविधाओं की सहायता लेने के बजाय इरादतन कुछ सूचनाएं याद रखने का प्रयास किया जाना चाहिए। साथ ही ‘डिमेंशिया’ को लेकर सरकार को भी देखभाल से जुड़ी उचित नीतियां बनानी होंगी।

गौरतलब है कि जापान में सरकार ने स्मृति भ्रंश की व्याधि से जुड़ी संभाल-देखभाल को सबसे जरूरी नीतियों में से एक माना है। वहां भूलने की समस्या से निपटने के लिए तकनीक का सहारा लेने का भी निर्णय लिया गया है। कमजोर याददाश्त से पीड़ित लोगों को जीपीएस ट्रेकिंग सुविधा, रोबोटिक सहायक और कृत्रिम बुद्धिमत्ता, यानी एआइ जैसी तकनीकों के माध्यम से नजर रखने, पहचानने और भावनात्मक सहारा देने का प्रयास किया जा रहा है। हालांकि तकनीकी सुविधाएं मानवीय देखभाल का विकल्प नहीं बन सकतीं।

भारत में तो सामाजिक-पारिवारिक ताने-बाने को सहेजना क्षीण होती स्मरण शक्ति वाले लोगों के लिए सबसे जरूरी है। साथ ही कुछ नया सीखना, प्राकृतिक परिवेश से जुड़ना और शारीरिक गतिविधियां इस व्याधि से दूर रखने में मददगार बन सकती है। तकनीकी विस्तार के दौर में जीवनशैली में प्रभावी बदलाव के बिना स्मरण शक्ति कम होने की समस्या से नहीं जूझा जा सकता।