भारत ने ऊर्जा के क्षेत्र में एक ऐसी ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है, जो न केवल देश के लिए, बल्कि संपूर्ण विश्व के लिए अध्ययन का विषय है। वर्ष 2030 तक अपने निर्धारित लक्ष्य से पूरे पांच वर्ष पहले भारत ने अपनी कुल स्थापित बिजली उत्पादन क्षमता का पचास फीसद गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से प्राप्त कर लिया है। यह असाधारण सफलता पेरिस समझौते के प्रति भारत की दृढ़ प्रतिबद्धता और जलवायु परिवर्तन के खिलाफ वैश्विक लड़ाई में उसकी नेतृत्वकारी भूमिका को सशक्त रूप से रेखांकित करती है। यह केवल आंकड़े नहीं, बल्कि ऊर्जा-सुरक्षित और पर्यावरणीय रूप से जिम्मेदार भारत की एक निर्णायक छलांग है। यह भारत की एक बड़ी उपलब्धि है, जो अपनी विकास की आकांक्षाओं को पृथ्वी की सेहत के साथ संतुलित करना सीख रहा है और दुनिया को दिखा रहा है कि आर्थिक प्रगति और पारिस्थितिक स्थिरता एक साथ संभव है।

ऊर्जा क्षेत्र में भारत की यह यात्रा एक दशक से भी अधिक समय पहले शुरू हुई, जब देश ने अपनी ऊर्जा सुरक्षा और बढ़ते कार्बन उत्सर्जन की दोहरी चुनौती को स्वीकार किया। उस समय भारत का ऊर्जा परिदृश्य मुख्य रूप से कोयले पर आधारित था, जो सस्ता और सुलभ तो था, लेकिन पर्यावरणीय और स्वास्थ्य संबंधी गंभीर चिंताओं को जन्म दे रहा था। वर्ष 2010 में शुरू किया गया ‘जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय सौर मिशन’ इस दिशा में एक प्रारंभिक और महत्त्वपूर्ण कदम था। इसने देश में सौर ऊर्जा के प्रति जागरूकता पैदा की और एक नीतिगत ढांचे की नींव रखी। हालांकि, इस हरित क्रांति की असली गति पिछले दशक में आई, जब सरकार ने नवीकरणीय ऊर्जा को राष्ट्रीय प्राथमिकता के केंद्र में रखा। यह एक रणनीतिक बदलाव था, जिसे मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति और महत्त्वाकांक्षी लक्ष्यों का समर्थन प्राप्त था।

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वर्ष 2015 में भारत ने 2022 तक 175 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता स्थापित करने का एक साहसिक लक्ष्य निर्धारित किया, जिसमें सौ गीगावाट सौर ऊर्जा, 60 गीगावाट पवन ऊर्जा, 10 गीगावाट बायोमास और पांच गीगावाट छोटी जलविद्युत परियोजनाएं शामिल थीं। इस लक्ष्य ने दुनिया को चकित कर दिया, लेकिन इसने घरेलू और अंतरराष्ट्रीय निवेशकों को एक स्पष्ट संकेत दिया कि भारत अपने ऊर्जा भविष्य को लेकर गंभीर है। इसके बाद वर्ष 2021 में ग्लासगो में आयोजित काप-26 शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दुनिया के सामने भारत की जलवायु कार्रवाई के लिए पांच सूत्रीय एजंडा ‘पंचामृत’ प्रस्तुत किया। इसी के तहत वर्ष 2030 तक भारत ने अपनी गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता को 500 गीगावाट तक पहुंचाने और अपनी कुल ऊर्जा आवश्यकताओं का पचास फीसद नवीकरणीय ऊर्जा से पूरा करने का विशाल लक्ष्य निर्धारित किया।

नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, भारत की कुल स्थापित बिजली क्षमता लगभग 485 गीगावाट को पार कर गई है, जिसमें से 243 गीगावाट से अधिक क्षमता गैर-जीवाश्म स्रोतों से आती है। यह स्पष्ट रूप से पचास फीसद के आंकड़े को पार करता है। देश की हरित ऊर्जा उपलब्धि में सौर ऊर्जा ने केंद्रीय भूमिका निभाई है। पिछले दस वर्षों में देश की सौर क्षमता में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है, जो मार्च 2014 के 2.63 गीगावाट से बढ़कर जुलाई 2025 तक 119.02 गीगावाट हो गई है। इस सफलता के पीछे कई कारक हैं। सरकार ने ‘अल्ट्रा मेगा सोलर पावर पार्क्स’ की स्थापना को प्रोत्साहित किया। राजस्थान का भड़ला सोलर पार्क (2,245 मेगावाट) और कर्नाटक का पावागड़ा सोलर पार्क (2050 मेगावाट) दुनिया के सबसे बड़े सोलर पार्कों में से हैं।

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इसी तरह ‘प्रधानमंत्री सूर्य घर: मुफ्त बिजली योजना’ ऊर्जा उत्पादन के विकेंद्रीकरण की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है। इसका लक्ष्य एक करोड़ घरों की छत पर सौर ऊर्जा संयंत्र स्थापित करना है। इससे परिवारों को 300 यूनिट तक मुफ्त या सस्ती बिजली मिलेगी और वे अतिरिक्त बिजली ग्रिड को बेचकर आय भी अर्जित कर सकेंगे। यह योजना न केवल ऊर्जा आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देगी, बल्कि सौर ऊर्जा को एक जन आंदोलन बनाने में भी सहयोग कर रही है। प्रौद्योगिकी में प्रगति और वैश्विक स्तर पर बड़े पैमाने पर उत्पादन के कारण सौर संयंत्रों की कीमतों में गिरावट आई है। ‘प्रधानमंत्री-कुसुम योजना’ देश के कृषि क्षेत्र को ऊर्जा सुरक्षा प्रदान करने पर केंद्रित है। इसके तहत किसानों को सोलर पंप स्थापित करने और अपनी बंजर भूमि पर सौर ऊर्जा संयंत्र स्थापित करके अतिरिक्त बिजली बेचने के लिए सबसिडी और प्रोत्साहन दिया जा रहा है।

वहीं, पवन ऊर्जा का भी भारत की आत्मनिर्भरता में महत्त्वपूर्ण योगदान है। विशेष रूप से तमिलनाडु, गुजरात, कर्नाटक और महाराष्ट्र जैसे लंबे समुद्र तट वाले राज्यों ने पवन ऊर्जा क्षमता के विस्तार में अहम भूमिका निभाई है। अब सरकार का ध्यान अपतटीय पवन ऊर्जा पर केंद्रित है। इसमें तट से दूर समुद्र में पवन चक्कियां स्थापित की जाती हैं, जहां हवा की गति अधिक, स्थिर और शक्तिशाली होती है, जिससे बिजली उत्पादन की क्षमता काफी बढ़ जाती है। गुजरात और तमिलनाडु के तटों पर विशाल अपतटीय पवन ऊर्जा फार्म विकसित करने की योजनाएं चल रही हैं। इसके अलावा पवन-सौर हाइब्रिड परियोजनाएं भी एक नया कदम हैं, जो एक ही स्थान पर दोनों प्रौद्योगिकियों का उपयोग करके भूमि और ‘ट्रांसमिशन’ के बुनियादी ढांचे का बेहतर इस्तेमाल करने की क्षमता प्रदान करता है।

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देश में जलविद्युत और परमाणु ऊर्जा की भूमिका भी अहम है। ये स्रोत बिजली ग्रिड को संतुलित रखने और मांग को पूरा करने के लिए आवश्यक हैं। सरकार ने 25 मेगावाट से अधिक की बड़ी जलविद्युत परियोजनाओं को नवीकरणीय ऊर्जा का दर्जा दिया, जिससे उन्हें वित्तीय प्रोत्साहन मिला। साथ ही, भारत का स्वदेशी परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम स्वच्छ ऊर्जा प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं। सरकार अब एक साथ कई परमाणु रिएक्टरों के निर्माण को मंजूरी दे रही है, ताकि क्षमता विस्तार में तेजी लाई जा सके। कोयले और तेल के आयात पर निर्भरता कम होने से भारत की ऊर्जा सुरक्षा मजबूत हो रही है। जीवाश्म ईंधन का उपयोग कम होने से ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में सीधी कमी आती है, जो भारत को वर्ष 2070 तक शून्य कार्बन उत्सर्जन के अपने दीर्घकालिक लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में मजबूती से आगे बढ़ाएगा। कोयला जलाने से होने वाले वायु प्रदूषण में कमी से शहरों में हवा की गुणवत्ता में सुधार होगा, जिससे श्वसन संबंधी बीमारियों में भी कमी आएगी।

समय से पहले अपने लक्ष्यों को प्राप्त करके भारत ने खुद को जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में एक जिम्मेदार और अग्रणी राष्ट्र के रूप में स्थापित किया है। यह उपलब्धि शानदार है, लेकिन यह यात्रा का अंत नहीं, बल्कि एक महत्त्वपूर्ण पड़ाव है। वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट के विशाल लक्ष्य तक पहुंचने के लिए अभी भी कई चुनौतियों से पार पाना होगा। नवीकरणीय ऊर्जा की अस्थिर प्रकृति को संभालने के लिए एक आधुनिक और लचीले ग्रिड की आवश्यकता है।

इसके लिए ‘ट्रांसमिशन’ लाइनों का विस्तार, उन्नत पूर्वानुमान प्रणाली और स्वचालित ग्रिड प्रबंधन प्रणालियों में भारी निवेश की जरूरत होगी। कृषि भूमि और पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों पर प्रभाव को कम करने के लिए बंजर भूमि, नहरों और जलाशयों पर तैरते हुए सौर संयंत्र जैसे नवीन समाधानों को बढ़ावा देना होगा। इसके लिए सरकार को एक स्थिर और आकर्षक नीतिगत ढांचा बनाए रखना होगा और हरित बांड जैसे नवीन वित्तीय साधनों को प्रोत्साहित करना होगा।