इन दिनों प्रकाशित हो रही वैश्विक आर्थिक-सामाजिक असमानता संबंधी रपटों में यह टिप्पणी की जा रही है कि दुनिया में भारत में अत्यधिक गरीबी में सबसे तेजी से कमी आ रही है, लेकिन यहां अमीर और गरीब के बीच खाई भी बढ़ रही है। सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के मामले में जापान को पीछे छोड़ कर भारत दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के दावे किए जा रहे हैं, लेकिन एक सच यह भी है कि जापान की प्रति व्यक्ति आय भारत की तुलना में लगभग 11.5 गुना अधिक है। ऐसे में देश में प्रति व्यक्ति आय में तेज वृद्धि के साथ आम आदमी की आमदनी में तेज वृद्धि से ही उसकी मुस्कुराहट बढ़ाई जा सकती है। हालांकि यह चुनौतीपूर्ण काम है।

हाल ही में एक अक्तूबर को प्रकाशित ‘एम3एम हुरुन इंडिया रिच लिस्ट 2025’ के मुताबिक पूरी दुनिया के विभिन्न देशों की तुलना में भारत में अरबपतियों की संख्या भी तेजी से बढ़ रही है।

यह महत्त्वपूर्ण बात है कि ‘एम3एम हुरुन इंडिया रिच’ की 2025 की सूची के हिसाब से भारत में अरबपतियों की संख्या बढ़ी है। देश में अब 358 अरबपति हैं, जो तेरह साल पहले की तुलना में छह गुना अधिक हैं। इस सूची के मुताबिक भारत में 1687 ऐसे भारतीय हैं जिनकी संपत्ति एक हजार करोड़ से अधिक है। इस सूची में शामिल सभी लोगों की कुल संपत्ति 167 लाख करोड़ रुपए है जो पिछले वर्ष 2024 की तुलना में पांच फीसद अधिक है। यह भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के लगभग आधे के बराबर है।

पिछले दो वर्षों में भारत में औसतन हर सप्ताह एक नया अरबपति बना है। इस रपट में यह भी बताया गया है कि भारत के सभी धनी व्यक्तियों ने प्रतिदिन 1991 करोड़ रुपए की दर से संपत्ति अर्जित की है।

भारत में एक ओर अमीरों की संख्या बढ़ रही है, वहीं पिछले दिनों प्रकाशित विश्व बैंक की वैश्विक गरीबी संबंधी रपट के मुताबिक, देश में अत्यधिक गरीबी में रहने वाले लोगों की संख्या में काफी गिरावट दर्ज की गई है। अत्यधिक गरीबी से करीब सत्ताईस करोड़ देशवासी बाहर निकले हैं। विश्व बैंक ने अत्यधिक गरीबी रेखा के निर्धारण के संबंध में जो नए अनुमान जारी किए हैं, उनके मुताबिक निम्न आय वाले देशों के लिए अत्यधिक गरीबी की रेखा 2.15 डालर प्रतिदिन के उपभोग व्यय से बढ़ा कर अब प्रतिदिन तीन डालर उपभोग व्यय पर निर्धारित की गई है। ऐसे में देश में बेहद निर्धन लोगों की जो संख्या वर्ष 2011-12 में 27.1 फीसद थी, वह वर्ष 2022-23 में घट कर केवल 5.3 फीसद रह गई है। इससे अत्यधिक गरीबी में रहने वाले लोगों की संख्या 34.44 करोड़ से घट कर 7.52 करोड़ रह गई है।

निश्चित रूप से यह परिदृश्य भारत की प्रगति का संकेत देता है। देश में करीब पचपन करोड़ से अधिक जनधन खातों (जे), करीब 138 करोड़ आधार कार्ड (ए) और करीब 119 करोड़ मोबाइल उपभोक्ताओं (एम) की शक्ति वाले ‘जैम’ से सुगठित बेमिसाल डिजिटल ढांचा गरीबों के सशक्तीकरण में असाधारण भूमिका निभा रहा है। इस ‘जैम’ के बल पर देश के गरीब लोगों के खातों में सीधे सहायता राशि हस्तांतरित हो रही है। इसमें कोई दो मत नहीं है कि प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (पीएमजीकेएवाई) के तहत अस्सी करोड़ से अधिक गरीबों और कमजोर वर्ग के लोगों को सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के माध्यम से मुफ्त अनाज वितरित कर उनकी सहायता की जा रही है।

सरकार ने गरीबों को 2028 तक मुफ्त अनाज देना सुनिश्चित किया है। कई और योजनाओं से भी गरीबी घट रही है। इनमें स्वच्छ र्इंधन के लिए उज्ज्वला योजना, सभी घरों में बिजली के लिए सौभाग्य योजना, पेयजल सुविधा के लिए जल जीवन मिशन, डिजिटल इंडिया, स्वच्छ शौचालय और आयुष्मान भारत जैसी योजनाएं शामिल हैं।

हाल ही में कुआलालम्पुर में आयोजित विश्व सामाजिक सुरक्षा मंच ने भारत को अंतरराष्ट्रीय सामाजिक सुरक्षा पुरस्कार 2025 से सम्मानित किया। यह पुरस्कार अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आइएलओ) की उस रपट पर आधारित है, जिसमें कहा गया है कि भारत में वर्ष 2025 में 64 फीसद से अधिक आबादी यानी करीब चौरानबे करोड़ से अधिक लोग किसी न किसी सामाजिक सुरक्षा योजना से लाभान्वित हो रहे हैं, जबकि वर्ष 2015 में सामाजिक सुरक्षा योजनाएं पच्चीस करोड़ से भी कम लोगों तक पहुंच रही थीं। यह सामाजिक सुरक्षा और सामाजिक न्याय की बेहतरीन तस्वीर है।

आइएलओ के महानिदेशक गिल्बर्ट एफ हुंगबो का कहना है कि सामाजिक सुरक्षा में विश्व स्तर पर भारत ने दूसरा स्थान हासिल किया है। पिछले एक दशक में सामाजिक सुरक्षा के दायरे में आने वाले लोगों की संख्या भारत में सबसे तेजी से बढ़ी है। गरीबों और मजदूरों के लिए सरकार की जन केंद्रित कल्याणकारी नीतियों से सामाजिक सुरक्षा का भी विस्तार हुआ है।

भारत में अमीर और गरीब के बीच खाई कम करने और आम आदमी की सामाजिक सुरक्षा के लिए अभी कई बातों पर ध्यान देना जरूरी है। इस समय देश के करीब बावन करोड़ लोगों का सामाजिक सुरक्षा की छतरी के बाहर होना बड़ी आर्थिक-सामाजिक चुनौती है। खासतौर से देश के असंगठित क्षेत्र, ‘गिग वर्कर्स’ और आम आदमी की सामाजिक सुरक्षा के लिए अभी मीलों चलना बाकी है।

आर्थिक विकास और नई तकनीकों का इस्तेमाल गरीबों के हित में करना जरूरी है। कर सुधारों का लाभ गरीब और कमजोर वर्ग के लोगों तक पहुंचना चाहिए। इन दिनों नए सुधारों और नई कर व्यवस्था पर प्रकाशित हो रही रपटों में कहा जा रहा है कि इन कर सुधारों से आम आदमी की जिंदगी आसान होगी। ऐसे में कई परिवारों को आजीविका कमाने और युवाओं के लिए नौकरी के अवसर पैदा करने में मदद मिलेगी। इससे देश के कमजोर वर्ग के लोगों की आमदनी में वृद्धि होगी।

चूंकि देश का लक्ष्य 2047 में आम आदमी की खुशहाली के साथ विकसित भारत बनाना सुनिश्चित किया गया है, तो इस लक्ष्य को पाने के लिए कई बातों पर रणनीतिक रूप से ध्यान देना होगा। देश से गरीबी घटने और अर्थव्यवस्था बढ़ने के बावजूद अभी हमें आत्मनिर्भरता की डगर पर और तेजी से बढ़ना होगा। हमें अभी आम आदमी के कल्याण और प्रतिव्यक्ति आय बढ़ाने के लिए मीलों चलना है। भारत के दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के दावे जरूर किए जा रहे हैं, लेकिन हमें अभी इससे संतुष्ट नहीं होना चाहिए। सच्चाई यह भी है कि प्रति व्यक्ति आय के मामले में भारत अब भी कई देशों से बहुत पीछे है।

उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकार महात्मा गांधी की आर्थिक-सामाजिक विचारधारा और अंत्योदय की अवधारणा को ध्यान में रखते हुए देश के कोने-कोने में स्वदेशी अभियान को आगे बढ़ाने के लिए सर्वोच्च प्राथमिकता देगी। इसके साथ ही देश भर में स्थापित उद्योग-कारोबार के द्वारा भी स्वदेशी वस्तुओं को बेचने और करोड़ों नागरिकों द्वारा स्वदेशी वस्तुओं को खरीदने के अभियान को भी प्राथमिकता दी जाएगी।

बहुआयामी रणनीतिक प्रयासों के आधार पर हम उम्मीद कर सकते हैं कि देश में अमीर और गरीब वर्ग के बीच खाई में कमी आएगी। आम आदमी की खुशहाली बढ़ेगी। साथ ही भारत वर्ष 2047 तक विकसित देश बनने की डगर पर आगे बढ़ते हुए दिखाई देगा।