कुछ समय पहले आंकड़े आए कि इस वित्त वर्ष की अप्रैल-जून तिमाही में भारत का आर्थिक वृद्धि मूल्य उम्मीद से अधिक 7.8 फीसद तक चला गया। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा मनमाने तरीके से भारत पर पचास फीसद शुल्क लगाए जाने के क्रम में दिए गए उनके वक्तव्यों में से एक यह भी था कि भारत की अर्थव्यवस्था एक असफल अर्थव्यवस्था है। इसका भारत ने विरोध किया। मगर यह विडंबना ही है कि अमेरिकी मूल की जिन विभिन्न वैश्विक मूल्यांकन एजंसियों ने अप्रैल-जून तिमाही में दुनिया के सभी देशों की तुलना में भारतीय अर्थव्यवस्था का वृद्धि मूल्य सर्वाधिक होने का पूर्वानुमान लगाया था, उसी देश के राष्ट्रपति ने भारत को नाकाम अर्थव्यवस्था कह दिया। मगर यथार्थ के धरातल पर भारत की अर्थव्यवस्था संतुलित, अनुकूल और प्रगतिशील बनी हुई है।

अमेरिका को निर्यात होने वाली भारतीय वस्तुओं तथा कुछ सामग्रियों पर पचास फीसद शुल्क लगाने से फिलहाल जो भी नुकसान होगा, उसका आकलन बाद में आएगा और उपाय भी निकलेंगे। मगर पूर्व निवारक उपाय के रूप में देश के कृषि एवं सेवा क्षेत्र के उत्तम प्रदर्शन के बल पर सकल घरेलू उत्पाद में तीव्र वृद्धि लगभग तय है। हमारी अर्थव्यवस्था दूसरे देशों के मुकाबले अधिक संतुलित है। जिन क्षेत्रों के कारण आर्थिक मूल्य में वृद्धि हुई है, उनमें प्रमुख रूप में कृषि, होटल, वित्तीय एवं जमीन-जायदाद कारोबार जैसी व्यवसायगत सेवाएं सहायक रही हैं।

दुनिया के सभी देशों को पीछे कर भारत अभी भी सर्वाधिक तेजी से प्रगति करने वाली अर्थव्यवस्था बना हुआ है। वर्तमान वित्तीय वर्ष के अप्रैल-जून की तिमाही में दुनिया के दूसरे संपन्न देश चीन की जीडीपी में 5.2 फीसद की आर्थिक वृद्धि हुई है, जो भारत से 2.6 फीसद कम है।

भारतीय रिजर्व बैंक ने अगस्त के आरंभ में वर्ष 2025-26 की वास्तविक जीडीपी वृद्धि का अनुमान 6.5 फीसद लगाया था। इसके अनुसार, भारतीय जीडीपी प्रथम तिमाही में 6.5, द्वितीय तिमाही में 6.7, तृतीय तिमाही में 6.6 तथा चतुर्थ तिमाही में 6.3 फीसद तक बनी रह सकती है। जीडीपी यानी सकल घरेलू उत्पाद से अभिप्राय एक निश्चित अवधि में देश की भौगोलिक सीमा के अंदर उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं के कुल मूल्य अंकन से है। भारत के संदर्भ में वर्तमान तिमाही अवधि से पहले जीडीपी में जो उच्चतम वृद्धि हुई थी, वह वर्ष 2024 की अंतिम तिमाही जनवरी-मार्च में 8.4 फीसद थी।

उस दौरान भारत पर अमेरिका की ओर से शुल्क संबंधी तथा अन्य भू-राजनीतिक दबाव विचार स्तर पर ही थे और वास्तविक रूप से लागू नहीं हुए थे, तब 8.4 फीसद का आर्थिक वृद्धि मूल्य था, लेकिन अभी की तिमाही में तो अमेरिका से लेकर यूरोपीय देशों तक ने रूस से कच्चा तेल खरीदने के मामले में भारत से आर्थिक भेदभाव किया। यही नहीं, अर्थव्यवस्था से संबंधित अन्य प्रतिबंध तक लगाए जाने लगे। इन वैश्विक झंझावातों, उपेक्षा और तमाम कठिनाइयों में भी अब यदि भारतीय अर्थव्यवस्था में वृद्धि मूल्य 7.8 फीसद है, तो यह आर्थिक उन्नयन का ही एक उदाहरण है। ऐसी आर्थिक वृद्धि अर्थशास्त्रियों और विशेषज्ञों के लिए विचार, परीक्षण तथा शोध का विषय है।

राष्ट्रीय सांख्यिकीय संगठन (एनएसओ) के आंकड़ों के अनुसार, जीडीपी की 7.8 फीसद मूल्य वृद्धि में सर्वाधिक भूमिका 3.7 फीसद के साथ कृषि क्षेत्र की है, जो वित्त वर्ष 2024-25 की अप्रैल-जून तिमाही में 1.5 फीसद थी। वित्त वर्ष 2025-26 की प्रथम तिमाही में विनिर्माण क्षेत्र का वृद्धि मूल्य बढ़ कर 7.7 फीसद हो गया है, जबकि एक वर्ष पहले इसी तिमाही में इस क्षेत्र का वृद्धि मूल्य 7.6 फीसद था। वर्तमान वित्त वर्ष की प्रस्तुत तिमाही ही नहीं, बल्कि आगामी तिमाहियों में भी घरेलू मांग बढ़ने के कारण अर्थव्यवस्था में तेजी से वृद्धि होने की संभावना है, क्योंकि एक ओर वर्षा ऋतु में अधिक बारिश कृषि क्षेत्र को फायदा पहुंचाएगी, वहीं त्योहारी महीने में बाजारों में उपभोक्ताओं के आने से कारोबार चमकेगा, जिससे राजस्व में वृद्धि होगी।

भारत पर अमेरिकी शुल्क के प्रभाव का व्यापक आकलन नवंबर 2025 के बाद ही संभव है। तब तक ब्रिटेन के साथ किए गए मुक्त व्यापार समझौते के धरातल पर आने के बाद परिणाम आने की संभावना है। यह भारतीय अर्थव्यवस्था में होने वाले विचलन, ठहराव और असंतुलन को न्यूनतम सीमा तक थाम सकेगा। मुक्त व्यापार के क्रियान्वयन के लिए भारत ने अन्य देशों के साथ जो समझौते किए हैं, वे भी किसी सीमा तक भारतीय अर्थव्यवस्था की सहायता अवश्य करेंगे। जापान की ओर से किया जाने वाला निवेश भी भारतीय आर्थिकी के लिए लाभदायी होगा।

यदि चीन के साथ भारत के भू-राजनीतिक संबंधों में दीर्घकालीन संतुलन स्थापित होता है तथा यह निरंतर बना रहता है, तो निश्चित रूप में दोनों देशों की परस्पर व्यापारिक सहभागिता बढ़ेगी। इसके जरिए न केवल भारत, बल्कि चीन के लिए भी आर्थिक प्रगति के नए अवसर पैदा होंगे। दोनों ही देशों की अर्थव्यवस्था अप्रत्याशित रूप में सशक्त हो सकेगी।

चीन तथा भारत यदि साथ मिल कर वैश्विक अर्थव्यवस्था चलाएंगे, तो अमेरिका की ओर झुका हुआ वैश्विक शक्ति का पलड़ा दक्षिण एशियाई क्षेत्र की ओर अवश्य घूमेगा। इस दिशा में शासकीय अर्थव्यवस्था संभालने वाले वित्त मंत्रालय सहित सभी वित्तीय प्रतिष्ठानों को कई नए उपाय करने के साथ ठोस कदम उठाने होंगे। इसकी कवायद शुरू करनी होगी।

वर्तमान तिमाही में कृषि एवं विनिर्माण जैसे जिन दो क्षेत्रों में अधिक जीडीपी बढ़ी है, उन क्षेत्रों से संबंधित नवीनतम, व्यापक और दीर्घकालिक नीतियों को पूरे आत्मविश्वास तथा संकल्प के साथ लागू करना होगा। इसके लिए केंद्र तथा राज्यों को विनिर्माण इकाइयों के रूप में भारी उद्योगों, उत्पादन इकाइयों के रूप में सभी प्रकार के उद्योगों, वितरण इकाइयों के रूप में सेवा क्षेत्र की सभी शाखाओं तथा उपभोग इकाई के रूप में नागरिकों को प्रोत्साहित करना होगा।

सूक्ष्म, मध्यम और लघु उद्यमों की सभी छोटी-बड़ी आवश्यकताएं पूरी करनी होंगी। उनकी समस्याओं और कठिनाइयों को भी समझना होगा। आवश्यकता के मुताबिक उनका त्वरित निदान करने की कार्य संस्कृति विकसित करनी होगी। इस संस्कृति का पूरी निष्ठा और समर्पण भावना के साथ पालन करना होगा। अर्थव्यवस्था में निरंतर उच्च वृद्धि के लिए शासन से लेकर जनसाधारण तक, सभी में राष्ट्रीय भावना, कर्त्तव्य तथा दायित्वों के प्रति अपेक्षित समर्पण अनिवार्य है। इस संगति के बिना आर्थिक समृद्धि की लक्षित और निर्धारित उपलब्धियां प्राप्त नहीं हो सकती हैं।

भारत को अमेरिकी चुनौतियों तथा वैश्विक अस्थिरता के बीच अर्थव्यवस्था के स्वदेशी तथा विदेशी, दोनों प्रकार के कारकों का ध्यान रखना होगा। आर्थिक रूप में निरंतर शक्ति संपन्न बनने की दिशा में कार्य करना होगा। यदि आर्थिक प्रगति के आधार पर भारत कभी चीन और अमेरिका से आगे बढ़ कर प्रथम पंक्ति में खड़ा होगा, तो इसका वैश्विक अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव नहीं होगा। भारतीय अर्थतंत्र जितना अधिक मजबूत होगा, विश्व की अर्थव्यवस्था उतनी ही सुगठित और स्वस्थ होगी।