देश की आर्थिक प्रगति ने समाज के कई समुदायों और वर्गों की भी उपेक्षा की है। दरअसल, विकास के क्रम में कतिपय वर्गों के हितों को साधने का प्रयास किया गया। इससे आर्थिक विकास के समक्ष लैंगिक असमानता, जीवन स्तर और जीवन गुणवत्ता में असमानता, निर्धनता, जलवायु परिवर्तन तथा ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में असमानता जैसी गंभीर चुनौतियां पैदा हो गई हैं।

हाल में जारी वैश्विक असमानता रपट-2026 के अनुसार देश की कुल संपत्ति का 40 फीसद हिस्सा सिर्फ एक फीसद लोगों के हाथों में है, जबकि 65 फीसद संपत्ति दस फीसद लोगों के पास है। देश में आय के स्तर पर भी स्थिति चिंताजनक है। कुल राष्ट्रीय आय की 58 फीसद हिस्सेदारी दस फीसद लोगों के पास है, जबकि पचास फीसद की हिस्सेदारी में 15 फीसद लोगों की भागीदारी है।

भारत में आय, संपत्ति और लैंगिक समानता में काफी अंतर देखने को मिलता है। महिला श्रम भागीदारी में भी निराशाजनक तस्वीर है। वहीं आज पूरी दुनिया में आर्थिक, लैंगिक और श्रम क्षेत्र में स्त्री-पुरुष विभेद बढ़ रहे हैं। भारत वैश्विक स्तर पर सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है, मगर जब बात लैंगिक समानता, श्रम क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी और निर्धनता की आती है, तो मालूम होता है कि भारत वैश्विक मानकों पर बहुत पीछे है।

देश में लैंगिक असमानता दुनिया के अन्य देशों की अपेक्षा कहीं ज्यादा है। विश्व आर्थिक मंच की ओर से जारी ‘ग्लोबल जेंडर गैप रपट-2025’ में भारत 148 देशों में से 131वें स्थान पर है। देश में राजनीतिक असमानता भी दिखाई देती है। वर्ष 2024 के चुनाव के बाद लोकसभा में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 13.6 फीसद है, वहीं स्थानीय सरकार में भागीदारी 44.4 फीसद है।

दुनिया भर में लड़कियां और महिलाएं आर्थिक असमानता की शिकार हो रही हैं। इस मसले पर अनेक रपटों में चिंता व्यक्त की गई है। भारत में अन्य देशों की अपेक्षा पुरुषों की तुलना में महिलाओं को वेतन वाले काम कम मिलते हैं। देश के 119 अरबपतियों की सूची में मात्र नौ महिलाएं शामिल हैं।

यदि विकास से जुड़े कार्यों की तुलना की जाए, तो महिलाएं 72 फीसद ही इसे हासिल कर पा रही हैं। महिलाएं पुरुषों की अपेक्षा 28 फीसद कम उपलब्धियां हासिल कर रही हैं। आज दुनिया भर में 15 फीसद ऐसी महिलाएं हैं जो काम करने के योग्य हैं, लेकिन उनके पास काम के अवसर उपलब्ध नहीं हैं। यदि पुरुषों की बात करें, तो यह आंकड़ा दस फीसद है।

भारत में शिक्षा के क्षेत्र में महिलाओं की बात करें, तो वर्ष 2022 में 24.9 फीसद ने ही माध्यमिक और उच्चतर शिक्षा हासिल की है, जबकि पुरुषों की यह संख्या 38.6 फीसद दर्ज की गई है। भारत में विज्ञान, गणित और इंजीनियरिंग विषय में लगभग 43 फीसद महिलाएं स्नातक की उपाधि प्राप्त कर रही हैं। यह आंकड़ा पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं की ज्यादा है।

मगर दुनिया भर में शीर्ष प्रशासनिक सेवाओं में महिलाओं की भागीदारी अब भी बहुत कम है। भारत में महिलाओं की स्थिति बहुत स्पष्ट नहीं है। इसी तरह वर्ष 2012 से 2022 के बीच लगभग 44 फीसद युवा लड़कियां शिक्षा और रोजगार से वंचित रह गई थीं। कोई ऐसा क्षेत्र नहीं है, जहां महिलाओं की भागीदारी पुरुषों की अपेक्षा ज्यादा हो।

निजी और सार्वजनिक उपक्रमों में महिलाएं बराबरी के लिए संघर्ष कर रही हैं। भारत में कृषि एक ऐसा क्षेत्र है जहां रोजगार की अपार संभावनाएं हैं, लेकिन इस क्षेत्र में भी महिलाएं बहुत पीछे हैं।

संयुक्त राष्ट्र भी मानता है कि अभी भी पूरी दुनिया में महिलाओं के लिए संसाधन और तकनीकी पहुंच पुरुषों की अपेक्षा सीमित है। आज पूरे विश्व में 62 फीसद पुरुष इंटरनेट का उपयोग करते हैं, वहीं 57 फीसद महिलाएं इंटरनेट का इस्तेमाल करती हैं। डिजिटल तकनीक की सुलभता के मामलों में पुरुषों की अपेक्षा महिलाएं अब भी पीछे हैं।

कई ऐसे कार्य हैं जहां महिलाओं की मेहनत का मोल नहीं है। ऑक्सफैम की रपट के अनुसार पूरी दुनिया में घरेलू कार्यों में लगी महिलाएं एक वर्ष में करीब दस हजार अरब डॉलर के बराबर काम करती हैं, जिसका उन्हें वेतन नहीं मिलता है। यदि इन महिलाओं के कार्यों की आर्थिक गणना की जाए, तो वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद करीब चार फीसद के बराबर होगा।

कृषि कार्यों में जिस काम के लिए पुरुषों को अगर एक रुपया मिलता है, उसी काम को करने के लिए महिलाओं को 82 पैसे मिलते हैं। पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं की मजदूरी में लगभग 15 फीसद का अंतर है।

अगर श्रम बल आय की बात की जाए, तो यहां भी महिलाओं की भागीदारी महज 18 फीसद है, जबकि पुरुषों का कुल श्रम बल आय 82 फीसद है। भारत में कुल व्यवसाय का लगभग 14 फीसद हिस्सा महिलाओं द्वारा संचालित होता है। वहीं केवल 17 फीसद महिलाओं को नियमित वेतन वाली नौकरी प्राप्त है।

इक्यावन फीसद महिलाओं का कार्य अवैतनिक है। पनचानबे फीसद महिलाओं का कार्य अनौपचारिक और असंगठित है। श्रम बल में महिलाओं की भागीदारी बढ़ने से आर्थिक विकास की उन्नति होती है, गरीबी और भुखमरी घटती है।

संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन के अनुसार, भारत में महिलाओं की आर्थिक विकास में भागीदारी बढ़ने से लगभग 4.5 करोड़ लोगों की भूख की समस्या से निजात मिलेगी। विश्व में लगभग दो सौ चालीस करोड़ महिलाएं आर्थिक, सामाजिक और अवसर में पुरुषों के बराबर अधिकार से वंचित हैं।

इस असमानता की खाई को कम करने में करीब 50 वर्ष या इससे अधिक वर्ष लग सकते हैं। आर्थिक विकास में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने से वैश्विक अर्थव्यवस्था को 81.6 लाख करोड़ रुपए का लाभ होगा।

भारत में आर्थिक विकास में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित होने से काफी लाभ होगा। ‘मेकिंस्से ग्लोबल इंस्टीट्यूट’ के अध्ययन के अनुसार, भारत में महिलाओं की आर्थिक भागीदारी से वर्ष 2025 तक सकल घरेलू उत्पाद 2.9 ट्रिलियन डॉलर की वृद्धि होने की संभावना जताई गई है।

फिर भी भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में बढ़ती असमानता संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों का उल्लंघन है। लोकतंत्र का मूल आधार सभी नागरिकों की समान भागीदारी सुनिश्चित करना है, ऐसे में बढ़ती असमानता लोकतंत्र के लिए भी एक बड़ी चुनौती है।

आर्थिक विकास में समान भागीदारी से नवप्रवर्तन, प्रतिष्ठा में बढ़ोतरी और अलग-अलग आर्थिक क्षेत्रों के सूचकांकों में बेहतरी आएगी। आर्थिक विकास में समान भागीदारी बढ़ाने के लिए प्रत्येक व्यक्ति को उसकी क्षमता और योग्यता के अनुसार कौशल विकसित करना होगा और ज्ञान आधारित विकास पर जोर देना होगा, क्योंकि अब अर्थव्यवस्था तकनीक और डिजिटल की ओर बढ़ रही है।

देश में समान भागीदारी से न सिर्फ आर्थिक उन्नति बल्कि सकल घरेलू उत्पाद को वैश्विक स्तर पर मजबूती मिलेगी। लोगों के जीवन स्तर में सुधार आएगा। निर्धनता घटेगी और खुशहाली बढ़ेगी। समावेशी समाज का निर्माण होगा। किसी भी राष्ट्र की प्रगति समान भागीदारी के बिना संभव नहीं है।