हम सब एक अजीब-सी हड़बड़ी में रहने लगे हैं। हमारे पास न ठीक से सोने का वक्त है न खाने का। किसी नजदीकी की बीमारी की खबर सुनकर भी हमारे पास इतना वक्त नहीं होता कि जाकर उसे हौसला दें, जरा सहानुभूति जता आएं या उसकी कुछ मदद कर दें। किसी की मृत्यु और अंतिम क्रिया जैसे जीवन के सबसे महत्त्वपूर्ण और अनुष्ठान पर भी अब औपचारिकता मात्र निभाने के लिए लोग जाते हैं। हड़बड़ी और व्यस्तता का आलम यह है कि हम न जाने का कोई ठोस और स्वीकार्य बहाना ढूंढ़ते हैं, ताकि कोई बुरा न मान जाए। किसी तरह चले जाएं तो इतनी भी सब्र नहीं रहती कि अंतिम क्रिया पूरी हो जाए, तब श्मशान से प्रस्थान किया जाए। दरअसल, हम निरंतर प्रतियोगिता प्रतिद्वंद्विता के मिजाज में रहने लगे हैं। बारहों महीने, आठों पहर हम शीर्ष पर पहुंचने की जद्दोजहद में लगे रहते हैं, लेकिन यह भूल जाते हैं कि जीवन कोई दौड़ या प्रतियोगिता नहीं।

आकाश में उड़ना अच्छी बात, लेकिन जमीन देखते रहिए

जीवन का आनंद जल्दीबाजी में शीर्ष तक पहुंचने में नहीं, बल्कि शीर्ष तक पहुंचने के सफर का खट्टा-मीठा अनुभव लेने में है। किसी ने खूब कहा है, उड़ने में बुराई नहीं है, लेकिन इतना भी न उड़ें कि जमीन दिखनी बंद हो जाए। जिंदगी के सफर को इसी मानसिकता के साथ तय करना चाहिए कि उम्मीद के काफिले पर सवार होकर हम चले भी जा रहे हैं तो क्या हुआ, अगर मंजिल ने कदम चूमने से इनकार कर दिया तो..! लेकिन इस बेहतरीन सफर की अच्छी यादें तो साथ ले जा रहे हैं।

इस सफर में हम कई बार लड़खड़ा भी सकते हैं, कई बार रुकेंगे और थकेंगे भी और अक्सर परेशान भी होंगे। मगर यही तो जिंदगी है। यों भी आसान चीजों में वह सुख कहां है, जो कठोर मेहनत से हासिल की हुई चीजों में है। इसीलिए मेहनत के फल को मीठा कहा गया है। यह याद रखना चाहिए कि हमारा शीर्ष कभी भी हमारे मित्र, रिश्तेदार या पड़ोसी जैसा नहीं हो सकता। उन्हें अपनी जरूरत के अनुसार सफर तय करने देना चाहिए और हम अपनी जरूरत के अनुसार अपने लक्ष्य निर्धारित करें। फिर इन लक्ष्यों को हासिल करने का सफर तय करना चाहिए। यह ध्यान रहे कि हमारे लक्ष्य चाहे जितने भी बड़े क्यों न हों, उन्हें हासिल करने के दौरान कदम छोटे-छोटे होने चाहिए। हां, इस सफर में निरंतरता होनी चाहिए।

निरंतरता का अर्थ यह कतई नहीं कि यात्रा अनवरत चलती ही रहे

निरंतरता का अर्थ यह कतई नहीं कि यात्रा अनवरत चलती ही रहे। ऊर्जा का पुन: संचय करने के लिए बीच-बीच में विश्राम भी लेना चाहिए और मन को प्रफुल्लित रखने के लिए उपाय भी करते रहने चाहिए। हमेशा स्वयं को निखारते रहना बेहद जरूरी है। यह निखार बाह्य सौंदर्य के साथ-साथ आंतरिक कौशल और कार्य में निपुणता के लिए भी आवश्यक है। जब हम किसी बड़े लक्ष्य को छोटे और आसान कार्यों में बांट कर लंबे समय तक उस पर काम करते हैं तो यही आदत हमें बड़ी सफलता दिला सकती है।

जब भी सफर थकाने लगे या उबाऊ लगने लगे, हमें अपनी ऊर्जा को जागृत करने की जरूरत है। उस डर और तकलीफ को पहचानना चाहिए जो हमें परेशान कर रही है। उससे लड़ना चाहिए। हम इसी वक्त अपनी असली ताकत पहचानेंगे। जब हम अपनी आंतरिक शक्ति को जागृत करते हैं तो कोई बाहरी स्थिति हमें नियंत्रित नहीं कर सकती। पुस्तक ‘अवेकन द जायंट विदिन’ में लिखा है कि आप विशाल शक्ति के मालिक हैं। उस शक्ति को जगाएं।

यह कभी न भूलें कि जिंदगी के सफर में लोगों का साथ और रिश्ते बहुत अहम भूमिका निभाते हैं। यह साथ हमें तभी मिलेगा, जब हम दूसरों की खुशी और सम्मान को प्राथमिकता देंगे। लोग तभी जुड़ेंगे, जब हम उनका सम्मान करेंगे। अच्छे यात्री यात्रा के दौरान हमेशा अपने सहयात्रियों की तरफ मदद के हाथ बढ़ाते हैं, क्योंकि उन्हें पता है कि सफर के दौरान किन्हीं परिस्थितियों में उन्हें भी मदद की जरूरत पड़ सकती है।

हमें खुद के करीब ले जाते हैं खाली लम्हे, जिनका हमें नहीं देना होता हिसाब

जीवन के सफर में तीव्रता के बजाय कर्मशीलता और गहराई को महत्त्व देना ज्यादा जरूरी है। भगवदगीता का शाश्वत ज्ञान इस संबंध में एक व्यावहारिक समाधान प्रस्तुत करता है, जो प्रत्येक मनुष्य के श्रेष्ठ गुणों और उसकी कर्मशीलता को जागृत करने की प्रेरणा देता है। किसी के समक्ष हमें स्वयं को सिद्ध करने की जरूरत नहीं बस कार्य में एकाग्रता की जरूरत है। जीवन के प्रति यह दृष्टिकोण हमें अपनी विफलताओं को सहज रूप में स्वीकार करने और उनसे सीखने की हिम्मत देता है। यह हिम्मत और प्रेरणा हमें हर परिस्थिति में स्थिर बनाए रखती है।

जीवन के सफर को सुकून से तय करने के लिए पूर्णता और सौ फीसदी सटीकता के भ्रम से भी उबरना पड़ेगा। संपूर्णता की अपेक्षा एक भ्रम है, जो किसी को हमेशा उलझाए रखता है और उसकी यात्रा को दूभर और बोझिल कर देता है। इसी आदत की वजह से लोगों के काम अधूरे रह जाते हैं या फिर बहुत ज्यादा समय श्रम और ऊर्जा लेने लगते हैं। इसी प्रकार आवेग में आकर निर्णय लेने की आदत हमें आगे चलकर पश्चताप करने के लिए मजबूर कर देती है। जल्दबाजी और उत्तेजना में लिए गए गलत निर्णय और अस्थिर भावनात्मक प्रतिक्रियाएं अक्सर बड़ी परेशानियां खड़ी कर देती हैं।

कुछ लोगों का सफर तो सिर्फ इसलिए कठिन हो जाता है कि वे सब कुछ खुद ही नियंत्रित करना चाहते हैं। यह आदत अक्सर दुखदायी होती है। हमें इस दुनिया में लगभग हर काम में दूसरों का सहयोग चाहिए होता है। इसलिए अपना एक सहयोग का तंत्र और सामाजिक संपर्क तैयार करके चलना चाहिए। इसके लिए हमें दूसरों का नहीं, अपना रवैया बदलने की आदत डालनी होगी। यह जरूर याद रखने की जरूरत है कि हम इस दुनिया में अगर दूसरे का दिल दुखाने के लिए नहीं आए हैं, तो इसके साथ ही हर किसी की अपेक्षाओं पर खरा उतरना भी हमारी जिम्मेदारी नहीं है।