दिल्ली के वायु प्रदूषण से मुझे इतनी तकलीफ हुई पिछले सप्ताह कि चाहूं भी तो किसी दूसरे विषय पर लिखना असंभव है। पहली मुसीबत यह हुई कि मुंबई से दिल्ली मुझे तकरीबन बारह घंटे लगे घर तक पहुंचने में। मुंबई में घर से निकलने वाली थी कि एअर इंडिया से खबर आई कि उड़ान में एक घंटा देरी है। एक घंटे बाद संदेश आया मेरे फोन पर कि एक घंटा और देर होगी। उसके बाद जब कोई खबर नहीं आई, तो मैं पहुंच गई मुंबई हवाईअड्डा, जहां मालूम हुआ कि देरी एक घंटा और होने वाली है। मुझे तकलीफ तो हुई, लेकिन जब आसपास मैंने ऐसे लोगों को देखा जो मुझसे तीन घंटे पहले से हवाईअड्डे पर भटक रहे हैं दिल्ली की इस उड़ान के इंतजार में। मैं चुपचाप बैठ कर किताब पढ़ने लगी।
किताब अच्छी तो थी, लेकिन उसको पढ़ते-पढ़ते सारा दिन गुजर गया और अंत में दिल्ली पहुंची शाम होने के बाद। जबकि मुझे आना था दोपहर में। दिल्ली हवाईअड्डे पर उतरने के बाद मालूम हुआ कि उस दिन सारी उड़ानें देर से चल रही थीं ‘मौसम’ की वजह से। जिस अधिकारी ने मुझे यह बताया, जब उससे पूछा कि मौसम का उसका मतलब प्रदूषण तो नहीं है, तो उसने माना कि प्रदूषण को ही वह मौसम कह रहा था। ‘आप फिर भी ठीक हैं जी, आपको पता नहीं, कितनी उड़ानों को हमने चंडीगढ़ और जयपुर भेजा है मौसम की वजह से’।
हवाईअड्डे से बाहर आई, तो ऐसा लगा कि किसी डरावनी हिंदी फिल्म में गलती से पहुंच गई हूं। प्रदूषण और कोहरे की ऐसी चादर बिछी हुई थी शहर पर कि मेरी गाड़ी रुक-रुक के ही चली इस गहरी चादर में से, जिसमें दूसरी गाड़ियों की बत्तियां दिख रही थीं कोहरे में लिपटी हुईं। घर पहुंची तो पता लगा कि यमुना एक्सप्रेस-वे पर भयानक हादसा हुआ है, जिसमें कोई बीस गाड़ियां एक दूसरे से टकराई थीं ‘मौसम’ की वजह से। कई लोग इस हादसे में अपनी जान गंवा चुके थे।
अगले दिन मालूम हुआ कि जिस काम के लिए मैं दिल्ली आई थी, वह हो नहीं पाएगा। इसलिए कि पुरानी गाड़ियों पर रोक लग गई है और दिल्ली सरकार ने आदेश जारी किया है कि हर दफ्तर में आधे लोग घर से ही काम करें। मेरे लिए घर से काम करना संभव नहीं था, तो बैठ कर टीवी देखने लगी और देखते-देखते गुस्सा मेरा बढ़ता ही गया। पहला चेहरा जो देखा, वह दिल्ली सरकार के किसी मंत्री का था, जिसने प्रदूषण का सारा दोष पिछली सरकार पर डाला।
उसकी बातें सुन कर याद आया कि जब अरविंद केजरीवाल की सरकार थी, तो किस आक्रामक अंदाज में भारतीय जनता पार्टी के लोग टीवी पर प्रदूषण की बातें करते थे। दोष लगाते थे कि पंजाब के किसानों के पराली जलाने से ही प्रदूषण बढ़ा है दिल्ली में और इसलिए कि पंजाब में भी आम आदमी पार्टी की सरकार थी और केजरीवाल इसको रोक नहीं रहे हैं। कभी दोष किसानों पर डालते हैं हमारे शासक, तो कभी बेघर गरीबों के चूल्हों पर, लेकिन कभी स्वीकार नहीं करते हैं कि असली दोष है भारत सरकार का।
पिछले दो दशकों में प्रदूषण हर साल बढ़ता गया है। इसलिए कि भारत सरकार ने कभी कोशिश भी नहीं की है समझने की कि चीन ने वायु प्रदूषण का हल कैसे ढूंढ़ा है। मुझे याद है बेजिंग जब गई थी कोई पंद्रह-बीस साल पहले, तो चीन की राजधानी का हाल बिल्कुल दिल्ली जैसा था। अब अगर नहीं है, तो इसलिए कि चीन की सरकार ने समाधान ढूंढ़ा सिर्फ बेजिंग के लिए नहीं, बल्कि उसके आसपास कोई तीस अन्य शहरों का भी। साथ में कोयले का इस्तेमाल तकरीबन पूरी तरह बंद किया और शहरों में चलने वाली गाड़ियों पर सख्त पाबंदियां लगाईं।
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मैंने चीन का हवाला देते हुए ‘एक्स’ पर लिखा कि हमको चीन से सीख लेनी चाहिए, तो पीछे पड़ गए भाजपा के समर्थक और कुछ ऐसे लोग जो अपने आपको हर चीज का विशेषज्ञ मानते हैं। जो सुनने को मिला, वह कुछ इस किस्म का था। ‘आप चुप रहिए। आपको इन चीजों के बारे में इतना नहीं मालूम, जितना हमारे प्रधानमंत्री को मालूम है। वे कर रहे हैं जो कुछ हो सकता है’। ‘बैठ जाओ आपको क्या मालूम इन चीजों के बारे में’। और जो थोड़े सभ्य मिजाज के थे उनसे यह सुना, ‘चीन जो कर सकता है, हम नहीं कर सकते। हमारा देश लोकतांत्रिक है इसलिए’।
इनसे कौन भिड़े, लेकिन हमारे-आपके लिए कहना जरूरी हो गया है कि वायु प्रदूषण जो इस तरह बढ़ गया है उत्तर भारत में, उसका दोष सीधा थोपा जा सकता है हमारे शासकों पर। इसमें बराबर का दोष बनता है राजनीतिकों और आला अधिकारियों का। इन लोगों ने लापरवाही ऐसी दिखाई है पिछले तीन दशकों में कि तकरीबन समाधान ढूंढ़ने की कोशिश तक नहीं हुई है। नतीजा यह कि जो समस्या कभी सिर्फ दिल्ली की थी, वह फैलते-फैलते अब उत्तर भारत के हर शहर की हो गई है।
इतनी गंभीर समस्या बन गई है कि शर्म आनी चाहिए इस देश के हर पर्यावरण मंत्री को। केंद्रीय मंत्री व्यस्त रहते हैं विदेश में पर्यावरण बचाओ सम्मेलनों में शामिल होने में, लेकिन राज्य सरकारों के पर्यावरण मंत्री क्या कर रहे थे इस दौरान? क्या जानते नहीं थे कि अगर लोगों के लिए सांस लेना ही खतरनाक हो जाए, तो पर्यावरण को बचाने का कोई फायदा नहीं रहता है। आम लोग जब सांस लेंगे साफ वायु में, तब जाकर परवाह कर पाएंगे पर्यावरण बचाने का। आप बताइए कि ठीक है मेरी बात या नहीं?
