बिहार चुनाव में हो रही जातीय लामबन्दी के केन्द्र में मुख्यमंत्री का पद है। हर दल और समुदाय चाहता है कि इस पद पर उसका आदमी बैठे। बिहार का अगला मुख्यमंत्री कौन होगा यह 14 नवंबर को चुनाव परिणाम आने के बाद पता चलेगा।

अगर राजद-कांग्रेस गठबंधन को बहुमत मिलता है तो तेजस्वी यादव के मुख्यमंत्री बनने की सर्वाधिक सम्भावना है। तेजस्वी खुद साफ कर चुके हैं कि वह मुख्यमंत्री उम्मीदवार हैं।

कांग्रेस ने अभी तक तेजस्वी को गठबंधन का मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित नहीं किया है मगर अनुमान जताया जा रहा है कि गुरुवार को अशोक गहलोत के नेतृत्व में होने वाली साझा प्रेस वार्ता में कांग्रेस इस मुद्दे को लेकर उठी धुंध साफ कर सकती है।

दूसरी तरफ, भाजपा की साझीदार जदयू ने साफ कहा है कि गठबंधन को बहुमत मिलने पर नीतीश कुमार सीएम बनेंगे। भाजपा ने अभी तक इतना ही कहा है कि चुनाव नीतीश कुमार के नेतृत्व में लड़ा जा रहा है।

अमित शाह और लोजपा के चिराग पासवान जैसे नेता इस मुद्दे पर किताबी जवाब देते हुए कहते हैं कि चुनाव के बाद विधायक दल की बैठक में नया नेता चुना जाएगा।

बिहार में अगला मुख्यमंत्री बनने के दो प्रमुख दावेदार नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव राज्य की दो प्रभावशाली ओबीसी जातियों से आते हैं। नीतीश कुमार कुर्मी हैं और तेजस्वी यादव, यादव जाति से हैं। बिहार के जातीय सर्वेक्षण में ग्वाला, अहीर, गोरा, घासी,सदगोप, मेहर, लक्ष्मी नारायण गोला को यादव की उपजाति के तौर पर गिना गया था।

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बिहार के डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी कुशवाहा (कोइरी) जाति से आते हैं। राज्य के दूसरे उप मुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा भूमिहार जाति से आते हैं।

बिहार में राज कर चुके दोनों गठबंधनों को चुनौती देने वाले के रूप में उभर रहे प्रशांत किशोर ब्राह्मण जाति से आते हैं। उनकी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष उदय सिंह राजपूत जाति से आते हैं और राज्य अध्यक्ष मनोज भारती अनुसूचित वर्ग से आते हैं।

बिहार के मुख्यमंत्री किस जाति से आते रहे हैं

वर्ष 1952 में हुए देश के पहले चुनाव से लेकर1990 तक बिहार में कांग्रेस का दबदबा था। राज्य के सर्वाधिक मुख्यमंत्री कांग्रेस से हुए। कांग्रेस ने जिन समुदायों को मुख्यमंत्री पद दिया उनमें भूमिहार, कायस्थ, राजपूत, यादव, पासवान, अगड़ा मुस्लिम इत्यादि समुदाय प्रमुख हैं।

कांग्रेस के वर्चस्व काल में ज्यादा मुख्यमंत्री अगड़ा वर्ग से हुए थे। इनमें भी ब्राह्मण समुदाय की बारम्बारता सर्वाधिक रही। समाजवादी धड़े के उभार के बाद कांग्रेस ने अनुसूचित एवं पिछड़ा वर्ग के नेताओं को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपी।

वर्ष 1990 से 2005 तक राज्य में जनता दल और उससे अलग होकर बने लालू यादव के राजद का राज रहा और राज्य में यादव मुख्यमंत्री रहा। 2005 से लेकर 2025 के बीच में करीब एक साल के अपवाद कौ तौर पर जीतनराम मांझी राज्य के प्रमुख बने। इस दौरान बाकी समय नीतीश कुमार राज्य के सीएम रहे।

बिहार में किस जाति का मुख्यमंत्री सर्वाधिक रहे

बिहार में अभी तक सबसे अधिक करीब 19 साल समय तक नीतीश कुमार सीएम रहे हैं। नीतीश के बाद नंबर है बिहार के पहले मुख्यमंत्री श्री कृष्ण सिंह का।

श्री कृष्ण सिंह भारत विभाजन के बाद करीब 14 साल तक राज्य के मुख्यमंत्री पद पर रहे। आजादी से पहले करीब तीन साल तक वह बिहार प्रांत के प्रीमियर भी रहे थे।

राबड़ी देवी और लालू यादव अलग-अलग कार्यकाल में करीब साढ़े सात- साढ़े सात साल तक बिहार के सीएम रहे हैं।

जगन्नाथ मिश्रा (5 साल 180 दिन), बिन्देश्वरी दुबे (2 साल 338 दिन), बिनोदानन्द झा ( 2 साल 226 दिन), केदार पाण्डे (1 साल 105 दिन), भागवत झा आजाद (1 साल 24 दिन) का कुल कार्यकाल मिला दें तो करीब 13 साल तक राज्य में ब्राह्मण समुदाय के मुख्यमंत्री रहे।

यानी आजादी के पहले 78 साल में से करीब 61 साल तक महज चार जातियों (भूमिहार, ब्राह्मण, यादव, कुर्मी) के सीएम रहे हैं। इनके अलावा बाकी के 17 साल में कायस्थ, राजपूत, पासवान, नाई, मुसहर, अगड़ा मुस्लिम इत्यादि समुदाय के सीएम रहे।

बिहार का अगला मुख्यमंत्री किस जाति से होगा?

ऊपर अभी तक जिन समुदायों का जिक्र आया है उनमें कुछ समुदायों को तो केवल संयोगवश सीएम पद पर बैठने का मौका मिला था। आजादी से लेकर अब तक की बिहार की सियासत को देखें तो मुख्यमंत्री पद पर मजबूत दावेदारी रखने वाली जातियों की संख्या एक दर्जन से भी कम है।

मण्डल आयोग की सिफारिशें लागू होने होने के बाद हुए नए जातीय ध्रुवीकरण का असर बिहार की सियासत में भी दिखा। कई राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि फिलहाल बिहार में अगड़ी हिन्दू जाति का मुख्यमंत्री बनना मुश्किल है। अगड़ी मुस्लिम जातियों के सीएम बनने की सम्भावना भी नगण्य है। इसलिए सीएम पद पर केवल ओबीसी, ईबीसी और एससी वर्ग की दावेदारी बचती है।

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वर्तमान जातीय समीकरण के हिसाब से अगला सीएम यादव, कुर्मी, कोइरी, पासवान, रविदास या ओबीसी बनिया समुदाय से होने की ज्यादा सम्भावना है। यानी कुल जमा 6-7 जातियों के बीच मुख्यमंत्री की कुर्सी जानी है मगर इसका फैसला बिहार की वे 200 से ज्यादा जातियाँ करेंगी जो इस पद की दौड़ से बाहर हैं।

बिहार के जातीय सर्वेक्षण में कुल 214 जातियों को जातीय कोड दिया गया। जिन जातियों का नंबर इन 214 में नहीं आया उनके लिए एक साझा कोड 215 (अन्य जातियाँ) जारी किया गया। अगर इन अन्य जातियों को भी एक समुदाय मान लें तो बिहार में न्यूनतम 215 जातीय समुदाय हैं।

ऐसे में सवाल यह नहीं है कि यादव, कुर्मी, कोइरी या पासवान का नेता कौन है? अपने समुदाय का वोट जुटाने से राज्य के मुखिया की कुर्सी नहीं मिलेगी। लालू यादव बिहार के यादवों के सर्वमान्य नेता माने जाते हैं और उनके समुदाय की आबादी राज्य में सबसे ज्यादा है फिर भी वे करीब 20 साल से राज्य की सत्ता से बाहर हैं जबकि उनके पास राज्य के दूसरे बड़े धार्मिक समुदाय का भी समर्थन रहा है।

यह साफ है कि राज्य के मुख्यमंत्री की कुर्सी उसे ही मिलेगी जो अपने परम्परागत जनाधार के अलावा बाकी बची जातियों में से जरूरत भर समुदायों का भरोसा जीत सकेगा। यानी चुनावी चर्चाओं से बाहर रहने वाली जातियाँ ही तय करेंगी कि बिहार का अगला मुख्यमंत्री कौन होगा।