चौदह नवंबर की सुबह बिहार के चुनाव परिणाम आते हैं। मतदान के बाद हुए सर्वेक्षण अपने नतीजे दे चुके थे और एकाध को छोड़ सब राजग को जिताते दिखे। कुछ राजग को डेढ़ सौ सीट भी देते दिखे और एकाध ने तो 170 से 180 सीटें तक दीं। आठ बज रहे हैं। सारे खबर चैनल बिहार विधान सभा के चुनाव के आरंभिक रुझानों पर खबर देने की तैयारी कर चुके हैं। कुछ देर में ‘डाक मतपत्र’ गिने जा रहे हैं। फिर ‘ईवीएम’ के वोटों की गिनती शुरू और वहां से बहुत-सी सीटों पर राजग की जीत के रुझान नजर आने लगते हैं। महागठबंधन हर पल पीछे होता दिखता है और राजग आगे बढ़ता नजर आता है।
एकाध एंकर को छोड़ अधिकतर एंकरों के चेहरे रुझानों को देख कुछ चकित नजर आते हैं। फिर उनमें से कई अपनी खुशी को नहीं छिपाते, कुछ अपनी खुशी को दबाते हुए महागठबंधन की खबर लेते हैं कि कथित ‘एंटी इन्कंबेंसी’ यानी सत्ता विरोधी रुझान का क्या हुआ। आपके समीकरणों का क्या हुआ? क्या इस चुनाव ने ‘बिहार में जातिवाद निर्णायक है’ के ‘विचार’ को ध्वस्त कर दिया?
राहुल–तेजस्वी अब आउटडेटेड मॉडल… जनता का इशारा साफ | बदलता बिहार एक नई कहानी कह रहा है
क्या महागठबंधन का सामाजिक फार्मूला नाकाम हो गया और राजग का पास हो गया? कई एंकर और संवाददाता कल तक नीतीश के ‘बीमार’ होने, उनके ‘अक्षम’ होने की कामना करने वालों से सवाल पूछने लगते हैं कि कल तक आप महागठबंधन की बड़ी जीत का दावा कर रहे थे, तो उस दावे का क्या हुआ? महागठबंधन का एक प्रवक्ता किसी तरह संभालता है कि अभी कुछ भी कहना उचित नहीं, अंतिम परिणामों का इंतजार करें।
दोपहर के बारह बज रहे हैं। राजग के जीतने के रुझान बताते हैं कि अब आईं उनकी इतनी सीटें। आंकड़ा हर पल, कुछ बढ़ता, कुछ घटता नजर आता है। फिर रुझान पलटने लगते है। राजग की बढ़त दो सौ सीेटों से घटकर अचानक 190 तक आ जाती है, लेकिन फिर ‘बढ़त’ नजर आने लगती है। दोपहर के करीब दो बजे राजग 200 पार पर पहुंचा दिखता है, जबकि महागठबंधन कुछ पैंतीस-छत्तीस सीट पाता नजर आता है, जबकि ‘जन सुराज’ शून्य पर आ जाता है और बाकी सहयोगी दो से पांच के बीच दिखते हैं।
जब हर सवाल ‘हां’ कहता है, तब जनता ‘ना’ क्यों नहीं कह पाई | बिहार में आखिर हुआ क्या?
एक निलंबित कांग्रेसी वक्ता कहने लगते हैं कि भाजपा के नेताओं और कार्यकर्ताओं में जीत की जो भूख है, वह अतुलनीय है। यह उसका ही परिणाम है। उनकी राजनीति से असहमत हुआ जा सकता है, लेकिन उनकी यह कर्मठता तारीफ के योग्य है। एंकर चहकती है कि लीजिए इनका भी हृदय परिवर्तन हो गया। फिर महागठबंधन के एक प्रवक्ता आते हैं और कहने लगते हैं कि अभी जल्दी है, इंतजार करें, लेकिन एक बड़े प्रवक्ता आते हैं जो अपनी असफलता के कारणों का ठीकरा चुनाव आयोग पर फोड़ कर चले जाते हैं कि यह चुनाव ज्ञानेश गुप्ता (मुख्य चुनाव आयुक्त) बरक्स बिहार की जनता के बीच हुआ है। पत्रकार पूछते हैं तो वे फिर वही ‘ज्ञानेश बरक्स बिहार की जनता’ की बात को दुहराते रहते हैं। फिर एक पुराने प्रवक्ता आकर यह कहकर बात संभालते हैं कि अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी… सारे परिणाम आने दीजिए..!’
यानी कि फिर वही… ‘वोट चोरी’ और ‘चुनाव चोरी’ के आरोप। फिर एक बहस में महागठबंधन के एक वक्ता ‘चुनाव चोरी’ को ‘चुनाव डकैती’ में बदल देते हैं। एंकर कहता है कि आपके ‘वोट चोरी’ के आरोप को तो सुप्रीम कोर्ट तक ने ‘नकार’ दिया, फिर भी आप इसी पर अटके हैं और अब तो आप ‘चोरी’ की जगह ‘डकैती’ कहने लगे हैं, कल को क्या कहेंगे?
कुछ एंकर और विपक्षी प्रवक्ता इन परिणामों को ‘कौन बनेगा मुख्यमंत्री’ की ओर ले आते हैं और भाजपा के प्रवक्ताओं से बार-बार पूछने लगते हैं कि नीतीश मुख्यमंत्री बनाए जाएंगे या नहीं। एक चर्चा में एक पुरानी पत्रकार पूछती हैं कि कुछ दिन बाद भाजपा नीतीश को हटा कर अपना मुख्यमंत्री बनाएगी, जैसा कि महाराष्ट्र में हुआ। जवाब में राजग के प्रवक्ता साफ करते हैं कि हमारे नेता कह चुके हैं कि न प्रधानमंत्री की जगह खाली है, न मुख्यमंत्री की। एक प्रवक्ता तो यह तक कह देते हैं कि आप हमको आपस में लड़ाने की जुगत न करें। इससे कुछ होने वाला नहीं।
अपराह्न के तीन बजे हैं। बढ़त के रुझान ठहर से गए हैं। राजग की बढ़त 200 पार पहुंच गई दिखती है। इसके बरक्स महागठबंधन की बढ़त इकतीस सीटों पर ठहर गई दिखती हैं। हार के कारणों पर विचार करते हुए एक ‘विश्लेषक’ कहते हैं कि महागठबंधन वाले कई नेता कार्यकर्ता आम जनता के बीच काम नहीं करते, लेकिन राजग, खासकर भाजपा के नेता व कार्यकर्ता चुनाव जीतने के लिए चौबीसों घंटे सातों दिन काम करते है। एक एंकर बताती है कि जब महाराष्ट्र का चुनाव चल रहा था, तभी भाजपा के नेताओं ने बिहार के चुनाव की ‘योजना’ शुरू कर दी थी। यह ‘आशातीत चुनाव परिणाम’ राजग के ‘जनहितकारी कार्याें’ का सुफल है। वे अपनी जनता के सीधे संपर्क में रहते हैं… फिर राजग सरकार ने हर महिला को ‘दस हजार का तड़का’ दिया।
