एक समय जब संगणक के बढ़ते प्रभाव और ‘कमांड लैंग्वेज’ (समादेश-भाषा) अंग्रेजी होने के कारण इसे हिंदी के लिए व्यवधान माना जा रहा था, ठीक उसी समय ‘फोर्ब्स पत्रिका’ ने एक रपट में यह तथ्य स्थापित किया था कि संस्कृत कंप्यूटर के लिए सबसे उपयुक्त भाषा है। यह दुनिया की सबसे तर्कसंगत और व्याकरणीय दृष्टि से वैज्ञानिक भाषा है।
साथ ही, इसे हिंदी, मैथिली, उर्दू, ओड़िया, बांग्ला, मराठी, गुजराती, सिंधी, पंजाबी, बुंदेली, अवधी और बृज इत्यादि सभी आधुनिक एवं मूर्त भाषाओं तथा बोलियों की जननी भी माना जाता है। इधर, जैसे-जैसे दुनिया बहु-सांस्कृतिक पहचान और अंकीय यानी डिजिटल संचार से जुड़े ज्ञान को समझ रही है, संस्कृत उसी के समांतर भविष्य की भाषा के बेहतर विकल्प के रूप में उभर रही है।
संस्कृत की भाषाई सटीकता और तार्किकता के कारण कृत्रिम बुद्धिमत्ता और रोबोटिक्स जैसी प्रौद्योगिकी के नवीनतम क्षेत्रों में इसके प्रयोग की संभावनाएं बढ़ रही हैं। इसे कंप्यूटर की भाषा बनाने में नासा और मुंगेर स्थित योग विश्वविद्यालय अहम योगदान दे रहे हैं।
संस्कृत की व्याकरण प्रणाली को तीन हजार से भी अधिक वर्ष पहले महर्षि पाणिनि ने संहिताबद्ध किया था। वैज्ञानिक इसे भाषा विज्ञान का एक अद्वितीय उदाहरण मानते हैं। पाणिनि का व्याकरण संस्कृत भाषा के लिए रचित ‘अष्टाध्यायी’ नामक ग्रंथ पर आधारित है, जिसमें लगभग चार हजार सूत्र हैं। यह व्याकरण अत्यधिक वैज्ञानिक है। इसने संस्कृत को मानकीकृत किया।
पाणिनि की यह पद्धति दुनिया की पहली औपचारिक विधि मानी जाती है। इसे सहायक प्रतीकों (प्रत्यय) की प्रणाली ने कंप्यूटर प्रोग्रामिंग भाषाओं के विकास में बड़ी भूमिका निभाई। अब भारत, अमेरिका और जर्मनी सहित कई देशों के तकनीकी एवं भाषा वैज्ञानिक पाणिनि के संस्कृत सूत्रों से एक गणितीय सूत्र तैयार कर रहे हैं, जो कंप्यूटर को सरलता से समझ में आ जाए।
पाणिनि के सूत्रों का अध्ययन कर दुनिया के वैज्ञानिक अचंभित
यह परिवर्तनकारी शोध कृत्रिम मेधा के क्षेत्र में चल रहा है। इसे विकसित कर लिए जाने के बाद पाणिनि के सूत्रों से कंप्यूटर को पहली प्राकृतिक भाषा मिल जाएगी, जिसका उपयोग नासा की प्रयोगशाला से लेकर दुनिया की अधिकांश प्रयोगशालाओं में होगा। फिर दुनिया कंप्यूटर की वर्तमान कृत्रिम भाषा से मुक्त हो जाएगी। पाणिनि के सूत्रों का अध्ययन कर दुनिया के वैज्ञानिक अचंभित हैं कि लगभग ढाई हजार वर्ष पहले पाणिनि ने कैसे इतने शुद्ध एवं संक्षिप्त सूत्र विकसित किए होंगे!
व्याकरण के ये सूत्र एकदम कंप्यूटर की भाषा ‘कोबोल’ और ‘फोरट्रान’ से मिलते-जुलते हैं। ‘कोबोल’ यानी ‘कामन बिजनेस ओरिएंटेड लैंग्वेज’। यह एक अंग्रेजी जैसी ‘प्रोग्रामिंग’ भाषा है, जिसे व्यावसायिक उपयोग के लिए विकसित किया गया। ‘फोरट्रान’ यानी ‘फार्मूला ट्रांसलेशन’ है। यह पहली उच्च स्तरीय प्रोग्रामिंग भाषा है, जिसे जान बैकस और उनके सहयोगियों ने 1957 में आइबीएम में विकसित किया था।
इसका मुख्य लक्ष्य गणितीय सूत्रों को कंप्यूटर कोड में बदलना था, जो इसे वैज्ञानिक और इंजीनियरिंग गणनाओं के लिए उपयुक्त बनाता है। अंग्रेजी में बड़ी संख्या में शब्दों का उच्चारण एवं अर्थ अस्पष्ट एवं भिन्न होते हैं। जैसे चाचा, मामा और मौसा के लिए अंग्रेजी में एक ही शब्द है- ‘अंकल’। इसी तरह ‘बैंक’ शब्द धन के लेन-देन की संस्था से जुड़ा है, किंतु नदी के किनारे को भी ‘बैंक’ कहा जाता है। ऐसे शब्द भ्रम पैदा करते हैं।
किस भाषा को प्राकृतिक भाषा मानते हैं वैज्ञानिक?
वैज्ञानिक भाषा उस प्राकृतिक भाषा को मानते हैं, जिनमें भ्रम और दोहरे अर्थ नहीं होते। जिन भाषाओं में ऐसा होता है, उन्हें कृत्रिम भाषा माना गया है। पाणिनि के व्याकरण ने संस्कृत को पूर्ण, स्पष्ट, संक्षिप्त एवं सूत्रबद्ध किया है। अमेरिका, जर्मनी और भारत सहित कई देशों के वैज्ञानिक पाणिनि के संस्कृत सूत्रों से एक गणितीय सूत्र तैयार कर रहे हैं। ऐसा माना जा रहा है कि जल्दी ही कंप्यूटर की प्राकृतिक भाषा मिल जाएगी और दुनिया कृत्रिम भाषा के भ्रमों से मुक्त हो जाएगी।
संस्कृत का वाक्य-विन्यास गणितीय रूप में इतना सुसंगत है कि इसे एक ‘संगणक अनुकूल भाषा’ माना जाने लगा है। इसकी सहायता से कृत्रिम बुद्धिमत्ता और रोबोटिक्स के क्षेत्र को और सार्थकता मिल सकती है। भारत में प्रौद्योगिकी शैक्षणिक संस्थान कंप्यूटिंग और एआइ अनुसंधान में संस्कृत को शामिल कर रहे हैं। इन अनुसंधानों के पूरा होने पर संस्कृत, प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में रोजगार की भाषा बन जाएगी।
आज शिक्षा का स्वरूप रोजगार को ध्यान में रख कर विकसित किया जा रहा है। इसलिए विद्यालयों में वही भाषाएं पढ़ाने पर विचार किया जाता है, जिनसे विद्यार्थियों के काम-धंधे के उत्तम अवसर मिल सकें। संस्कृत कंप्यूटिंग की भाषा में उपयोगी साबित हो जाती है, तो डिजिटल भारत की भाषा संस्कृत हो ही जाएगी, भारतीय भाषाओं को भी डिजिटल भाषाएं बनने में देर नहीं लगेगी। संस्कृत ज्ञान, मूल्य और विज्ञान का सूत्र स्रोत मानी जाती रही है। पहले परमाणु विस्फोट से लेकर अब तक दुनिया भर के वैज्ञानिकों ने संस्कृत के प्राचीन साहित्य को प्रेरणा स्रोत माना है। इसलिए कंप्यूटर की भाषा विकसित करने के लिए संस्कृत को माध्यम बनाया जा रहा है।
विज्ञान के नए शोध भारतीय एवं पश्चिमी विधियों को जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। भारत में जब सुपर कंप्यूटर नहीं था, तब अमेरिका से इसकी तकनीक की मांग की गई थी, लेकिन उसने 1987 में इस तकनीक को देने से साफ मना कर दिया था। देश के पहले सुपर कंप्यूटर ‘परम’ के निर्माता और सुपर कंप्यूटिंग की शुरुआत से जुड़े विजय पांडुरंग भटकर ने इसे एक चुनौती माना और इसके आविष्कार में लग गए।
उनके नेतृत्व में ‘सेंटर फार डेवलपमेंट आफ एडवांस कंप्यूटिंग’ (सी-डीएसी) द्वारा 1991 में विकसित कर लिया गया। इस सुपर कंप्यूटर और सी-डेक के आविष्कार को भारत की एक बड़ी उपलब्धि माना गया। इसी संस्था ने देश का पहला सुपर कंप्यूटर ‘परम-8000’ विकसित किया। इसके बाद ‘परमसिद्धि-एआइ’ नामक सुपर कंप्यूटर में कृत्रिम बुद्धिमत्ता का प्रयोग सफलतापूर्वक शुरू हुआ। यह भारत का पहला द्रुत गति का सुपर कंप्यूटर था। नबंवर-2023 के आंकड़ों के अनुसार विश्व के 500 सर्वाधिक क्षमता वाले सुपर कंप्यूटरों में भारत के चार कंप्यूटर शामिल हैं। ये हैं- ऐरावत-पीएसएआइ, परमसिद्धि, प्रत्यूष और मिहिर।
कण-यांत्रिकी को कंप्यूटर का भविष्य माना जा रहा है। पारंपरिक कंप्यूटर बिट (अंश) पर काम करते हैं, वहीं क्वांटम कंप्यूटर में प्राथमिक इकाई ‘क्यूबिट’ यानी कणांश होता है। पारंपरिक कंप्यूटर में प्रत्येक बिट का मूलाधार या मूल्य शून्य और एक (एक) होता है। कंप्यूटर इसी शून्य और एक की भाषा में कुंजी-पटल (की-बोर्ड) से दिए निर्देश को ग्रहण करके समझाता है और परिणाम को अंजाम देता है। वहीं क्वांटम की विलक्षणता यह होगी कि वह एक साथ ही शून्य और एक दोनों को ग्रहण कर लेगा। यह क्षमता क्यूबिट की वजह से विकसित होगी।
परिणामस्वरूप यह दो क्यूबिट में एक साथ चार मूल्य या परिणाम देने में सक्षम हो जाएगा। एक साथ चार परिणाम स्क्रीन पर प्रकट होने की इस अद्वितीय क्षमता के कारण इसकी गति पारंपरिक कंप्यूटर से कहीं ज्यादा होगी। इस कारण यह पारंपरिक कंप्यूटरों में जो गूढ़-लेखन कर दिया जाता है, उससे कहीं अधिक मात्रा में यह कंप्यूटर डेटा ग्रहण करने और सुरक्षित रखने में समर्थ होगा।
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