एनडीए को बिहार चुनाव में बंपर जीत मिलने के बाद इस बात को लेकर सभी में जिज्ञासा थी कि भाजपा कोटे से किन नेताओं को इस बार डिप्टी सीएम पद मिलेगा।
भाजपा ने सुशील मोदी के बाद तारकिशोर प्रसाद और रेणु देवी को नीतीश कुमार सरकार में उप-मुख्यमंत्री बनाया। बाद में सम्राट चौधरी और विजय सिन्हा को इस पद पर बैठाया।
डिप्टी सीएम का पद प्रतीकात्मक ज्यादा है मगर बिहार में जिस पद पर अनुग्रह नारायण सिंह और कर्पूरी ठाकुर जैसे कद्दावर नेता बैठ चुके हैं उस पर होने वाली नियुक्ति का अपना महत्व है।
बुधवार को जदयू ने नीतीश कुमार को विधायक दल का नेता चुनने की औपचारिकता पूरी की। भाजपा ने सम्राट चौधरी को विधायक दल का नेता और विजय सिन्हा को उपनेता चुनकर विश्लेषकों को चौंका दिया। माना जा रहा है कि दोनों नेता कल नीतीश कुमार के साथ डिप्टी सीएम पद की शपथ लेंगे।
सम्राट चौधरी कुशवाहा समुदाय से आते हैं और विजय सिन्हा भूमिहार समुदाय से। हिन्दू अगड़ा और गैर-यादव ओबीसी को भाजपा का वोटबैंक माना जाता है। ये दोनों नेता इन दो वर्गों के प्रतिनिधि माने जाते हैं।
कुछ लोगों ने यह अनुमान भी जताया कि चिराग पासवान की लोजपा को भी एक डिप्टी सीएम पद मिल सकता है क्योंकि उनकी पार्टी ने 19 सीटों पर जीत हासिल की है। अभी तक प्राप्त समाचार के अनुसार 20 नवंबर को नीतीश कुमार के साथ भाजपा के दो डिप्टी सीएम शपथ लेंगे।
पार्टी कोई हो, हालिया माहौल में मुख्यमंत्री की कुर्सी पर ओबीसी, ईबीसी और एससी वर्गों का दावा माना जाता है। इनमें भी पिछड़ी जातियों को सीएम पद का ज्यादा प्रबल दावेदार माना जाता है। राज्य में पिछड़ा वर्ग की संयुक्त आबादी करीब 63 प्रतिशत है। राज्य में एससी आबादी 19.65 प्रतिशत, सभी जातियों के मुस्लिम 17.7 प्रतिशत और अगड़े हिन्दू करीब 11 प्रतिशत हैं।
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भाजपा कोटे से एक ओबीसी या ईबीसी का डिप्टी सीएम बनना तय था मगर निवर्तमान डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी का भाजपा विधायक दल का नेता बनना बताता है कि बीजेपी ने चौधरी पर लगे आरोपों को गम्भीरता से नहीं लिया।
जन सुराज पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर ने बिहार चुनाव के दौरान आरोप लगाया कि सम्राट चौधरी ने सात लोगों की हत्या से जुड़े एक आपराधिक मामले में खुद को नाबालिग बताकर अदालत से राहत प्राप्त की थी जबकि उस समय उनकी उम्र करीब 26 वर्ष थी। इन आरोपों को निराधार बताते हुए चौधरी ने कहा कि उन्हें कोर्ट ने निर्दोष पाया था।
प्रशांत किशोर ने सम्राट चौधरी पर दूसरा आरोप लगाया कि उन्होंने केवल सातवीं तक की पढ़ाई की है। किशोर ने सम्राट चौधरी के डॉक्टरेट डिग्री पर भी सवाल उठाया। इसकी सफाई में सम्राट चौधरी ने कहा कि उन्हें एक अमेरिकी यूनिवर्सिट से मानद डी.लिट. मिली है। सातवीं से आगे की शिक्षा पर चौधरी ने कहा कि उन्होंने मदुरई की कामराज यूनिवर्सिटी से पीएफसी की डिग्री ली है।
प्रशांत किशोर ने जब सम्राट चौधरी पर आरोप लगाया तब जदयू की तरफ से बयान आया कि चौधरी को इन आरोपों पर स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए। प्रशांत किशोर ने सम्राट चौधरी के अलावा मंगल पाण्डेय, दिलीप जायसवाल और अशोक चौधरी पर भी भ्रष्टाचार के आरोप लगाये थे।
नेताओं की डिग्री को लेकर हुए ज्यादातर विवाद ठण्डे बस्ते में चले जाते हैं। उम्र विवाद से सम्राट चौधरी का पुराना नाता है। सम्राट चौधरी पहले राकेश चौधरी के नाम से जाने जाते थे। उनके पिता शकुनी चौधरी लालू यादव के साथ राजद के संस्थापक सदस्यों में एक थे।
1999 में राबड़ी देवी के मंत्रिमंडल में सम्राट चौधरी (तब राकेश चौधरी) को मंत्री बनाया गया। उन पर आरोप लगा कि उनकी उम्र मंत्री बनने के लिए जरूरी न्यूनतम आयु से कम है। सुशील मोदी के नेतृत्व में भाजपा इत्यादि दलों ने बिहार के मुख्य चुनाव अधिकारी और राज्यपाल से इसकी शिकायत की। मुख्य चुनाव अधिकारी की रिपोर्ट में भी उनकी उम्र कम पायी गयी। नाटकीय घटनाक्रम के बाद चौधरी का इस्तीफा हुआ था।
जिन भाजपा नेताओं पर प्रशांत किशोर ने आरोप लगाया था कि उनमें एक का डिप्टी सीएम बनना तय हो गया है। अब देखना है कि चौधरी के अलावा जिन पर आरोप लगा उनमें से कितनों को नई एनडीए सरकार में मंत्री पद मिलता है। प्रशांत किशोर ने चुनाव के दौरान कहा था कि वह इन नेताओं के खिलाफ अदालत जाएँगे। अब देखना है कि वह अपने इस दावे पर कितने खरे उतरते हैं।
चौधरी इस चुनाव में अपने पिता और माता की विधान सभा सीट तारापुर से चुनाव जीतकर आए हैं। भाजपा ने बिहार में प्रचण्ड जीत के बाद जिस तरह उन्हें विधायक दल का नेता चुना है, उसे देखकर लगता है कि शायद भाजपा के 89 विधायकों में सम्राट चौधरी की टक्कर का कोई कुशवाहा या ओबीसी नेता नहीं है! या पार्टी ने मान लिया है कि नेताओं पर आरोप लगते रहते हैं, किस-किस से परहेज किया जाएगा? या फिर जिसके घर में चुनावी जीत की वाशिंग मशीन हो, उसके लिए दाग अच्छे हैं!
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