आकांक्षा दीक्षित
समय परिवर्तनशील है। समय के साथ खानपान, रहन-सहन, वेशभूषा के साथ मूल्यों और परंपराओं में भी कम या ज्यादा परिवर्तन स्वाभाविक है। हमारे सभी संबंध परस्पर प्रेम और सम्मान की भावना से ही पल्लवित-पुष्पित होते हैं। जन्म से प्राप्त संबंधों पर किसी का नियंत्रण नहीं होता, लेकिन मित्र, प्रेमी-प्रेमिका, जीवनसाथी अधिकतर हम स्वयं चुनते हैं।
कुछ समय पहले ऐसी खबरें सुर्खियों में आई, जिनमें सहजीवन में रह रहे युगल में से लड़के ने अपनी प्रेमिका की नृशंस हत्या कर दी। ऐसी घटनाएं सोचने पर मजबूर कर देती हैं कि ये तथाकथित प्रेम संबंध इतनी बुरी स्थिति में कैसे पहुंच गया? इसी प्रकार महिलाओं द्वारा भी अपने पुरुष मित्र या पति के साथ किए गए अप्रत्याशित व्यवहार संबंधी घटनाओं की भी खबरें आती हैं। ऐसे संबंध सामान्य नहीं कहे जा सकते। शायद ऐसे ही रिश्तों के लिए पिछले कुछ वर्षों एक शब्द ‘टाक्सिक रिलेशनशिप’ या विषाक्त हो चले रिश्ते का चलन तेजी से बढ़ा है। ऐसे रिश्ते में कोमल भावनाओं का स्थान ईर्ष्या, घृणा, दुर्व्यवहार ले लेते हैं।
जिस संबंध में निजता का सम्मान न हो, संदेह या दुर्भावना हो, उसे स्वस्थ संबंध नहीं कहा जा सकता। पीड़ादायक और हानिकारक रिश्ते को कड़वाहट से भरा संबंध कह सकते हैं। ऐसे में एक व्यक्ति दूसरे को सीमा से अधिक नियंत्रित करने के प्रयास में लग जाता है। अपने साथी पर नियंत्रण प्राप्त करने के लिए अनर्गल आरोप लगाना, संदेह करना, अनैतिक और गलत व्यवहार करना इसके लक्षण हैं।
इसमें प्रेम का संबंध नकारात्मक होने लगता है। ऐसा होने से पहले कई तरह के संकेत मिलने आरंभ हो जाते हैं। एक साथी का अकारण दूसरे को ताने देना, शक करना, बात-बात पर साथी का फोन देखना शुरू हो जाता है। अविश्वास करने से इसकी शुरुआत होती है। असल में अपनी असुरक्षा की भावना की वजह से हीनभावना से ग्रस्त एक साथी दूसरे के सामान्य व्यवहार पर भी संदेह करने लगता है। चूंकि ऐसे व्यक्ति किसी पर विश्वास नहीं कर पाते, इसलिए वे अपने साथी पर पूरा नियंत्रण करने की कोशिश में लग जाते हैं। थोड़ा-बहुत संवेदनशील होना बुरा नहीं है, पर जब दोनों में से कोई एक अगर दूसरे के स्वतंत्र व्यक्तित्व को स्वीकार नहीं कर पाता, तब स्थिति बहुत खराब हो जाती है।
इस तरह के जहरीले रिश्ते से बाहर निकलना अक्सर बेहद कठिन होता है। लोगों को आशा रहती है कि उनका साथी सुधर जाएगा। दूसरी ओर, वह साथी भी उम्मीद दिलाता है कि दोबारा ऐसी कोई गलती नहीं करेगा, जिससे उसे दुख हो। अकेलेपन का डर, शादीशुदा हैं तो परिवार, बच्चे और समाज की प्रतिष्ठा आदि कई कारण होते हैं, जिसमें लोग चाहकर भी ऐसे रिश्ते से नहीं निकल पाते। परिवार द्वारा तय किए गए संबंधों में भी ऐसी स्थिति आ सकती है, पर तब परिवार साथ खड़ा होता है और यह प्रयास किया जाता है कि बात अगर संभल सकती है तो संभल जाए।
रिश्तों में इस प्रकार की बातें न केवल शारीरिक, बल्कि मानसिक और भावनात्मक रूप से भी पीड़ादायी होती है। यह निजी जीवन को तो प्रभावित करती ही है, पेशेवर जीवन पर भी बुरा असर डालती है। ऐसे संबंधों को सुलझाने के लिए आपसी संवाद पहली कड़ी है। अगर इससे बात न बने तो मनोवैज्ञानिक इन विषयों सलाह देते हैं कि अगर स्थिति बिगड़ रही हो तो तत्काल किसी काउंसलर से सलाह और सहयोग ले लेना चाहिए। वे दोनों पक्षों की बातें सुनकर सुधारात्मक उपाय बता सकते हैं।
ऐसे मामलों में अगर किसी भी तरह से बात बनने की संभावना न रहे तो समय रहते इससे बाहर आना ही बेहतर उपाय है। पुरुष हो या महिला, सबसे पहले अपनी भावनाओं पर नियंत्रण पाना आवश्यक है। ऐसे में खुश रहने के लिए सबसे पहले खुद को समय देना और स्वयं से प्यार करना आरंभ करना चाहिए। जो अपना सम्मान करता है, उसी का दूसरे भी सम्मान करते हैं।
अपने साथी पर अपनी निर्भरता को नियंत्रित रखना आवश्यक है। कई बार जरूरत से ज्यादा निर्भरता भी आपसी रिश्ते में किसी एक को गैरजरूरी बना देती है। ऐसी स्थिति से आराम पाने के लिए अपनी सेहत के लिए दिनभर में कुछ वक्त निकालना चाहिए। इससे शारीरिक अंगों में होने वाली ऐंठन से मुक्ति तो मिलती ही है, साथ ही मन में नकारात्मक विचार नहीं आते हैं।
कभी-कभी चीजें इतनी सरल नहीं होती। जब हम किसी के साथ भावनात्मक रूप से जुड़े होते हैं तो भौतिक चीजों या आर्थिक पक्ष पर ध्यान नहीं देते हैं। जबकि रिश्तों में दरार का एक बहुत बड़ा कारण आर्थिक मसले भी होते हैं। ऐसे में कोई साथ रहे या अलग, अपनी आर्थिक स्थिति पर ध्यान अवश्य देना चाहिए। हो सकता है कि साथ रह रहे दो साथियों की कई चीजें संयुक्त हों, मगर जब रिश्ते सामान्य नहीं रह जाते, तब इन पर स्पष्टता आवश्यक है। अलग होने के लिए जरूरी है कि परिवार, मित्रों या कानून की मदद ली जाए, भले ही यह संबंध बनाने में वे विरुद्ध रहे हों, पर संकट में वही विश्वसनीय होते हैं।