उत्तर प्रदेश में एक कहावत हैः जियत न देवैं कउरा, मरत उठावैं चउरा। इसका अर्थ है कि आदमी जब जिंदा था तो उसको कउरा यानी रोटी तक न दी और जब वह मर गया तो उसके नाम पर चबूतरा उठा दिया। यह कहावत उन कृतघ्न एवं संसाधन संपन्न संतानों के लिए बनी है जिनके मां-बाप बिना देखभाल के तड़प-तड़प के मर जाते हैं।
यह कहावत देश के महान शास्त्रीय गायक राजन मिश्रा के निधन पर बिलकुल सटीक बैठती है। मिश्रा जी कोविड पीड़ित थे। पिछले दिनों वेंटीलेटर के अभाव उन्होंने वेंटीलेटर के अभाव में दम तोड़ा। आज उनके नाम पर वाराणसी में सर्वसुविधा युक्त कोविड अस्पताल खड़ा कर दिया गया है। सम्मान में कोई कमी न रहे, शायद इसी भावना के मद्देनज़र अस्पताल के बाहर लगे एक बैनर में राजन जी की तस्वीर के साथ देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की फोटो भी लगा दी गई है।
पद्मभूषण राजन मिश्र 25 अप्रैल को हार्ट अटैक से नहीं रहे थे। दो अटैक पड़े। पहला दोपहर बाद और दूसरा, अंतिम साढ़े पांच बजे। उनके पुत्र का कहना है कि उन्होंने वेंटीलेटर के लिए सबसे मदद मांगी। पीएमओ से मदद आई भी लेकिन तब तक दुनिया भर में भारत का नाम रौशन करने वाला संगीतज्ञ जीवित ही नहीं रह पाया।
सोमवार को काशी के लाल की याद में उसके अपने नगर में डीआरडीओ की मदद से बीएचयू में एक कोविड अस्पताल खड़ा कर दिया गया। साढ़े सात सौ बेड वाला यह अस्पताल अस्थायी है। यानी जब कोविड की बीमारी खत्म हो जाएगी तो उसी के साथ यह अस्पताल भी खत्म कर दिया जाएगा।
उनके पुत्र रीतेश कहते हैं कि जिस आदमी ने भारत का नाम पूरी दुनिया में चमकाया, जब उसकी जान संकट में थी तो पता चला कि इस देश का स्वास्थ्य-चिकित्सा ढांचा चरमरा चुका है। अगर यह ढांचा दुरुस्त होता तो उनकी जान क्यों जाती। वे कहते हैं कि सरकार को मंदिर और गुरुद्वारे बनाने की बजाए देश में चिकित्सा सुविधाएं सर्वसुलभ करानी चाहिए। उन्होंने अफसोस जताया कि देश में मौत नाचती रही और किसी का ध्यान ही नहीं गया। राजन मिश्र जैसे कोहिनूर को खोने के बाद अब सरकार को स्वास्थ्य प्रणाली इतनी बढ़िया कर देनी चाहिए कि ऐसा दिन दोबारा कभी न गुजरे।