Maharashtra Politics: महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद ठाकरे भाइयों (उद्धव और राज) को एक बड़ा झटका लगा। जिसके बाद उनके फिर से एक होने की संभावना के बारे में चर्चा शुरू हो गई। हालांकि, दोनों पक्षों में से किसी ने भी आधिकारिक तौर पर किसी तरह की पुष्टि नहीं की है। पिछले हफ़्ते, उद्धव और राज दो बार मिल चुके हैं। हालांकि ये मुलाकातें पारिवारिक समारोहों की थीं, लेकिन इनसे यह अटकलें लगाई जा रही हैं कि दोनों भाइयों के बीच दूरियां कम हो सकती हैं।

शनिवार को राज ठाकरे के भतीजे यानी उनकी बहन के बेटे की शादी दादर के राजे शिवाजी विद्यालय में हुई। शादी में उद्धव और राज ठाकरे दोनों ही जोड़े को आशीर्वाद देने के लिए पहुंचे। उद्धव अपनी पत्नी रश्मि के साथ समारोह में मौजूद थे। जिसकी वीडियो और तस्वीरें सामने आई हैं। जिसमें राज-उद्धव दोनों नेता एक साथ खड़े होकर नवविवाहित जोड़े को आशीर्वाद देते हुए दिखाई दे रहे हैं। दिलचस्प बात यह है कि राज ठाकरे एक हफ्ते पहले ही रश्मि ठाकरे के भाई श्रीधर पाटनकर के बेटे की शादी में भी शामिल हुए थे, हालांकि उस कार्यक्रम के दौरान दोनों भाई एक-दूसरे से नहीं मिले थे।

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चुनाव के दौरान एक-दूसरे की आलोचना करने वाले ठाकरे भाइयों को निराशाजनक नतीजे देखने को मिले। राज ठाकरे की एमएनएस कोई भी सीट हासिल करने में विफल रही और उनके बेटे अमित ठाकरे उद्धव के खेमे के उम्मीदवार से हार गए। इस बीच, ढाई साल तक मुख्यमंत्री पद पर रहने वाली उद्धव ठाकरे की शिवसेना राज्य विधानसभा में सिर्फ़ 20 सीटों पर रह गई। इस हार ने मराठी लोगों और उनकी संबंधित पार्टियों के कार्यकर्ताओं दोनों की ओर से भाइयों के फिर से एक होने की मांग को हवा दे दी है।

राज ठाकरे की शुरुआत शिवसेना से हुई

राज ठाकरे ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत शिव सेना से की थी, लेकिन उन्होंने पार्टी छोड़ दी और महाराष्ट्र नवनिर्माण पार्टी बनाई। बाला साहेब ठाकरे जब जीवित थे तभी राज ठाकरे अलग हो गए थे। साथ ही उद्धव ठाकरे शुरुआत में राजनीति में सक्रिय नहीं थे। जब उद्धव ठाकरे राजनीति में सक्रिय हुए तो शिवसेना में दो शक्ति केंद्र राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे उभरने लगे थे। बालासाहेब ठाकरे ने किसी को अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी घोषित नहीं किया है, लेकिन राज ठाकरे की नाराजगी बढ़ने लगी और उन्होंने पार्टी छोड़ने का फैसला कर लिया। इसके बाद उन्होंने महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना पार्टी बनी और मराठी का मुद्दा उठाया गया। 2014 में उन्होंने मोदी का समर्थन किया था। 2019 में उसने महाविकास अघाड़ी का समर्थन किया और 2024 में उन्होंने महायुति का समर्थन किया। उनकी बदलती भूमिका के कारण उनकी राजनीति कुछ अस्थिर रही। लेकिन चाचा बाला साहेब ठाकरे को अपना विट्ठल मानकर उन्होंने राजनीति शुरू की। इस विधानसभा चुनाव में वह असफल रहे। अब जल्द ही नगर निगम चुनाव की घोषणा होने की संभावना है। इसी के अनुरूप इस दौरे को देखा जा रहा है।

उद्धव ठाकरे की उदारवादी राजनीति

2019 तक उद्धव ठाकरे ने धीमी राजनीति की। बाला साहेब ठाकरे का आक्रामक तीर, बेबाकी नहीं दिखी, लेकिन उन्होंने पार्टी का खूब विस्तार किया। 2019 में मुख्यमंत्री पद को लेकर भाजपा से अनबन के बाद उन्होंने गठबंधन छोड़ दिया। कांग्रेस और एनसीपी से हाथ मिलाकर उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बने। उद्धव ठाकरे ढाई साल तक महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहे, लेकिन 2022 में उनकी कुछ गलत नीतियों पर असहमति के चलते शिवसेना में बगावत हो गई। एकनाथ शिंदे और उनके साथ कई अन्य विधायकों ने भी उद्धव ठाकरे का साथ छोड़ दिया। हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में उद्धव ठाकरे की शिवसेना के 20 विधायक चुने गए हैं। दूसरी ओर महायुति को प्रचंड बहुमत मिला है। उद्धव ठाकरे ने भी अब नगर निगम चुनाव पर फोकस कर दिया है। इसके मुताबिक राज और उद्धव ठाकरे की मुलाकात को संकेतात्मक माना जा रहा है। ऐसे में कयास लगाए जा रहे हैं कि क्या भविष्य में ये दोनों नेता एक साथ आएंगे?

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