गणेश नंदन तिवारी
मुंबई। एक पुरानी और मशहूर लघुकथा है। जंगल में शिकारी के जाल में फंसे ताकतवर शेर को जाल काट कर एक कमजोर चूहा आजाद करता है। लघुकथा यह बताने का प्रयास करती है कि कमजोर भी कभी ताकतवर के काम आ सकता है। मोदी लहर पर सवार शेर बनी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सामने बहुमत न मिलने पर कुछ ऐसी ही स्थिति आ सकती है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने जिस शिवसेना को चूहा कहा था वही शिवसेना अल्पमत का जाल काटकर भाजपा को महाराष्ट्र की सत्ता तक पहुंचा सकती है।
भाजपा नेताओं को उम्मीद है कि उन्हें स्पष्ट बहुमत मिलेगा। अगर ऐसा नहीं होता है तो उसे शिवसेना, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) या अन्य दलों के समर्थन की जरूरत पड़ेगी। हालात को ताड़ते हुए राकांपा नेता प्रफुल्ल पटेल ने ट्विटर पर कहा कि राज्य में सरकार बनाने में उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका होगी। शरद पवार सरकार का हिस्सा बनने की पूरी कोशिश करेंगे। भाजपा ने पूरे प्रचार के दौरान लगातार जिस राष्ट्रवादी कांग्रेस को भ्रष्टाचारवादी कहा, उसके साथ मिलकर वह सरकार बनाएगी, ऐसा लगता नहीं है। भाजपा अगर राष्ट्रवादी से हाथ मिलाती है तो उसकी नैतिकता के दावे व भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने की घोषणाएं ढोंग साबित होंगी। दूसरी ओर भाजपा के अन्य नेताओं के साथ प्रदेश अध्यक्ष देवेंद्र फडणवीस कई बार यह कह चुके हैं कि उनकी पार्टी बहुमत न मिलने की दशा में राकांपा के साथ हाथ नहीं मिलाएगी, चाहे उनकी सरकार बने या नहीं।
भाजपा के साथ गठबंधन करनेवाली रिपब्लिकन पार्टी आॅफ इंडिया (आठवले) के रामदास आठवले पहले भी कह चुके हैं कि बहुमत नहीं मिलने की स्थिति में वे खुद उद्धव ठाकरे के पास जाकर फिर से सेना-भाजपा का गठबंधन करवाएंगे। बुधवार को एक चैनल पर आठवले ने फिर कहा कि राज्य के हित में सेना-भाजपा को एकसाथ आना ही पड़ेगा। उन्होंने कहा कि अगर जरूरत पड़ती है तो वे खुद उद्धव ठाकरे के पास जाएंगे।
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी चुनाव प्रचार के दौरान ‘भविष्यवाणी’ कर चुकी हैं कि चुनाव के बाद भाजपा और सेना वापस एक हो जाएंगे। कांग्रेस अपनी धुर विरोधी भाजपा को समर्थन दे नहीं सकती। ऐसी दशा में भाजपा को पुराने साथी शिवसेना के पास ही लौटना पड़ सकता है। भाजपा के स्थानीय नेताओं और उद्धव ठाकरे ने चुनाव में एक दूसरे के खिलाफ आग उगलने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। मगर प्रधानमंत्री मोदी ने शिवसेना के खिलाफ एक शब्द भी नहीं बोला। यह उस रणनीति का हिस्सा था जो अमित शाह ने 27 सितंबर को मुंबई में प्रदेश के भाजपा नेताओं के साथ मिलकर बनाई थी। यानी अगर शिवसेना भाजपा के खिलाफ बोलती है तो पहली पंक्ति के नेता चुप रहेंगे मगर प्रदेश के नेता उसे करारा जवाब देंगे। चुनाव के दौरान भाजपा अपनी इसी रणनीति पर चलती रही। मोदी खामोश रहकर सेना-भाजपा के रिश्तों को नापाक होने से बचाते रहे ताकि बहुमत न मिलने की स्थिति में दोनों गठबंधन कर सूबे में सरकार बना सकें।
सेना और भाजपा गठबंधन भी आसानी से नहीं होगा। चुनाव से पहले उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री की कुरसी और 151 सीटें चाहते थे, जो भाजपा को मंजूर नहीं थी और इसालिए युति टूट गई। बदले हालात में उद्धव मोलभाव करने की स्थिति में होंगे और हो सकता है कि वे सूबे में शिवसेना के फायदे के साथ केंद्र में अपने मंत्रियों की संख्या बढ़वा लें।
हालांकि इस बात की संभावना भी है कि उद्धव मुख्यमंत्री के रूप में फडणवीस के नाम पर तैयार नहीं हों क्योंकि प्रचार के दौरान फडणवीस ने शिवसेना की जमकर आलोचना की थी। उद्धव पूरी कोशिश करेंगे कि मुख्यमंत्री की कुरसी पर फडणवीस के बजाय पंकजा मुंडे बैठें, जिन्हें वे अपनी बहन मानते हैं।
बताते चलें कि 90 के दशक में बाल ठाकरे और गोपीनाथ मुंडे एक दूसरे के काफी करीबी रहे हैं और दोनों के प्रयासों से ही राज्य में भाजपा-सेना का गठबंधन और उनकी सरकार बनी थी। पुराने रिश्तों को ध्यान में रखते हुए इस चुनाव में उद्धव ने पंकजा मुंडे के खिलाफ परली में कोई उम्मीदवार नहीं उतारा ताकि पंकजा की जीत आसान हो सके।