UP Politics: उत्तर प्रदेश के ऊर्जा मंत्री अरविंद कुमार शर्मा पिछले कुछ दिनों से बिजली कटौती से लेकर लापरवाह अधिकारियों से बातचीत की कॉल रिकॉर्डिंग्स को लेकर चर्चा में हैं। अब अरविंद कुमार शर्मा खुद को शक्तिहीन महसूस कर रहे हैं। उन्होंने दो महीने पहले अधिकारियों पर अनदेखी किए जाने का आरोप लगाया था। वे लगातार ये आरोप लगा रहे थे और इन विवादों के बीच ही सीएम योगी आदित्यनाथ ने पिछले हफ्ते विभाग के अधिकारियों की समीक्षा बैठक ली थी।

सीएम योगी आदित्यनाथ ने बिजली विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों की बैठक में बिजली कटौती को लेकर अधिकारियों को फटकार लगाई थी। उन्होंने कहा था कि वे विभाग में कमियों को दुरुस्त करके प्रदेश में बिजली आपूर्ति को सहज बनाएं। इन सबके बीच ही अब अरविंद कुमार शर्मा ने अपने एक्स हैंडल से एक पोस्ट किया है और अपनी जान को खतरा बताया है।

कर्मचारी कर रहे मंत्री को हटाने की मांग

अहम बात यह भी है कि राज्य में बीजेपी के मंत्रियों-विधायकों और अधिकारियों के बीच टकराव की खबरें लगातार सामने आ रही हैं। हालांकि, एके शर्मा और उनके अधिकारियों के बीच टकराव चौंकाने वाला है, क्योंकि उनके विभाग का कर्मचारी संघ उन्हें ऊर्जा मंत्री के पद से हटाने की मांग कर रहा है।

1998 बैच के गुजरात कैडर के आईएएस अधिकारी एके शर्मा को नरेंद्र मोदी के सबसे भरोसेमंद नौकरशाहों में से एक माना जाता है। एके शर्मा नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद संयुक्त सचिव के रूप में पीएमओ में शामिल हुए। वे 2020 तक पीएमओ में रहे फिर उन्होंने वीआरएस ले लिया। जनवरी 2021 में, वे BJP में शामिल हो गए और जल्द ही एमएलसी चुने गए और उत्तर प्रदेश भाजपा के उपाध्यक्ष बनाए गए।

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योगी सरकार में 2022 में बने थे मंत्री

2022 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी के यूपी में सत्ता में लौटने के बाद एके शर्मा को मंत्री पद की शपथ दिलाई गई और उन्हें ऊर्जा और शहरी विकास जैसे दो महत्वपूर्ण विभाग दिए गए। सोमवार को मंत्री के तौर पर अरविंद कुमार शर्मा के आधिकारिक एक्स अकाउंट पर पोस्ट किए गए एक संदेश में राज्य के कई बिजली कर्मचारियों को असल में असामाजिक तत्व बताया गया, जिन्होंने उनके खिलाफ सुपारी ले रखी है।

मंत्री के पोस्ट में कहा गया कि जिन लोगों ने ऊर्जा मंत्री ए.के. शर्मा की सुपारी ली है, वे परेशान हैं क्योंकि ऊर्जा मंत्री उनके आगे झुकते नहीं हैं। बिजली विभाग के कर्मचारी आगरा की तर्ज पर पूरे राज्य में बिजली आपूर्ति वितरण के निजीकरण की योजना का विरोध कर रहे हैं। इस निर्णय की घोषणा कुछ महीने पहले की गई थी, जिसके लिए मुख्य सचिव के नेतृत्व में एक टास्क फोर्स का गठन किया गया था।

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निजीकरण का विरोध कर रहे कर्मचारी

निजीकरण की स्थिति में नौकरियां जाने के डर से कर्मचारियों ने इस मुद्दे पर विरोध प्रदर्शन किया और कई हड़तालें कीं, लेकिन इस दिशा में कोई प्रगति नहीं हुई। हाल के दिनों में, राज्य भर से बिजली कटौती, ट्रिपिंग और ट्रांसफ़ॉर्मरों के खराब होने की खबरों ने शर्मा की परेशानी और बढ़ा दी है। समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव के नेतृत्व में विपक्ष इस मुद्दे पर सरकार, खासकर शर्मा की आलोचना कर रहा है।

खास बात यह कि 25 जुलाई को विधानसभा सत्र के करीब आने पर सीएम योगी आदित्यनाथ ने ऊर्जा विभाग की समीक्षा बैठक की थी। इस मीटिंग में मंत्री एके शर्मा भी वर्चुअली शामिल हुए। इस दौरान अधिकारियों को बार-बार” बिजली ट्रिपिंग, अधिक बिलिंग और अनिर्धारित कटौती के बारे में चेतावनी दी गई। मुख्यमंत्री ने कहा कि सरकार ने बिजली उत्पादन, पारेषण और वितरण को मज़बूत करने के लिए रिकॉर्ड तोड़ बजट आवंटित किया है।

सीएम योगी ने लगाई फटकार

उन्होंने कहा कि ऐसे में किसी भी तरह की लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी। हर स्तर पर जवाबदेही तय होनी चाहिए। दूसरी ओर शर्मा के आधिकारिक अकाउंट पर सोमवार को किए गए पोस्ट में निजीकरण की योजना को लेकर उनके खिलाफ हो रहे विरोध प्रदर्शन पर सवाल उठाया गया है। इसमें बताया गया है कि यह निर्णय मुख्य सचिव की अध्यक्षता में गठित टास्क फोर्स द्वारा और उच्च स्तरीय सरकारी मंजूरी के बाद लिया गया था।

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पोस्ट में कहा गया है कि कर्मचारी अच्छी तरह जानते हैं कि निजीकरण का इतना बड़ा फैसला अकेले नहीं लिया जा सकता। जब ऊर्जा मंत्री एक जेई का भी तबादला नहीं कर सकते, जब यूपीपीसीएल (उत्तर प्रदेश पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड) का कामकाज स्वतंत्र है, तो ऊर्जा मंत्री इतना बड़ा फैसला कैसे ले सकते हैं? लगता है कि एके शर्मा से जलने वाले सभी लोग एक साथ आ गए हैं लेकिन, ईश्वर और जनता एके शर्मा के साथ हैं।

निजीकरण को लेकर क्या बोले मंत्री?

लगातार हो रहे विरोध प्रदर्शनों की ओर इशारा करते हुए पोस्ट में कहा गया है कि एके शर्मा के तीन साल के कार्यकाल में बिजली कर्मचारी चार बार हड़ताल पर जा चुके हैं, बाकी विभागों में हड़ताल क्यों नहीं होती? क्या वहां कोई यूनियन नहीं है? या फिर कोई समस्या ही नहीं है? पोस्ट में शर्मा के आवास के बाहर प्रदर्शन कर रहे कर्मचारियों पर अभद्र कृत्य करने और मंत्री एवं उनके परिवार के खिलाफ असभ्य भाषा का प्रयोग करने का भी आरोप लगाया गया।

मंत्री के एक्स पोस्ट में आरोप लगाया गया कि मायावती सरकार के तहत आगरा के निजीकरण के कदम का कोई विरोध नहीं हुआ जबकि यूनियन के सदस्य वही थे, क्योंकि कुछ बड़े कर्मचारी यूनियन नेता विदेश पर्यटन पर चले गए थे। ऊर्जा विभाग कर्मचारी संघ के वरिष्ठ नेता शैलेंद्र दुबे ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि मंत्री इन दिनों जो कुछ भी बोल रहे हैं, उससे उनकी हताशा झलकती है क्योंकि वह निजीकरण कार्यक्रम को लागू नहीं कर पा रहे हैं, जिसके लिए उन्हें उत्तर प्रदेश भेजा गया था।

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क्या बोले कर्मचारी यूनियन के लोग?

2010 में उनके द्वारा किए गए एक विदेश दौरे के आरोपों पर दुबे ने कहा कि गिरीश पांडे, ओन प्रकाश पांडे और मैं मॉरीशस के तत्कालीन प्रधानमंत्री से मिलने गए थे। भोजपुरी समाज ने इस यात्रा का आयोजन किया था, जिसका खर्च हमने उठाया था। उन्होंने शर्मा के इस दावे को भी चुनौती दी कि उन्होंने आगरा में बिजली वितरण का काम टोरेंट द्वारा अपने हाथ में लेने पर कोई आपत्ति नहीं जताई थी। उन्होंने कहा कि इसके खिलाफ उनका विरोध तभी से जारी है।

दो महीने पहले मई में अपने गृह नगर मऊ में एक जनसभा को संबोधित करते हुए एके शर्मा ने पहली बार अपने विभाग के अधिकारियों के खिलाफ़ आवाज़ उठाई थी और कहा था कि जो लोग उनके निर्देशों का पालन नहीं करेंगे, उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। इसके बाद बिजली संबंधी समस्याओं को लेकर सोशल मीडिया पर उन पर हमले शुरू हो गए, और कुछ जिलों में प्रदर्शनकारियों ने उनका विरोध भी किया।

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