Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने मेकअप सामग्री और एक विधवा के बारे में एक हाई कोर्ट द्वारा की गई टिप्पणी को अत्यधिक आपत्तिजनक करार दिया। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि ऐसी टिप्पणी एक कोर्ट से अपेक्षित संवेदनशीलता और तटस्थता के अनुरूप नहीं है। हाई कोर्ट ने 1985 के हत्या के एक मामले में पटना हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर अपीलों पर विचार कर रहा था, जिसनें एक महिला का कथिततौर पर उसके पिता के घर पर कब्जा करने के लिए अपहरण कर लिया गया था और बाद में उसकी हत्या कर दी गई थी।

हाई कोर्ट ने इस मामले में पांच लोगों की दोषसिद्धि को बरकरार रखा था और दो अन्य सह-आरोपियों को बरी करने के फैसले को खारिज कर दिया था। कोर्ट ने दोनों व्यक्तियों को दोषी ठहराया था और उन्हें जीवन कारावास की सजा सुनाई थी जिन्हें पहले एक निचली अदालत में सभी आरोपों से बरी कर दिया था।

जस्टिस बेला त्रिवेदी और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने कहा कि हाई कोर्ट ने इस प्रश्न की जांच की थी कि क्या पीड़िता वास्तव में उस घर में रह रही थी, जहां से उसका कथित तौर पर अपहरण किया गया था।

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि महिला के मामा और एक अन्य रिश्तेदार तथा जांच अधिकारी की गवाही के आधार पर हाई कोर्ट इस फैसले पर पहुंचा था वह उक्त घर में रह रही थी।

पीठ ने कहा कि जांच अधिकारी ने घर का निरीक्षण किया था और कुछ मेकअप सामग्री को छोड़कर कोई प्रत्यक्ष सामग्री नहीं पाई जा सकी, जिससे पता चले कि महिला वास्तव में वहां रह रही थी। पीठ ने कहा एक बेशक, एक अन्य महिला है, जो विधवा थी, वह भी घर के उसी हिस्से में रह रही थी।

पीठ कहा कि हाईकोर्ट ने इस तथ्य पर ध्यान दिया था, लेकिन यह कहते हुए इसे टाल दिया कि क्योंकि दूसरी महिला विधवा थी, इसलिए मेकअप का सामान उसका नहीं हो सकता था, क्योंकि विधवा होने के कारण उसे मेकअप करने की कोई जरूरत नहीं थी।

पीठ ने अपने फैसले में कहा हमारे विचार में हाई कोर्ट की टिप्पणी न केवल कानूनी रूप से असमर्थनीय हैं, बल्कि अत्यधिक आपत्तिजनक भी है। इस प्रकार की व्यापक टिप्पणी कानून की अदालत से अपेक्षित संवेदनशीलता और तटस्थता के अनुरूप नहीं है. विशेष रूप से तब जब रिकॉर्ड पर मौजूद किसी साक्ष्य से ऐसा साबित न हो।

पीठ ने कहा कि पूरे घर में मृतक के कपड़े और चप्पल जैसी कोई भी निजी वस्तु नहीं मिली। पीठ ने कहा कि पीड़िता के अगस्त 1985 में मुंगेर जिले में मौत हो गई थी, उसके रिश्तेदार ने रिपोर्ट दर्ज कराई थी कि उसे सात लोगों ने उनके घर से अगवा कर लिया था। पीठ में कहा कि प्राथमिकी दर्ज की गई और बाद में सात आरोपियों के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया गया।

ट्रायल कोर्ट ने हत्या सहित अन्य अपराधों के लिए पांच आरोपियों को दोषी ठहराया था। जबकि अन्य दो को सभी आरोपों से बरी कर दिया था। अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आरोपियों द्वारा हत्या किए जाने को साबित करने के लिए कोई प्रत्यक्ष साक्ष्य रिकॉर्ड में नहीं हैं। सुप्रीम कोर्ट ने सातों आरोपियों को सभी आरोपों से बरी कर दिया और निर्देष दिया कि अगर वे हिरासत में हैं तो उन्हें तत्काल रिहा किया जाए।