राजस्थान के नए मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा होंगे। वह पहली बार जयपुर की सांगानेर विधानसभा से चुनाव जीतकर विधायक बने हैं। भाजपा के संगठन में अहम किरदार रहे भजनलाल तीन बार बीजेपी राजस्थान के महामंत्री रह चुके हैं। खैर, यह खबर आपने सुन ही ली होगी, लेकिन इससे पहले जो कुछ राजस्थान की राजनीति में घटा और गहमागहमी देखी गई, अगर आप इस पूरी पिक्चर को करीब से देखने की कोशिश करेंगे तो कई सवाल ज़हन में उमड़ेंगे…

चुनाव के नतीजे सामने आने के बाद सबसे बड़ा घटनाक्रम वसुंधरा राजे का दिल्ली जाना था, सवाल उठे कि वह दिल्ली क्यों गईं? इसका जवाब राजे ने खुद भी दिया कि यह एक निजी यात्रा थी, हालांकि अगले दिन खबरें सामने आईं कि वह राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात कर रही हैं। हवाओं में बह रही खबरों, कयासों के बीच यह माना गया कि राजे आलाकमान को यह संदेश देने गई हैं कि वह सीएम पद की सबसे मजबूत दावेदार\हकदार हैं। जब वह दिल्ली में थीं तो राजस्थान के सीकर रोड़ पर मौजूद एक रिज़ॉर्ट से खबरें निकलने लगीं कि उनके बेटे दुष्यंत सिंह ने कुछ विधायकों को जमा किया है, हालांकि पार्टी और नेताओं ने इसका खंडन किया। नाम सामने आने के एक दिन पहले तक भी खबरें तैर रही थीं कि राजे समर्थक विधायक जमा हो रहे हैं, लेकिन मध्यप्रदेश में मोहन यादव का नाम सामने आते ही राजे की हिम्मत टूटती दिखाई दी और आज जब विधायक दल की बैठक में वसुंधरा राजे अपने हाथ में एक पर्ची लिए मंच पर पहुंची तो उनकी चाल में वो तैश नहीं था, यहां लगभग तय था कि वह इस रेस से बाहर हैं।

अब सवाल यह उठ रहे हैं कि आखिर भाजपा ने भजनलाल शर्मा को क्यों चुना है? वसुंधरा राजे क्यों सीएम नहीं बनाई गईं और कैसे बिना विरोध किए वह भजनलाल शर्मा के नाम पर राजी हो गईं? डिप्टी सीएम पद के लिए दीया कुमारी और प्रेम चंद बैरवा को क्यों चुना गया? इन सभी सवालों के जवाब इस आर्टिकल में मौजूद हैं।

जातिगत समीकरण को साधने की कोशिश

जब छत्तीसगढ़ में विष्णुदेव साय और मध्यप्रदेश में मोहन यादव को सीएम फेस घोषित किया गया तभी यह चर्चा शुरू हो गई थी कि राजस्थान में मुख्यमंत्री एक ब्राह्मण चेहरा हो सकता है। विष्णुदेव साय आदिवासी समुदाय से आते हैं और मोहन यादव OBS वर्ग के हैं। जानकार कहते हैं कि बीजेपी ने कास्ट डायनिमिक्स का खासतौर पर ख्याल रखा है, चूंकि बीजेपी ने छत्तीसगढ़ में एक आदिवासी और मध्यप्रदेश में ओबीसी चेहरा सामने रखा तो वह अपने कोर वोट बैंक को कैसे पीछे छोड़ सकते थे, इसके लिए राजस्थान को चुना गया। राजस्थान में सीएम फेस की अटकलों में राजपूत समुदाय से आने वाले गजेन्द्र सिंह शेखावत और दीया कुमारी का नाम भी सामने आया लेकिन अगर पार्टी को राजपूत चेहरा ही सामने रखना होता तो वह वसुंधरा राजे को भी मुख्यमंत्री बना सकते थे। अगर राजपूत चेहरे को सीएम के तौर पर आगे लाया जाता तो बीजेपी के लिए यह जाट मतदाताओं के खिसकने का एक कारण बन सकता था।

भजनलाल ही क्यों के सवाल पर एक वरिष्ठ पत्रकार कहते हैं कि भजनलाल अपर कास्ट से आते हैं, संगठन में काफी मजबूत रहे हैं। हालांकि उनके पास बहुत ज़्यादा प्रशासनिक अनुभव नहीं है लेकिन यह उस खांचे में एकदम फिट बैठते हैं जिसे पार्टी आलाकमान ने बनाया है।

ऐसा माना जाता रहा है कि भाजपा आलाकमान एक ऐसा नेता को राज्य के सर्वोच्च पद पर बैठाना चाहती थी जिसे आसानी से कंट्रोल किया जा सके, यही तरीका छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में भी अपनाया गया है। राजस्थान में वसुंधरा राजे और किरोड़ी लाल मीणा जैसे नेताओं का लंबा राजनीति अनुभव रहा है, ऐसे में उन्हें इस पद पर बैठाना पार्टी के लिए मुश्किल फैसला था। वसुंधरा राजे का नाम पीछे छूट जाने का अहम कारण उनकी RSS से दूरी को भी माना जाता रहा है और यह फैसला RSS को संतुष्ट कर सकता है और ब्राह्मणों में एक खुशी की लहर भी पैदा कर सकता है।

बीजेपी ने जातिगत समीकरण को साधने की कोशिश कैसे की है इसका अंदाजा डिप्टी सीएम के नामों को देखकर भी लगाया जा सकता है। जहां दीया कुमारी राजपूत समुदाय से आती हैं वहीं प्रेम चंद बैरवा दलित हैं। दोनों ही समुदायों का राज्य अच्छा वोट बैंक है। हालांकि कांग्रेस जाट मतदाताओं को साधने के लिए यह मुद्दा उठा सकती है कि बीजेपी ने तीनों राज्यों में जाट वर्ग को मौका नहीं दिया है।

नई पीढ़ी को मौका

तीनों ही राज्यों में नए नामों को सामने रखने के सवाल पर वरिष्ठ पत्रकार राजन महान कहते हैं कि बीजेपी लोकसभा चुनाव में पहली बार वोट करने वाले युवा मतदाताओं के बीच संदेश देने का प्रयास कर रही है अब नई पीढ़ी का दौर है। गौर करें तो समझ आएगा कि इस बार राजस्थान में पहली बार वोट डालने वाले मतदाता 22 लाख से ज्यादा थे और यह आंकड़ा लोकसभा चुनाव में काफी बढ़ सकता है। भजनलाल शर्मा की उम्र 56 साल और वह एकदम नया चेहरा हैं जबकि वसुंधरा राजे 70 साल की हैं, कांग्रेस की बात करें तो गहलोत 70 साल के हैं। मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह 64 साल के हैं वहीं मोहन यादव 58 साल के हैं। छत्तीसगढ़ में विष्णुदेव साय 59 साल के हैं।

वसुंधरा कैसे मान गईं?

राजस्थान को लेकर कहा जाता रहा है कि यहां सिर्फ एक बार भाजपा और कांग्रेस ही नहीं बल्कि एक बार गहलोत और एक बार वसुंधरा की चर्चा भी काफी आम रही है। लेकिन इस बार ऐसा नहीं हो सका, माना जाता था कि वसुंधरा की विधायकों में अच्छी पैंठ है लेकिन आज के घटनाक्रम के बाद यह मिथक टूटता सा दिखता है। अगर राजे विधायकों का समर्थन रखती थीं तो वह क्यों चुप रहीं? इस सवाल के जवाब में एक राजनीतिक जानकार कहते हैं कि इसे कांग्रेस और खासतौर पर सचिन पायलट के पिछली सरकार पर लगाए गए करप्शन के आरोपों से जोड़कर देखा जा सकता है, यह चर्चा है कि वसुंधरा राजे का आलाकमान के सामने घुटने टेक देने का एक कारण यह भी रहा होगा, और यह आसानी से समझा जा सकता है कि बीजेपी आलाकमान से सीधे तौर पर टकराना किसी के लिए भी कैसा हो सकता है।